भारत में प्रथम पशु गणना 1919-20 में हुई थी और तब से यह पशुगणना हर 5 वर्ष बाद भारत में सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा की जाती है।
अब तक 19 पशुगणना 15 अक्टूबर, 2012 में की जा चुकी है।
गणना का कार्य राज्य पशुपालन विभागों की है।
विश्व में सबसे अधिक मवेशी भारत में है।
विश्व की कुल भैंसों का 57 प्रतिशत एवं गाय-बैलों का 14 प्रतिशत भारत में है।
19वीं पशुगणना के अनुसार देश में कुल 512.05 मिलियन यानि 51.2 करोड़ पशु एवं 729.2 मिलियन (72.9 करोड़) मुर्गियां है। पिछली गणना की तुलना में इस बार 3.33 प्रतिशत की कमी हुई है।
देश में लगभग 190.9 मिलियन (19.09 करोड़) गौवंश है।
देश का सर्वाधिक पशुधन उत्तरदेश व राजस्थान में तथा मुर्गियों में आन्ध्रप्रदेश है।
राजस्थान में कुल पशुधन में वृद्धि 1.89 प्रतिशत की हुई तथा कुल पशुधन 577.32 लाख तथा मुर्गियां 80.2 लाख है।
राजस्थान में पशु घनत्व है – 169
राजस्थान में सर्वाधिक गायें उदयपुर जिले में, भैंसें जयपुर जिले में, भेड़-बकरियां बाड़मेर में, घोड़े बीकानेर में एवं ऊंट सर्वाधिक जैसलमेर में पाये जाते हैं।
19 सितम्बर, 2014 को राजस्थान सरकार द्वारा ऊंट को पालतू श्रेणी में राज्य पशु घोषित किया गया है। ऊंट के वध व तस्करी को रोकने हेतु अधिनियम 2014 में बनाया गया है।
राजस्थान में देश के सर्वाधिक ऊंट, बकरियां एवं गधे हैं।
भारत दुग्ध उत्पादन में दुनिया का पहले स्थान पर है। दूसा अमेरिका व तीसरा चीन है।
राजस्थान उत्तरप्रदेश के बाद दूसरा स्थान पर है।
ऑपरेशन फ्लडः-
यह कार्यक्रम 1970 ई. में स्व. डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में चलाया गया। ऑपरेशन फ्लड का प्रमुख उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना, दुग्ध उत्पादकों को दूध का उचित मूल्य दिलवाना तथा उपभोक्ताओं तक अच्छी किसस्म के दूध व दुग्ध उत्पादों का वितरण सुनिश्चित करना था।
गौवंश:-
राज्य में सर्वाधिक गौवंश – उदयपुर व बीकानेर में
राज्य में न्यूनतम गौवंश – धौलपुर में
गिर –
मूल रूप से गुजरात के गिरि वन में पायी जाने वाली जाति है।
रैंडा तथा अजमेरा नामों से पुकारी जाने वाली यह नस्ल अजमेर, किशनगढ़, चित्तौड़गढ़, बूंदी भीलवाड़ा, पाली, कोटा व उदयपुर जिलों में पायी जाती है।
थारपारकर –
उत्पत्ति स्थान ‘मालाणी गांव’ जैसलमेर है।
इसे मालाणी या थारी नस्ल भी कहते हैं।
यह नस्ल जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, सांचौर (जालौर) में पायी जाती है।
राठी –
लाल सिंधी व साहीवाल की मिश्रित नस्ल।
दूध देने की दृष्टि से अग्रणी। राजस्थान की कामधेनु कहते हैं।
यह जैसलमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर के दक्षिणी-पश्चिमी भाग, व चुरू के कुछ भाग में प्रमुखतया से पायी जाती है।
नागौरी –
इस नस्ल की उत्पत्ति नागौर जिलें का सुहालक प्रदेश है।
इस नस्ल का रंग सफेद या भूरा, लंबे मुंह, पतली तथा मजबूत टांगे होती हैं।
इस नस्ल के बैल दौड़ने में तेज तथा कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त समझे जाते हैं।
नागौरी नस्ल प्रमुख रूप से जोधपुर का पूर्वी भाग, नोखा (बीकानेर) तथा रूपनगढ़ (अजमेर) में पायी जाती है।
कांकरेज –
मूल स्थान गुजरात का कच्छ का रन।
यह नस्ल भारवाहक एवं अच्छा दूध देने वाली है।
बाड़मेर, सांचौर व नेहड़ क्षेत्र जालौर, सिरोही
मालवी-
मूल स्थान मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र।
बैल भारवाही तथा गायें कम दूध देती हैं।
गाय व बैल मध्यम कद, गठीले बदन और सीधी कमर वाले होते हैं।
यह नस्ल मध्यप्रदेश राज्य की सीमा से लगे ज़िलों जैसे – बांसवाड़ा, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा व उदयपुर में पायी जाती है।
हरियाणवी –
मूल स्थान रोहतक, हिसार व गुडगांव (हरियाणा)
सिर ऊंचा उठा हुआ, चेहरा लम्बा एवं नुकीला होता है
यह नस्ल श्रीगंगानगर, चूरू, हनुमानगढ़ सीकर, जयपुर, झुंझुनूं में पायी जाती है।
सांचौरी –
यह कम दूध, कांकरेज नस्ल से मिलती-जुलती नस्ल है।
उदयपुर, पाली, सिरोही व सांचौर (नागौर) में पायी जाती है।
मेवाती (कोठी) –
हल जोतने व बोझा ढोने हेतु उपयुक्त।
अलवर, भरतपुर
राजस्थान में गौवंश की विदेशी नस्ल भी पायी जाती है –
जर्सी –
मध्य व पूर्वी राजस्थान
मूल स्थान अमेरिका
दूध देने में अग्रणी।
हॉलिस्टिन –
मूल स्थान – हॉलैण्ड व अमेरिका।
सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल।
भैंस वंश:-
राज्य में सर्वाधिक – जयपुर, अलवर, भरतपुर
राज्य में न्यूनतम – जैसलमेर
देश में सर्वाधिक भैंसे उत्तरप्रदेश में, राजस्थान दूसरे स्थान पर है।
राजस्थान में भैंस की मुख्यतः चार नस्लें पायी जाती हैं-
मुर्रा –
दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है तथा यह जयपुर, उदयपुर, अलवर, भरतपुर व गंगानगर जिलों में पायी जाती है।
इसे खुण्डी भी कहा जाता है।
जाफराबादी –
गुजरात का काठियावाड़ मूल स्थान है।
गुजरात से लगे हुए दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान के क्षेत्र
नागपुरी
बदवरी
सूरती
भेंड़:-
राजस्थान की जलवायु भेड़ पालन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त है, विशेषकार शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क जलवायु इनके लिए उपयुक्त होती है।
वर्ष 2007 में राज्य में भेड़ों की कुल संख्या 111.89 लाख थी। राज्य में सर्वाधिक भेड़ बाड़मेर जिले में 13.71 लाख थी।
इसके बाद जैसलमेर है।
न्यूनतम – बांसवाड़ा
भेंड की प्रमुख नस्ले इस प्रकार है –
जैसलमेरी:-
यह जैसलमेर में पाई जाती है।
नाली:-
हनुमानगढ़, चूरु, बीकानेर था झुँझुनूं जिलों में पाई जाती है। ये अधिक ऊन के
लिए प्रसिद्ध है। इसकी ऊन मोटी, घनी एवं लम्बे रेशे वाली होती है।
मालपुरी:-
इसे ‘‘देशी नस्ल’’ भी कहा जाता है।
यह जयपुर, दौसा, टोंक, करौली तथा सवाई माधोपुर जिलों में पाई जाती है।
मगरा:-
इसे चकरी व बीकानेरी चौकला भी कहते हैं। इससे प्राप्त ऊन के रेशे की लम्बाई 10 से 12 सेमी तक होती है। यह प्रतिवर्ष औसतन 2 किलोग्राम ऊन देती है।
इस नस्ल की भेड़ अधिकांशतः जैसलमेर, बीकानेर, चूरु, नागौर आदि में पायी जाती है।
पूगल:-
इनका उत्पत्ति स्थान बीकानेर की तहसील ‘‘पूगल’’ होने के कारण इस का नाम पूगल हो गया।
मारवाड़ी:-
राजस्थान की कुल भेड़ों में सर्वाधिक भेड़ें मारवाड़ी नस्ल (लगभग 45 प्रतिशत) की है। इन भेड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
ये राजस्थान में सर्वाधिक जोधपुर, बाड़मेर, पाली, दौसा, जयपुर आदि जिलों में पाई जाती है।
चोकला या शेखावाटी:-
इसे भारत की ‘मेरिनो’ भी कहा जाता है।
चूरु, झुंझुनूं व सीकर, बीकानेर ज़िले में पायी जाती है। इसे छापर नाम से भी जाना जाता है।
यह सबसे उत्तम किस्म की ऊन देने वाली नस्ल है। यह प्रतिवर्ष 1.4 से 2.3 किलो तक ऊन प्राप्त होती है।
सोनाड़ी (चनोथर):-
राजस्थान में बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, डूँगरपुर, उदयपुर जिलों में पाई
जाती है। प्रतिदिन 1 किलोग्राम दूध देने वाली इस भेड़ की ऊन का रेशा मोटा होता है। जब यह भेड़ जमीन पर घास चरती है तो इसके कान जमीन को स्पर्श करते हैं।
खेरी:-
जोधपुर, नागौर और पाली ज़िलों के घुमक्कड़ रेवड़ों में पाई जाने वाली इस नस्ल की भेड़ की ऊन सफेद और मध्यम किस्म के गलीचों के लिए उपयुक्त है।
1 thought on “राजस्थान में पशुधन”
Ishak gory mehlu
राज्य के पशु धन की अच्छी जानकारी।
पढ़कर अच्छा लगा।
राज्य के पशु धन की अच्छी जानकारी।
पढ़कर अच्छा लगा।