प्रागैतिहास भारत

  • इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया है।
    1. प्रागैतिहासिक कालः– जिसके लिए लिखित साधन अनुपलब्ध हैं एवं जिसमें मानव जीवन पूर्णतया सभ्य नहीं था।
    2. आद्य ऐतिहासिक कालः– जिसके लिए लिखित इतिहास तो उपलब्ध है, लेकिन उसे पढा एवं समझा नही जा सकता है।
    3. ऐतिहासिक कालः– जिसके लिए लिखित साधन उपलब्ध है और जिसमें मानव सभ्य हो चुका था।
  • सर्वप्रथम 1863 ई. में भारत में पाषाणकालीन सभ्यता का अनुसंधान प्रारम्भ हुआ।
    प्राप्त उपकरणों की भिन्नता के आधार पर संपूर्ण पाषाणयुगीन संस्कृति को तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया गया।
  • ये हैं – पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल।

पुरापाषाण काल:-

  • पुरापाषाण काल को भी उपकरणों की भिन्नता के आधार पर तीन कालों में विभाजित किया जाता है –
    पूर्व पुरापाषाण काल – क्रोड उपकरण (हस्तकुठार, विदारिणी)
    मध्य पुरापाषाण काल– फलक उपकरण
    उच्च पुरापाषाण काल– तक्षिणी एवं खुरचनी उपकरण।
  • सर्वप्रथम पंजाब की सोहन नदी घाटी (वर्तमान में पाकिस्तान) से चापर-चापिंग पेबुल संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए।
  • चापर बड़े आकार वाला उपकरण है जो पेबुल (नदी के जल से घर्षित गोलाकार पत्थर) से बनाया जाता है। इसमें एक तरफ धार होती है जबकि चापिंग उपकरण में दोनों तरफ धार होती है।
  • सर्वप्रथम मद्रास के समीप बदमदुरै तथा अत्तिरपक्कम से हैंडऐक्स संस्कृति के उपकरण प्राप्त किए गए। इस संस्कृति के अन्य उपकरण क्लीवर, स्क्रेप आदि है।
  • 1935 ई. में डी. टेरा के नेतृत्व में एल कैम्ब्रिज अभियान दल ने सोहन घाटी में सबसे महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किए।
  • बेलन घाटी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जी. आर. शर्मा के निर्देशन में अनुसंधान किया गया।
  • बेलन के लोंहदा नाला क्षेत्र से अस्थि निर्मित मातृदेवी की एक प्रतिमा मिली है जो संप्रति कौशाम्बी संग्रहालय में सुरक्षित है।
  • फलकों की अधिकता के कारण मध्य पुरापाषाण काल को ‘फलक संस्कृति’ भी कहा जाता है।
  • इन उपकरणों का निर्माण क्वार्टजाइट पत्थरों से किया गया है।
  • पुरापाषाण कालीन मानव का जीवन पूर्णतया प्राकृतिक था। वे प्रधानतः शिकार पर निर्भर रहते थे तथा उनका भोजन मांस अथवा कंदमूल हुआ करता था।
  • अग्नि के प्रयोग से अपरिचित रहने के कारण वे मांस कच्चा खाते थे।
  • इस युग का मानव शिकारी एवं खाद्य संग्राहक था। इस काल के मानव को पशुपालन तथा कृषि का ज्ञान नहीं था।

मध्यपाषाण काल –

  • सर्वप्रथम 1867 ई. में सी.एल. कार्लाइल ने विंध्य क्षेत्र से लघु पाषाणोपकरण खोज निकाले।
  • मध्यपाषाण काल के विशिष्ट औजार सूक्ष्म पाषाण या पत्थर के बहुत छोटे औजार है।
  • भारत में मानव अस्थि पंजर सर्वप्रथम मध्यपाषाण काल से ही प्राप्त होने लगता है।
  • गुजरात स्थित लंघनाज सबसे महत्त्वपूर्ण पुरास्थल है। यहां से लघु पाषाणोपकरणों के अतिरिक्त पशुओं की हड्डियां, कब्रिस्तान तथा कुछ मिट्टी के बर्तन भी प्राप्त हुए हैं। यहां से 14 मानव कंकाल भी मिले हैं।
  • मध्यपाषाण कालीन महदहा (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) से हड्डी एवं सींग निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  • जी.आर. शर्मा ने महदहा के तीन क्षेत्रों का उल्लेख किया है जो झील क्षेत्र, बूचड़खाना संकुल क्षेत्र एवं कब्रिस्तान निवास क्षेत्र में बंटा था। बूचड़खाना संकुल क्षेत्र से ही हड्डी एवं सींग निर्मित उपकरण एवं आभूषण बड़े पैमाने पर पाए गए हैं।
  • डॉ. जयनारायण पांडेय द्वारा लिखित पुस्तक ‘पुरातत्त्व विमर्श’ में महदहा, सराय नाहर राय एवं दमदमा तीनों ही स्थलों से हड्डी के उपकरण एवं आभूषण पाए जाने का उल्लेख है।
  • 5 शवाधान युग्म-शवाधान है और एक शवाधान में 3 मानव कंकाल एक साथ दफनाए हुए मिले हैं।
  • सराय नाहरराय से ऐसी समाधि मिली है जिसमें चार मानव कंकाल एक साथ दफनाए गए थे।
  • लेखहिया से कुल 27 मानव कंकालों की अस्थियां मिली है।
  • पशुपालन का प्रारंभ मध्यपाषाण काल में हुआ।
  • पशुपालन के साक्ष्य भारत में आदमगढ़ (होशंगाबाद, मध्यप्रदेश) तथा बागोर (भीलवाड़ा, राजस्थान) से प्राप्त हुए है।
  • मध्यपाषाण काल के मानव शिकार करके, मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुओं का संग्रह कर पेट भरते थे।
  • मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका प्रागैतिहासिक शैल चित्रकला का श्रेष्ठ उदाहरण है।
  • भारत में यही से चित्रकारी से युक्त सर्वाधिक 500 शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
  • यूनेस्को ने भीमबेटका शैल चित्रों को विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया है।

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नवपाषाण काल

  • सर्वप्रथम खाद्यान्नों का उत्पादन नवपाषाण काल में प्रारंभ हुआ। इसी काल में गेहूं की कृषि प्रारंभ हुई।
  • भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनतम कृषि साक्ष्य उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में स्थित लहुारादेव है।
  • यहां से 9000 ई.पू. से 8000 ई.पू. मध्य के चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि इस नवीनतम खोज के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला स्थल मेहरगढ़ (पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित, यहां से 7000 ई.पू. के गेहूं के साक्ष्य मिले हैं) जबकि प्राचीनतम चावल के साक्ष्य वाला स्थल कोल्डिहवा (इलाहाबाद जिले में बेलन नदी के तट पर स्थित, यहां से 6500 ई.पू. के चावल की भूसी के साक्ष्य मिले हैं) माना जाता था।
  • मेहरगढ़ से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए है।
  • मानव कंकाल के साथ कुत्ते का कंकाल बुर्जहोम (जम्मू-कश्मीर) से प्राप्त हुआ।
  • गर्त आवास के साक्ष्य भी यहीं से प्राप्त हुए।
  • इस पुरास्थल की खोज 1935 ई. में डी. टेरा एवं पीटरसन ने की थी।
  • गुफकराल कश्मीर में स्थित नवपाषाणिक स्थल है।
  • गुफकराल का अर्थ होता है – कुलाल अर्थात् कुम्हार की गुहा।
  • यहां के लोग कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते थे।
  • चिरांद बिहार के सारण जिले में स्थित है। यहां से नवपाषाणिक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • बुर्जहोम (जम्मू-कश्मीर) के पश्चात् चिरांद से सर्वाधिक मात्रा में नवपाषाणिक उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  • यहां से हड्डी के अनेक उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  • यहां से प्राप्त उपकरण हिरण के सींगों से निर्मित हैं।
  • नवपाषाण युगीन दक्षिण भारत में मृतक को दफनाने के स्थल के रूप में वृहत्पाषाण स्मारकों की पहचान की गई।
  • नवपाषाण कालीन पुरास्थल से ‘राख के टीले’ कर्नाटक में मैसूर के पास वेल्लारी जनपद में स्थित संगनकल्लू नामक स्थान से प्राप्त हुए।
  • पिकलीहल में भी राख के टीले मिल हैं। ये राख के टीले नवपाषाण युगीन पशुपाक समुदायों के मौसमी शिविरों के जले अवशेष हैं।
  • आग का उपयोग नवपाषाण काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

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