मानव नेत्र की कार्यप्रणाली एक अत्याधुनिक ऑटोफोकस कैमरे की तरह होती है।

नेत्र लगभग 2.5 सेंटीमीटर व्यास का एक गोलाकार अंग है।

श्वेत पटेल (Sclera)

नेत्र के चारों ओर एक श्वेत सुरक्षा कवच बना होता है जो अपारदर्शक होता है। इसे श्वेत पटल कहते हैं।

कॉर्निया (Cornea)

नेत्र के सामने श्वेत पटेल के मध्य में थोड़ा उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है। प्रकाश की किरणें इसी भाग से अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती है।

 परितारिका (Iris)

यह कॉर्निया के पीछे एक अपारदर्शी मांसपेशीय रेशों की संरचना है जिसके बीच में छिद्र होता है। इसका रंग अधिकांशतः काला होता है।

पुतली (Pupil)

परितारिका की बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। परितारिका की मांसपेशियों के संकुचन व विस्तारण से आवश्यकतानुसार पुतली का आकार कम या ज्यादा होता रहता है। तीव्र प्रकाश में इसका आकार छोटा हो जाता है एवं कम प्रकाश में इसका आकार बढ़ जाता है।

यही कारण है कि जब हम तीव्र प्रकाश में से मंद प्रकाश में जाते हैं तो कुछ समय तक नेत्र ठीक से देख नहीं पाते हैं। थोड़ी देर में पुतली का आकार बढ़ जाता है एवं हमें दिखाई देने लगता है।

नेत्र लेंस (Eye lens)

परितारिका के पीछे एक लचीले पारदर्शक पदार्थ का लेंस होता है जो मांसपेशियों की सहायता से अपने स्थान पर रहता है। कॉर्निया से अपवर्तित किरणों को रेटिना पर फोकसित करने के लिए मांसपेशियों के दबाव से इस लेंस की वक्रता त्रिज्या में थोड़ा परिवर्तन होता है। इससे बनने वाला प्रतिबिंब छोटा, उल्टा व वास्तविक होता है

जलीय द्रव (Aqueous Humour)

नेत्र लेंस व कॉर्निया के बीच एक पारदर्शक पतला द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव कहते हैं। यह इस भाग में उचित दबाव बनाए रखता है ताकि आंख लगभग गोल बनी रहे। साथ ही यह कॉर्निया व अन्य भागों को पोषण भी देता रहता है।

रक्त पटल (Choroid)

नेत्र के स्वेत पटेल के नीचे एक झिल्लीनुमा संरचना होती है जो रेटिना को ऑक्सीजन एवं पोषण प्रदान करती है। साथ ही आंख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण करके भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरुद्ध करती है।

दृष्टि पटल (Retina)

 रक्त पटेल के नीचे एक पारदर्शक झिल्ली होती है जिसे दृष्टि पटल कहते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें कॉर्निया एवं नेत्र लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकसित होती है। रेटिना में अनेक प्रकार सुग्राही कोशिकाएं होती है जो प्रकाश मिलते ही सक्रिय हो जाती है एवं विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती है। रेटिना से उत्पन्न प्रतिबिंब के विद्युत सिग्नल प्रकाश नाड़ी द्वारा मस्तिष्क को प्रेषित होते हैं। मस्तिष्क इस उल्टे प्रतिबिंब का उचित संयोजन करके उसे हमें सीधा दिखाता है।

काचाभ द्रव (Vitreous Humour)

नेत्र लेंस व रेटिना के बीच एक पारदर्शक द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहते हैं।

नेत्र जब सामान्य अवस्था में होता है तो अनंत दूरी पर रखी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर स्पष्ट बन जाता है। जब वस्तु नेत्र के पास होती है तो नेत्र लेंस की मांसपेशियां स्वतः एक तनाव उत्पन्न करती है जिससे नेत्र लेंस बीच में से मोटा हो जाता है। इससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है एवं पास की वस्तु का प्रतिबिंब पुनः रेटिना पर बन जाता है। लेंस की फोकस दूरी में होने वाले इस परिवर्तन की क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहा जाता है।

 यदि हम बहुत निकट से किसी वस्तु को स्पष्ट देखना चाहे तो हमें स्पष्ट प्रतिबिंब देखने में कठिनाई का अनुभव होता है। वस्तु की नेत्र से वह न्यूनतम दूरी जहां से वस्तु को स्पष्ट देख सकते हैं नेत्र का निकट बिंदु कहलाता है। सामान्य व्यक्ति के लिए यह दूरी 25 सेंटीमीटर होती है। इसी प्रकार नेत्र से अधिकतम दूरी जहां तक वस्तु को स्पष्ट देखा जा सकता है नेत्र का दूर बिंदु कहलाता है।

सामान्य नेत्रों की यह दूरी अनंत होती है। निकट बिंदु से दूर बिंदु के बीच की दूरी दृष्टि परास कहलाती है।

दृष्टि दोष एवं उनका निराकरण

उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियों में समंजन क्षमता कम होने से, चोट लगने से, नेत्रों पर अत्यधिक तनाव आदि अनेक कारणों से नेत्रों की समंजन क्षमता में कमी आ जाती है या उनकी क्षमता खत्म हो जाती है अथवा नेत्र लेंस की पारदर्शिता खत्म हो जाती है। नेत्र में दृष्टि संबंधी निम्न दोष प्रमुखता से होते हैं।

निकट दृष्टि दोष Mayopia or Short Sightedness

निकट दृष्टि दोष में व्यक्ति को निकट की वस्तुओं तो स्पष्ट दिखाई देती है किंतु दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देने लगती है। इस दृष्टि दोष का मुख्य कारण नेत्र लेंस की वक्रता का बढ़ जाना है। इस दोष से पीड़ित व्यक्ति के नेत्र में दूर रखी वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना से पहले ही बन जाता है। जबकि कुछ दूरी पर रखी वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना पर बनता है। एक प्रकार से उस व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर पास आ जाता है।

इस दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का अवतल लेंस नेत्र के आगे लगाया जाता है। अवतल लेंस अनंत पर स्थित वस्तु से आने वाली समांतर किरणों को इतना अपसारित करता है ताकि वे किरणें उस बिंदु से आती हुई प्रतीत हो जो दोष युक्त नेत्रों के स्पष्ट देखने का दूर बिंदु है।

वर्तमान में लेजर तकनीक का उपयोग करके भी इस दोष का निवारण किया जाता है।

दूर दृष्टि दोष Hypermetropia or Long Sightedness

दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती है परंतु पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। इस दोष में व्यक्ति को सामान्य निकट बिंदु से वस्तुएं धुंधली दिखाएं दिखती है, लेकिन जैसे-जैसे वस्तु को 25 सेंटीमीटर से दूर ले जाते हैं वस्तु स्पष्ट होती जाती है। एक प्रकार से दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति का निकट बिंदु दूर हो जाता है।

दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का उत्तल लेंस नेत्र के आगे लगाया जाता है। यह लेंस पास की वस्तु का आभासी प्रतिबिंब उतना दूर बनाता है जितना की दृष्टि दोष युक्त नेत्र का निकट बिंदु है। इससे पुनः नेत्र को निकट की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देने लगती है।

जरा दूरदर्शिता Presbyopia

आयु बढ़ने के साथ नेत्र लेंस एवं मांसपेशियों का लचीलापन कम होने से नेत्र की समंजन क्षमता कम हो जाती है। इस कारण उन्हें दूर दृष्टि दोष हो जाता है एवं वे पास की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाते हैं। कई बार उम्र के साथ व्यक्तियों को दूर की वस्तुएं भी धुंधली दिखाई देने लगती है। इस तरह के दोषों को में व्यक्ति को दूर व पास दोनों ही वस्तुओं को स्पष्ट देखने में दिक्कत आने लगती है। इनका निवारण करने के लिए द्वि-फोकसी (Bifocal) लेंस प्रयुक्त किए जाते हैं। इन लेंसों का ऊपरी भाग अवतल एवं नीचे का भाग उत्तल होता है।

दृष्टि वैषम्य दोष Astigmatism

दृष्टि वैषम्य दोष या अबिन्दुकता दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी ऊर्ध्वाधर व क्षैतिज रेखाएं एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। बेलनाकार लेंस का उपयोग करके इस दोष का निवारण किया जाता है।

मोतियाबिंद

व्यक्ति की आयु बढ़ने के साथ नेत्र लेंस की पारदर्शिता खत्म होने लगती है एवं उसका लचीलापन कम होने लगता है। इस कारण यह प्रकाश का परावर्तन करने लगता है एवं वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है इस दोष को मोतियाबिंद कहते हैं।

इस दोष को दूर करने के लिए नेत्र लेंस को हटाना पड़ता है। पूर्व में शल्य चिकित्सा द्वारा मोतियाबिंद को निकाला जाता दिया जाता था। नेत्र लेंस को निकाल देने से व्यक्ति को मोटा व गहरे रंग का चश्मा लगाना पड़ता था।

आधुनिक विधि में मोतियाबिंद युक्त नेत्र लेंस को हटाकर एक कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है जिसे इंट्रा ऑक्युलर ििनतraocukar lens लेंस कहते हैं।

लेंस क्षमता का si मात्रक डाइऑप्टर है।


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