जन्तु ऊतक

ऊतक (Tissue)

समान उत्पत्ति, संरचना एवं कार्यों वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक (Tissue) कहते हैं।
जन्तुओं के शरीर में निम्नलिखित प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं –
अ. एपीथीलियम ऊतक (उपकला ऊतक)
ब. पेशी ऊतक
स. संयोजी ऊतक
द. तंत्रिका ऊतक
य. तरल या संवहनीय ऊतक।

एपीथीलियम ऊतक
  • एपीथीलियम ऊतक जन्तुओं के शरीर के विभिन्न बाहरी तथा भीतरी अंगों की सतह का आवरा बनाते हैं। एपीथीलियम ऊतक दो प्रकार के होते हैं – सरल तथा संयुक्त।
  • सरल एपीथीलियम निम्न प्रकार के होते हैं – शल्की, स्तंभी, घनाकार, रोमाभि, ग्रंथिल, संवेदी और जनन।
  • शल्की उपकला की कोशिकाएं पतली, चौड़ी, चपटी तथा षट्कोणीय होती है। कोशिकाओं की दीवारें एक-दूसरे से सटी रहती है। प्रत्येक कोशिका में एक पतला केन्द्रक होता है।
  • यह ऊतक त्वचा की बाहरी सतह, रक्तवाहिनियों, कान के लेविरिन्थ, फेफड़ों वायुकोष्ठिकाओं और वृक्क के वोमेन सम्पुटों पर पाया जाता है।
  • स्तंभी उपकला आहारनाल के विभिन्न अंगों तथा ज्ञानेन्द्रियों व उनकी वाहिनियों की भीतरी सतहों पर पायी जाती है तथा स्राव व अवशोषण में सहायक होती है।
  • घनाकार उपकला की कोशिकाएं घनाकार होती हैं तथा प्रत्येक कोशिका में एक गोलाकार केन्द्रक पाया जाता है। यह श्वेद ग्रंथियों एवं वृक्क नलिकाओं, जनन ग्रंथियों व थाइरॉयड ग्रंथियों में पायी जाती है।
  • रोमाभि उपकला श्वासनली, अण्डवाहिनी तथा मुख गुहा में पायी जाती है।
  • ग्रंथिल उपकला एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दो प्रकार की होती है। एककोशिकीय आंत तथा श्लेष्मिक कला तथा बहुकोशिकीय श्वेद ग्रंथि, त्वचा की तेल ग्रंथि, विष ग्रंथि तथा लार ग्रंथि में पायी जाती है।
  • तंत्रिका संवेदी उपकला में उद्दीपन ग्रहण करने के लिए इनके मुक्त सिरों पर संवेदी रोम होते हैं। इनके दूसरे सिरों पर तंत्रिका तंतु होते हैं, जो संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं। यह उपकला नाक, आंख व कान में पायी जाती है।
  • जनन उपकला स्तंभाकार कोशिकाओं की बनी होती है तथा वृषण व अण्डाशय की भीतरी सतह में पायी जाती है। यह बार-बार विभाजित होकर शुक्राणु तथा अण्ड बनाती है।
  • संयुक्त एपीथीलियम का कार्य जीवनपर्यन्त विभाजन करके नयी कोशिकाओं को जन्म देना है। इससे निर्मित कोशिकाएं बाहरी सतह की ओर खिसकती रहती है तथा मृत कोशिकाओं की जगह लेती है। इस प्रकार की उपकला त्वचा की उपचर्म, नेत्रों की कॉर्निया, मुख्य ग्रासन गुहिका, ग्रासनली, मलाशय तथा योनि में पायी जाती है।
पेशी ऊतक
  • पेशी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं –
    अ. अरेखित पेशियां
    ब. रेखित पेशियां और
    स. हृदय पेशियां
  • अरेखित पेशी ऊतक को चिकनी पेशी या अनैच्छिक पेशी ऊतक भी कहते हैं।
  • अरेखित पेशियां स्वतः फैलती तथा सिकुड़ती है। इनके ऊपर जीवन की इच्छा का कोई नियंत्रण नहीं होता।
  • रेखित पेशियों को ऐच्छिक पेशी भी कहते हैं। ये पेशियां जंतु के कंकाल से जुड़ी रहती है और इनमें ऐच्छिक गति होती है।
  • हृदय पेशियां केवल हृदय की मांसल दीवार पर पायी जाती है। ये पूर्णतः अनैच्छिक होती है।
  • हृदय जीवनपर्यंत इन्हीं के कारण धड़कता रहता है।
संयोजी ऊतक
  • संयोजी ऊतक एक अंग को दूसरे अंग से अथवा एक ऊतक से दूसरे ऊतक को जोड़ता है।
  • ये शरीर में सबसे अधिक फैले रहते हैं तथा शरीर का लगभग 30 प्रतिशत भाग इन्हीं से बना होता है।
    संयोजी ऊतक की तीन श्रेणियों होती है –
    अ. साधारण संयोजी ऊतक
    ब. तंतुमय संयोजी ऊतक
    स. कंकाल संयोजी ऊतक
  • साधारण संयोजी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं – अंतरालित ऊतक, जो त्वचा के नीचे, पेशियों के बीच तथा रक्त वाहिनियों व तंत्रिका के चारों ओर स्थित होते हैं।
  • तंतुमय संयोजी ऊतक में मैट्रिक्स की मात्रा कम व रेशेदार तंतुओं की संख्या अधिक होती है। ये दो प्रकार के होते हैं – श्वेत रेशेदार तथा पीत रेशेदार।
  • श्वेत की अपेक्षा पीत रेशेदार लचीले ऊतक होते हैं, जैसे – गर्दन, उंगलियों के पोर
  • कंकाल संयोजी ऊतक कंकाल का निर्माण करता है। ये दो प्रकार के होते हैं – उपास्थि तथा अस्थि।
  • उपास्थि ऊतक कॉण्ड्रिन नामक प्रोटीन का बना होता है तथा अर्द्धठोस होता है।
  • अस्थि ऊतक दृढ़ होता है तथा ओसीन नामक प्रोटीन का बना होता है।
तंत्रिका ऊतक
  • बहुकोशिकीय जंतुओं मे अनेक जैविक क्रियाओं का नियंत्रण तथा सभी प्रकार के उद्दीपनों की जानकारी देने व प्रतिक्रिया कराने में तंत्रिका तंत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समस्त तंत्रों व अंगों का सामंजस्य स्थापित करना तंत्रिका ऊतक की प्रमुख विशेषता है।
    तंत्रिका ऊतक के प्रमुख भाग हैं –
    अ. तंत्रिका कोशिकाएं
    ब. तंत्रिका तंतु तथा
    स. न्यूरोग्लिया।
  • तंत्रिका कोशिका के तीन प्रमुख भाग होते हैं – कोशिकीय या साइटोन, डेड्रॉन और एक्सॉन।
  • साइटॉन तंत्रिका कोशिका का प्रमुख भाग होता है। इसके कोशिका-द्रव्य में अनेक प्रोटीन युक्त रंगीन कण होते हैं।
    जिन्हें निसिल्स कण कहते है।
  • कोशिकाकाय के अनेक प्रवर्ध बाहर की ओर निकले रहते हैं, जिनमें से एक लंबा मोटा व बेलनाकार होता है। इसे एक्सॉन या तंत्रिकाक्ष कहते हैं। बाकी सब छोटे प्रवर्धों को डेड्रॉन या वृक्षिका कहते हैं।
  • तंत्रिका तंतु दो प्रकार के होते हैं – संवेदी या अभिवाही तंत्रिका तंतु, जो आवेश को ग्राही अंगों से मस्तिष्क या रज्जु में ले जाते हैं।
  • दूसरे प्रेरक या अपवाही तंत्रिका तंतु- ये आवेगों को मस्तिष्क या मेरूरज्जु से कार्यकारी अंगों में ले जाते हैं।
  • न्यूरोग्लिया कोशिकाएं वे विशेष प्रकार की कोशिकाएं हैं, जो मस्तिष्क गृहिकाओं को स्तरित करती है।
तरल ऊतक
  • रुधिर तथा लसिका तरल या संवहनीय ऊतक कहलाते हैं। ये भी एक प्रकार के संयोजी ऊतक हैं जो शरीर के विभिन्न अंगों को एक-दूसरे से सम्बद्ध करते हैं, लेकिन सुविधा के लिए इनको अलग से तरल ऊतक मानते हैं।
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