पुरापाषाण कालीन मानव आखेटक (शिकारी) एवं खाद्य-संग्राहक थे।
पाषाण औजार सोहन नदी घाटी, सिंगरौली घाटी एवं बेलन नदी घाटी से मिलें हैं।
मध्यपाषाणकाल में प्रयुक्त उपकरण बहुत छोटे होते थे, जिसे ‘माइक्रोलिथ‘ कहा जाता है।
नवपाषाण काल में मानव खाद्य पदार्थों का उत्पादक बन गया।
कोल्डीहवा से चावल एवं मेहरगढ़ (बोलन नदी के किनारे) नामक स्थान पर कृषि का आरंभी हुआ।
चिरांद (बिहार) से हड्डियों के औजार एवं बुर्जहोम से मानव के साथ कुत्ता दफनाने के अवशेष मिले हैं।

हड़प्पा सभ्यता

सिंधु सभ्यता का पहला स्थल हड़प्पा था। जिसकी खोज वर्ष 1921 में दयाराम साहनी ने की थी।

हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख प्रजातियां अल्पाइन, मंगोलियन, भूमध्यसागरीय (सबसे ज्यादा) और प्रोटोआस्ट्रेलायड थे।
इस सभ्यता का पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीर पुर (उत्तर प्रदेश), उत्तरी पुरास्थल मांडा (जम्मू—कश्मीर) एवं दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद (महाराष्ट्र) है।
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार था और कुल क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर था।
हड़प्पा सभ्यता एक नगरी सभ्यता थी किंतु इस काल में मात्र 6 नगर परिपक्व अवस्था में मिलते हैं, जो निम्न हैं— हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, लोथल, कालीबंगा एवं बनावली।
पिग्गट महोदय ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है।
व्हीलर ने हड़प्पा सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता का उपनिवेश कहा है।
सर जॉन मार्शल ‘सिंधु सभ्यता’ शब्द का प्रयोग करने वाले पहले पुरात्वविद थे।
रेडियो कार्बन सी—14 जैसी नई विश्लेषण तकनीक से हड़प्पा सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. मानी गई है।
हड़प्पा से एक स्नानागार, एक ​श्रमिक आवास, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईंटों के वृत्ताकार चबूतरे एवं समाधि आर—37 (कब्रिस्तान) मिला है।
मोहनजोदड़ो से एक अन्नागार, एक विशाल स्नानागार, सभाभवन, पुरोहित आवास, कुम्भकारों के भट्ठों के अवशेष, सूती कपड़ा, हाथी का कपाल खंड, सीपी का बना हुआ पैमाना एवं कांसे की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं।
राणा घुण्डई के निम्न स्तरीय धरातल की खुदाई में घोड़े के दांत के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
चन्हूदड़ो से गुड़ियों के निर्माण हेतु कारखाने एवं लिपिस्टक के अवशेष मिले हैं।
लोथल से बंदरगाह, फारस की मुहरें, युगल शवाधान, घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियां एवं अग्निवेदिकाओं के अवशेष मिले हैं।
कालीबंगा हनुमानगढ़ में स्थित है। यह प्राक्—सैंधव संस्कृति है जहां जुते हुए खेतों का साक्ष्य मिले हैं। यहां से यज्ञ, हवन कुंड के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
धौलावीरा तीन खण्डों में विभाजित है। यहां से स्टेडियम एवं जलाशय के अवशेष मिले हैं।
हड़प्पा का नगर नियोजन आयताकार आकृति में किया गया था।
यह नगर दो भागों में विभाजित था। उन लोगों ने नगरों एवं घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
इनके घरों की खिड़कियां एवं दरवाजे मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलते थे, किंतु लोथल इसका अपवाद था।

लोथल एवं रंगपुर में चावल एवं बाजरे के उत्पादन का साक्ष्य मिला है।
बनवाली में मिट्टी का बना हुआ हल का खिलौना मिला है।
संभवत: हड़प्पा सभ्यता के लोग ही सर्वप्रथम कपास उगाना प्रारंभ किया।
लोथल एवं रंगपुर से घोड़े की मृण्मूर्तियां एवं सुरकोटड़ा से अस्थिपंजर मिला है।
मेसोपोटामिया के मुहरों पर वर्णित ‘मेलुहा’ शब्द सिंधु क्षेत्र का प्राचीन नाम है। दिलमुन एवं माकन व्यापारिक केन्द्र मेलुहा एवं मेसोपोटामिया के बीच स्थित ​थे।
इस सभ्यता में प्रकृति पूजा, शिव पूजा एवं कुबड़ वाला सांड का विशेष प्रचलन था।
हड़प्पावासी ऊनी एवं सूती वस्त्र दोनों का प्रयोग करते थे।
हड़प्पा सभ्यता में पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण एवं दाहसंस्कार तीनों का प्रचलन था।
हड़प्पा सभ्यता की अधिकांश मोहरें सेलखड़ी की बनी होती थीं।
हड़प्पा सभ्यता के पतन का सबसे प्रभावी कारण बाढ़ को माना जाता है।

ऋग्वैदिक काल

सबसे पहले ऐतरेय ब्राह्मण में राजत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ है।
‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उत्तरवैदिक काल में ही हुआ।
विदथ आर्यों की सर्वाधिक प्राचीन संस्था थी। इसे जनसभा कहा जाता था।
आर्यों की मुख्य जीविका पशुपालन एवं कृषि थी।
आर्यों द्वारा नमक, मछली एवं कपास का प्रयोग किए जाने का उल्लेख नहीं मिलता है।
आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा एवं प्रिय पेय सोम रस था।
आर्यों का समाज पितृ प्रधान था।
समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी। जिसका मुखिया ‘पिता’ होता था, जिसे कुलप कहा जाता था।
स्त्रियों की स्थिति सम्माननीय थी। वे अपने पति के साथ यज्ञ कार्यों में भी भाग लेती थी।
पर्दा प्रथा एवं बाल विवाह का प्रचलन नहीं था। विधवा विवाह, अंतर्जातीय विवाह एवं पुनर्विवाह की संभावना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
समाज में नियोग प्रथा का प्रचलन था। स्त्रियों का भी उपनयन संस्कार होता था।
स्त्रियां भी शिक्षा ग्रहण करती थी।
ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, अपाला एवं विश्वारा जैसी विदुषी स्त्रियों का जिक्र मिलता है।
संभवत: ऋग्वेद में अयस शब्द का प्रयोग तांबे एवं कांसे के लिए होता था।
ऋग्वैदिक काल में मंदिर या मूर्तिपूजा का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
मगध में निवास करने वाले लोगों को अथर्ववेद में व्रात्य कहा गया है।
उत्तरवैदिक काल में लोगों की जीविका का मुख्य आधार कृषि हो गई।
अथर्ववेद में एक जगह सभा को नरिष्ठा कहा गया है।