वैदिक काल से आर्यों की संस्कृति के बारे में ज्ञात होता है। इस काल को ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में विभाजित किया जाता है।

समय निर्धारण:

ऋग्वैदिक काल – 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक
उत्तरवैदिक काल – 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक

ऋग्वैदिक काल

  • वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
  • ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था।
  • परिवार पितृ-सत्तात्मक होता था।
  • ऋग्वैदिक काल में मूलभूत व्यवसाय कृषि व पशुपालन था। (मुख्य व्यवसाय – पशुपालन)
  • परिवार पितृ-सत्तात्मक होता था।

वेद:

  • वेदों की संख्या 4 हैं –
  • ऋग्वेद, युजर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद
  • नोट:- ऋग्वेद, युजर्वेद और सामवेद को वेद त्रयी कहा जाता है।
ऋग्वेद:
  • ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।
  • इसका संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) ने किया है।
  • इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र है।
  • दूसरा एवं सातवां मण्डल सबसे पुराना है। इन्हें वंश मण्डल कहते हैं।
  • दसवां मण्डल सबसे नया है।
  • ऋग्वेद का पाठ करने वाला पुरोहित ‘होतृ’ अर्थात् होता कहलाता है।
  • नौवां मण्डल सोम को समर्पित है।
  • 10वें मण्डल के पुरुष सूक्त में शूद्रों का उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वेद एवं ईरानी ग्रन्थ जेन्द अवेस्त में समानता पायी जाती है।
  • ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी। इसे नदीतमा कहा जाता है।
  • ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख 3 बार एवं गंगा का उल्लेख 1 बार (10वां मण्डल) में मिलता है।
  • ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता है। इन्द्र का वर्णन सर्वाधिक 250 बार किया गया है।
  • ‘असतो मा सदगमय’ ऋग्वेद से लिया गया है।
सामवेद:
  • यह भारतीय संगीत शास्त्र का प्राचीनतम ग्रन्थ है।
  • इसका पाठ करने वाला पुरोहित उदगातृ कहलाता है।
  • सामवेद के प्रथम दृष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
  • सामवेद से सर्वप्रथम 7 स्वरों (सा, रे, गा, मा, पा…) की जानकारी प्राप्त होती है।
  • सामवेद व अथर्ववेद के कोई अरण्यक नहीं है।
  • सामवेद का उपवेद ‘गन्धर्ववेद’ कहलाता है।
युजर्वेद:
  • इसमें यज्ञ की विधियो और कर्मकाण्डों पर बल दिया गया है।
  • इसका पाठ करने वाला अध्वर्यु कहलाता है।
  • इसमें 40 मण्डल और 2000 मंत्र है।
  • इसमें यज्ञ एवं यज्ञ बलि की विधियों का प्रतिपादन किया गया है।
  • यजुर्वेद में हाथियों के पालने का उल्लेख है।
  • यजुर्वेद में सर्वप्रथम राजसूय तथा वाजपेय यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
अथर्ववेद
  • इसमें तंत्र-मंत्र, जादू टोना, टोटका, भारतीय औषधि एवं विज्ञान सम्बन्धी जानकारी दी गई है।
  • इसकी दो शाखाएं- शौनक, पिप्लाद हैं
  • इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।
  • इसमें वास्तु शास्त्र का बहुमूल्य ज्ञान उपलब्ध हैं
  • अथर्ववेद का कोई अरण्यक नहीं है।
  • अथर्ववेद के उपनिषद मुण्डक, माण्डूक्य और प्रश्न है।
  • अथर्ववेद में कुरु के राजा परीक्षित का उल्लेख है जिन्हें मृत्युलोक का देवता बताया गया है।
  • अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित को ब्रह्म कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।
आरण्यक:
  • वनों में रचने के कारण ये अरण्यक कहे जाते हैं।
  • वर्तमान में उपलब्ध सात प्रमुख आरण्यक – ऐतरेय, तैत्तिरीय, माध्यन्दिन, शंखायन, मैत्रायणी, तलवकार तथा वृहदारण्यक है।
उपनिषद:
  • यह भारतीय दार्शनिक विचारों का प्राचीनतम संग्रह है।
  • उपनिषदों को भारतीय दर्शन का स्रोत, जनक कहा जाता है।
  • वेदांग:
  • वेदांगों की संख्या 6 है।
  • शिक्षा, व्याकरण, छन्द, कल्पसूत्र, निरुक्त और ज्योतिष है।
वेदों से संबंधित ब्राह्मण:
  • वेद             :  ब्राह्मण
    ऋग्वेद       : ऐतरेय, कौषीतकी
    सामवेद     : पंचविश, जैमिनीय
    यजुर्वेद       : शतपथ
    अथर्ववेद    : गोपथ
    वेदों से संबंधित उपनिषद:
    वेद           : उपनिषद
    ऋग्वेद     : ऐतरेय
    सामवेद   : छान्दोग्य
    यजुर्वेद    : वृहदारण्यक
    अथर्ववेद : मुण्डक
    वेद              : अरण्यक
    ऋग्वेद        : ऐतरेय
    सामवेद      : छान्दोग्य, जैमिनीय
    यजुर्वेद        : वृहदारण्यक
    अथर्ववेद     : कोई नहीं
  • वेद                उपवेद
    ऋग्वेद          : आयुर्वेद
    सामवेद       : गन्धर्ववेद
    यजुर्वेद         : धनुर्वेद
    अथर्ववेद     : शिल्पवेद
ऋग्वैदिक राजनैतिक स्थिति
  • कबीलाई संरचना पर आधारित ग्रामीण संस्कृति थी।
  • आर्यों के पांच कबीलों को पंचजन्य कहा गया है, जिनके नाम क्रमशः अनु, द्रहु, पुरु, यदु, तुर्वस है।
  • राजा को जनस्य, गोपा, पुरभेत्ता, विशपति, गणपति या गोपति कहा जाता था।
  • स्त्रियां सभा, समिति एवं विदथ में भाग लेती थी।
  • ग्राम, विश व जन उच्चतर इकाईयां थी। ग्राम का प्रधान ग्रामणी होता था।
  • ‘जन’ प्रशासन की सर्वोच्च इकाई थी।
  • विश कई गांवों का समूह था, जिसका प्रधान विशपति कहलाता था। कई विशों से एक जन बनता था, जिसका प्रधान राजा होता था।
  • ऋग्वेद में जन शब्द 275 बार उल्लिखित है।
  • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल अथवा परिवार थी।
  • राजा नियमित स्थायी सेवा नहीं रखता था।
  • सभा: श्रेष्ठ (वृद्ध) अभिजात लोगों की संस्था थी तथा कुछ न्यायिक अधिकार प्राप्त थे।
  • समिति: यह जनसाधारण की संस्था थी। अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है।
  • विदथ: संभवतः यह आर्यों की प्राचीनतम संस्था थी। विदथ में लूटी गई वस्तुओं का बंटवारा होता था। ऋग्वेद में विदथ का सर्वाधिक 122 बार उल्लेख हुआ है। विदथ में आध्यात्मिक विचार विमर्श भी होता था। उत्तरवैदिक काल में इसे समाप्त कर दिया गया था।
वैदिक काल के प्रमुख क्षेत्र:
  • सप्त सैंधव: सिंधु, रावी, व्यास, झेलम, चिनाव, सतलज, सरस्वती का क्षेत्र
    ब्रह्मवर्त: दिल्ली के समीप का क्षेत्र
    ब्रह्मर्षि: गंगा-यमुना का दोआब
    आर्यावर्त: हिमालय से विन्ध्याचल पर्वत का क्षेत्र
    दक्षिणापथ: विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण का ीााग
    उत्तरापथ: विन्ध्याचल के उत्तर में हिमालय का प्रदेश
    वैदिककाल की प्रमुख नदियों के ऋग्वैदिक नाम
वैदिक नाम : वर्तमान नाम
  • क्रुमु : कुर्रम
    कुभा : काबुल
    वितस्ता : झेलम
    विपाशा : व्यास
    दृष्टावती : घग्घर
    अस्किनी : चिनाव
    पुरुष्णी : रावी
    शतुद्री : सतलज
    सदानीरा : गंडक
    सुवस्तु : स्वात
अन्य तथ्य:
  • अथर्ववेद के अनुसार राजा को आय का 1/16 वां भाग मिलता था।
  • वैदिक काल में ‘बलि’ एक कर था।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में पुत्री को ‘कृपण’ कहा गया है तथा दुःखों का स्रोत बताया है।

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ऋग्वैदिक समाज:
  • ऋग्वैदिक सामाजिक संबंध का आधार गोत्र या जन्म मूलक संबंध था।
  • व्यक्ति की पहचान गोत्र से होती थी।
  • समाज कुछ हद तक समतामूलक था।
  • ऋग्वैदिक काल में समाज तीन भागों में विभाजित था –
  • पुरोहित, राजन्य और सामान्य
  • ऋग्वेद के 10वें मण्डल में वर्णित पुरुष सूक्त में चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।
  • समाज पितृसत्तात्मक था परन्तु स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी।
  • स्त्रियों का उपनयन संस्कार किया जाता था तथा शिक्षा की व्यवस्था की जाती थी।
  • स्त्रियां सभा, समिति एवं विदथ में भाग ले सकती थी।
  • महिलाओं को पति के साथ यज्ञ मं भाग लेने का अधिकार था।
  • अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, विश्ववारा तथा सिक्ता को वैदिक ऋचाएं लिखने का श्रेय दिया जाता है।
  • बाल विवाह, तलाक, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा, बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • विधवा विवाह एवं नियोग प्रथा का प्रचलन था।
  • इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी परन्तु दासों को घरेलू कार्यों में लगाया जाता था न कि कृषि कार्यों में।
  • जीवन भर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को ‘अमाजू’ कहा जाता था।
  • मुख्य भोज्य पदार्थ चावल एवं जौ था।
  • घोड़े का मांस अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर खाया जाता था।
  • गाय को अघन्या (न मारने योग्य) कहा जाता था।
आभूषणः
  • कर्ण शोभन – कान का आभूषण
  • कुरीर – सिर पर धारण करने वाला आभूषण
  • ज्योचनी – अंगूठी
  • ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था:
  • ग्रामीण संस्कृति एवं पशुचारण मुख्य तथा कृषि गौण व्यवसाय था।
  • सम्पत्ति का मुख्य रूप गोधन था।
  • आर्य मुख्यतः 3 धातुओं – सोना, कांसा व तांबा का उपयोग करते थे।
  • तांबे और कांसे के लिए अयस शब्द का उपयोग किया जाता था।
  • ये लोग लोहे से परिचित नहीं थे। लोहे का उपयोग उत्तरवैदिक काल में हुआ।
  • ऋग्वेद में एक ही अनाज यव (जौ) का उल्लेख है।
  • वस्त्र बनाना प्रमुख शिल्प था, ये काम स्त्रियां करती थी।
  • ऋग्वेद में कपास का उल्लेख नहीं मिलता है।
  • व्यापारियों को पणि कहा जाता था।
  • मुद्रा के रूप में निष्क एवं शतमान का उल्लेख मिलता है, परंतु ये नियमित मुद्रा नही थी।
  • ऋग्वैदिक धर्म की स्थिति
  • लोग बहुदेववादी होते हुए भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे।
  • धर्म मुख्यतः प्रकृतिपूजक एवं यज्ञ केन्द्रित था।
  • प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण कर उनकी पूजा की जाती थी।
  • इन्द्र (गाय खोजने वाला), सरमा (कुतिया), वृषभ (बैल) व सूर्य (अश्व के रूप में) पूजा की जाती थी।
  • ऋग्वैदिक देवकुल में देवियों की संख्या नगण्य थी।
33 देवताओं की तीन श्रेणियां थी –
  • आकाश के देवता – द्यौस, वरुण, मित्र, सूर्य, पूषण, विष्णु, आदित्य
  • अंतरिक्ष के देवता – इन्द्र, वायु, पर्जन्य, यम, प्रजापति
  • पृथ्वी के देवता – पृथ्वी, अग्नि, सोम, बृहस्पति आदि।
  • द्यौस को ऋग्वैदिक कालीन देवों में सबसे प्राचीन माना जाता है।
  • ऋग्वेद में इन्द्र को समस्त संसार का स्वामी एवं वर्षा का देवता माना गया है।
  • अग्नि, देवताओं एवं मनुष्यों के बीच में मध्यस्थ था।
  • वरुण को ऋतस्यगोपा कहा गया है।
  • सोम को पेय पदार्थ का देवता माना गया है।
  • गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में उल्लेखित है। इसकी रचना विश्वामित्र ने की थी जो सूर्य को समर्पित है।
  • ऋग्वैदिक धर्म की दृष्टि मानवीय तथा इहलौकिक थी। इसमें मोक्ष की संकल्पना नहीं थी।
  • उपासना की विधि-प्रार्थना और यज्ञ थी।
  • यज्ञ के स्थान पर प्रार्थना का अधिक प्रचलन था।

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