सती प्रथा
- राजस्थान में सबसे पहले सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा किया गया।
- ब्रिटिश प्रभाव से राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा को बूंदी नरेश राव विष्णु सिंह ने 1822 ई. में गैर-कानूनी घोषित किया।
सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने वाले अन्य रियासतें :-
रियासत | महाराजा | सन् |
बीकानेर | 1825 | |
अलवर | बन्नेसिंह | 1830 |
जयपुर | रामसिंह द्वितीय | 1844 |
मेवाड़ | महाराणा स्वरूपसिंह | 1861 |
डूंगरपुर | डूंगरसिंह | 1844 |
बांसवाड़ा | लक्ष्मणसिंह | 1846 |
प्रतापगढ़ | गणपतसिंह | 1846 |
जोधपुर | तख्तसिंह | 1848 |
कोटा | रामसिंह | 1848 |
कन्या वध का अंत
- कारण – कर्नल टॉड ने राजपूतों में जागीरों के छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाने और अपनी पुत्रियों को उचित दहेज देने में असमर्थ रहने को कन्या वध का कारण बताया है।
- राजस्थान में ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित होने के बाद सर्वप्रथम 1833 में कन्या वध को गैर-कानूनी घोषित करने वाला शासक कोटा महाराव रामसिंह था।
रियासत | महाराजा | सन् |
बूंदी | विष्णु सिंह | 1834 |
बीकानेर | रतनसिंह | 1837 |
जोधपुर | मानसिंह | 1839 |
मेवाड़ | महाराणा स्वरूपसिंह | 1844 |
त्याग प्रथा
- राजपूत जाति में विवाह के अवसर पर प्रदेश के व दूसरे राज्यों से चारण, भाट, ढोली आदि आ जाते थे और लड़की वालों से मुंह मांगी दान-दक्षिणा प्राप्त करने की हठ करते थे। इसी दान-दक्षिणा को ‘त्याग’ कहा जाता था।
- इस त्याग प्रथा की मांग को कन्या वध के लिए प्रायः उत्तरदायी ठहराया जाता था।
- सर्वप्रथम 1841 ई. में त्याग प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने वाला जोधपुर महाराजा मानसिंह था।
रियासत | महाराजा | सन् |
बीकानेर | रतनसिंह | 1844 |
जयपुर | सवाई रामसिंह द्वितीय | 1844 |
मेवाड़ | महाराणा स्वरूपसिंह | 1844 |
डाकन प्रथा
- सर्वप्रथम उदयपुर राज्य में महाराणा स्वरूपसिंह ने अक्टूबर, 1853 ई. में डाकन प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया।
मानव-व्यापार प्रथा का अंत
- कोटा राज्य में महाराव रामसिंह ने सर्वप्रथम 1831 ई. में मानव-व्यापार प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया।
रियासत | महाराजा | सन् |
बूंदी | विष्णु सिंह | 1832 |
जयपुर | सवाई रामसिंह द्वितीय | 1847 |
मेवाड़ | महाराणा शम्भू सिंह | 1863 |
- जयपुर के पॉलिटिकल एजेंट लुडगो के प्रयासों से जयपुर में समाधि प्रथा को 1844 ई. में गैर-कानूनी घोषित किया गया।
- राजस्थान में सर्वप्रथम बूंदी महाराव विष्णुसिंह एवं कोटा महाराव किशोर सिंह द्वितीय ने 1832 ई. में दास प्रथा पर रोक लगाई।
बाल विवाह निषेध –
- अजमेर के श्री हरविलास शारदा ने बाल-विवाह का घोर विरोध किया।
- उन्होंने 1929 ई. में बाल विवाह अवरोधक अधिनियम पारित करवाने का सफल प्रयास किया।
- उम्र – लड़का 18 वर्ष और लड़की की 14 वर्ष होनी चाहिए।