- महासागरीय जल की निश्चित सीमा के अंतर्गत सतत एवं निर्दिष्ट दिशा में तीव्र संचलन को महासागरीय धारा कहते हैं।
- धाराएं धरातलीय भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों के समान ही होती है। सागरीय गतियों में धाराएं सर्वाधिक शक्तिशाली होती हैं, क्योंकि इनके द्वारा सागरीय जल हजारों किलोमीटर तक बहा लिया जाता है।
- धाराओं की उत्पत्ति में कोरियालिस बल, तापमान, लवणता व घनत्व में विभिन्नता, वायुदाब तथा हवाओं के साथ-साथ वाष्पीकरण एवं वर्षा का भी मुख्य योगदान होता है।
- तापमान के आधार पर महासागरीय धाराएं दो प्रकार की होती है – उष्ण धारा तथा शीत धारा।
- सामान्यतः निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की तरफ संचलन करने वाली धाराएं उष्ण होती हैं जबकि उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की तरफ संचलन करने वाली धाराएं शीत होती है। धाराओं को गति, आकार तथा दिशा में अंतर के आधार पर इन्हें कई प्रकारों में विभक्त किया जाता है।
धाराओं की उत्पत्ति के कारण –
- महासागरीय क्षेत्रों में तापांतर के कारण गर्म जल ठंडे जल (अधिक घनत्व के कारण गर्म जल की अपेक्षा नीची सतह) की ओर धारा के रूप में प्रवाहित होता है। संतुलन स्थापित करने के लिए ठंडा जल अधोप्रवाह के रूप में गर्म जल की ओर स्थानांतरित होता रहता है।
- लवणता में अंतर भी जलीय संचलन को प्रभावित करता है। कम लवणीयता वाला जल अधिक लवणीयता वाले जल की तरफ संचलित होता है।
- भूमध्य सागर में अटलांटिक महासागर का जल धारा के रूप में भूमध्य सागर की ओर संचलित होता है जबकि संतुलन स्थापित करने हेतु भूमध्य सागर का जल अधोप्रवाह के रूप में अटलांटिक महासागर की ओर संचलित होती है।
- पृथ्वी पर संचलित स्थायी पवनें भी धाराओं की उत्पत्ति एवं उनकी दिशा के निर्धारण में मुख्य भूमिका निभाती है।
- पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण धाराओं का मार्ग प्रायः गोलाकार हो जाता है। इसके कारण धाराएं उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती है।
- धारा की उत्पत्ति एवं दिशा निर्धारण में तटीय आकार एवं जलमग्न बाधाओं आदि का भी प्रमुख योगदान होता है।
हिंद महासागरीय धाराएं
ठंडी जल धाराएं
– पश्चिम ऑस्ट्रेलिया धारा
गर्म जल धाराएं
– उत्तर पूर्वी मानसून धारा
– दक्षिणी-पश्चिमी मानसून धारा
– दक्षिण विषुवतीय धारा
– मोजाम्बिक धारा
– अगुलहास धारा
– लीउविन धारा - अटलांटिक महासागर की प्रमुख धाराएं
ठंडी जल धाराएं
– फाकलैंड धारा
– बेंगुएला धारा
– कनारी धारा
– लेब्राडोर धारा
– पूर्वी ग्रीनलैंड की धारा
– इर्मीन्जर धारा - गर्म जल धाराएं
– उत्तरी विषुवतीय धारा
– द. विषुवतीय धारा
– प्रति विषुवतीय धारा
– गिनी धारा
– ब्राजील धारा
– गल्फस्ट्रीम धारा
– फ्लोरिडा धारा
-उत्तरी अटलांटिक धारा - प्रशांत महासागरीय जलधाराएं
ठंडी जल धाराएं
– ओयाशियो या क्यूराइल धारा
– कैलिफोर्निया धारा
– पेरू या हम्बोल्ट धारा
गर्म जल धाराएं
– उत्तरी विषुवतीय धारा
– दक्षिणी विषुवतीय धारा
– प्रतिविषुवतीय धारा
– क्यूरोशियो धारा
– पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा
– अलास्का धारा
– एल निनो धारा
सारगैसो सागर
- उत्तरी अटलांटिक महासागर में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फस्ट्रीम धारा एवं कनारी धारा के द्वारा एक प्रतिचक्रवातीय प्रवाह क्रम पाया जाता है। इसमें सामान्यतः शांत एवं गतिहीन जल पाया जाता है जिसमें सारगैसम घास के व्यापक पैमाने पर पाए जाने के कारण इसे सारगैसो सागर कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में ही अटलांटिक महासागर की सर्वाधिक लवणता पाई जाती है।
- लेब्राडोर शीत धारा एवं गल्फस्ट्रीम गर्म धारा के मिलने से न्यूफाउंडलैण्ड के पास ग्रैंड बैंक में मछली उद्योग के लिए आदर्श स्थिति उत्पन्न होती है।
- कालाहारी (अफ्रीका) एवं अटाकामा (दक्षिण अमेरिका) जैसे मरूस्थलों के उदगम में क्रमशः बेंगुएला एवं पेरू ठंडी धाराओं का प्रमुख योगदान है।
- ग्रेट ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, हॉलैण्ड आदि देशों का तापमान सर्दियों में भी गल्फस्ट्रीम धारा के वृद्धिमान भाग उत्तरी अटलांटिक धारा के कारण अपेक्षाकृत अधिक रहता है।
- धाराएं पृथ्वी के क्षैतिज ऊष्मीय संतुलन को स्थापित करने में पर्याप्त मदद करती है।
एल निनो तथा ला निनो
- वर्तमान में एल निनो को एक मौसमी परिघटना के रूप में लिया जाता है। एल निनो का संबंध पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल के तापमान में वृद्धि तथा ला निना का संबंध पश्चिमी प्रशांत महासागर के ऊष्मन से है।
- एल निनो के सक्रिय होने पर पेरू तट के पास असामान्य वर्षा जबकि दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में सूखे की स्थिति होती है।
ला निना का आविर्भाव पश्चिमी प्रशांत महासागर में होता है। इसके कारण दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा होती है।