ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, अजमेर
- ख्वाजा सन 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज तृतीय के समय भारत आए और बाद में इन्होंने चिश्तियां परम्परा की नींव डाली।
- इनका जन्म फारस के संजरी नामक गांव में हुआ। ये हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य थे। इन्होंने अपना खानकाह अजमेर में बनाया। इनका इंतकाल 1233 ई. में अजमेर में हुआ।
- यह हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सद्भाव का सर्वोत्तम स्थान है।
- मुहम्मद गौरी ने इन्हें ‘सुल्तान-उल-हिन्द’ (हिन्द के आध्यात्मिक गुरु) की उपाधि दी।
- ख्वाजा साहब की दरगाह अजमेर में इल्तुतमिश ने बनवायी।
शेख हमीदुद्दीन नागौरी
- ये भी चिश्ती संप्रदाय के संत थे और नागौर आकर बस गये।
- इल्तुतमिश द्वारा शेख-उल-इस्लाम का पद अस्वीकार कर दिया।
- ये खेती से अपनी आजीविका चलाते थे।
- ख्वाजा साहब ने इन्हें ‘सुल्तान-उल-तरीकीन’ की उपाधि दी।
- इनकी मृत्यु 1274 ई. में हुई।
नरहड़ के पीर
- इनका नाम हजरत शक्कर पीर बताया जाता है। इनकी दरगाह चिड़ावा, झुंझुनूं के पास नहहड़ ग्राम में है।
- शेख सलीम चिश्ती इन्हीं के शिष्य थे।
- भावात्मक राष्ट्रीय एकता के प्रतीक नरहड़ के पीर की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है। यहां जन्माष्टमी के दिन उर्स का मेला भरता है। ये ‘बागड़ के धणी’ के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
पीर फखरूद्दीन
- ये दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के प्रमुख पीर है।
- गलियाकोट, डूंगरपुर में इनकी दरगाह है, जो दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
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