जैव-विकास की क्रियाविधि एवं नई जातियों के उद्भवन की प्रक्रिया पर अनेक वैज्ञानिकों ने सिद्धान्त प्रस्तुत किए । लेमार्क, डार्विन एवं डीव्रीज़ उनमें प्रमुख थे

लेमार्क ने उपार्जित लक्षणों की वंशागति को जैवविकास एवं नई जाति के उद्भव हेतु आधार बनाया। इसकी आलोचना हुई। कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने लेमार्कवाद को नए रूप में प्रस्तुत कर जीवों पर वातावरण के प्रभाव को प्रदर्शन किया है। इसे नवलेमार्कवाद कहते हैं।

डार्विन अपने सिद्धान्त के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाये। उनके सिद्धान्त की भी पर्याप्त आलोचना हुई किन्तु बाद में आनुवंशिकी के ज्ञान, समष्टियों की आनुवंशिकी, जीन-प्रवाह, विविधता का आनुवंशिक आधार आदि के संदर्भ से प्राकृतिक वरण को पुनः सप्रमाण प्रस्तुत किया गया। उनके इस नए सिद्धान्त को नवडार्विनवाद या सिंथेटिक थ्योरी कहा गया।

नवडार्विनवाद के पक्षधरों ने सूक्ष्म जीवों में चरण प्रभाव को दर्शाया। इंग्लैण्ड के औद्योगिक क्षेत्रों में पतंगों पर मेलेनिजम, मच्छरों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध, सिकलसेल एनिमिया जैसे उदाहरण प्राकृतिक वरणवाद के पक्ष में प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करने के साथ ही जैव-विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट करने में सहायक हुए हैं।

डार्विन ने प्राकृतिक वरणवाद का विचार मनुष्य द्वारा जन्तुओं एवं पौधों में जनन संबंधी प्रयोग द्वारा किए जाने वाले कृत्रिम वरण को देखकर आया था। वरण नई जातियों की उत्पत्ति के लिए महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कृत्रिम चयन या वरण से विशिष्ट दिशा में वरण प्रभाव बनता है जिससे जीन एवं एलील फ्रिक्वेंसी में अन्तर आता है जो कि जैव विकास की आवश्यक प्रक्रिया है। इसी से नई ब्रीड, स्ट्रेन्स, किस्में, प्रजाति एवं उपजातियाँ अस्तित्व में आई हैं।

डार्विन ने अनुकूलन की क्षमता को प्रत्येक जीवधारी की विशेषता बतलाया था। अनुकूलनों का भी आनुवंशिकीय आधार होता है। जे. एवं ई. लेडरबर्ग ने बैक्टीरिया में रेप्लिका प्लेटिंग प्रयोग का प्रदर्शन कर अनुकूलन की उत्पत्ति में उसके आनुवंशिक आधार उत्परिवर्तन की प्रक्रिया को दर्शाया तथा वरण की प्रक्रिया को प्रमाणित किया।

डीव्रीज ने ओइनोथेरा लेमार्किया नामक पौधे के अवलोकनों के आधार पर आकस्मिक परिवर्तनों को विकास का मुख्य कारण बतलाया।

1. डार्विन द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक वरणवाद का सिद्धान्त निम्न में से किन तथ्यों पर आधारित था?

अ. अंगों के उपयोग एवं अनुपयोग से परिवर्तन

ब. अत्यधिक जनन दर, जीवन-संघर्ष एवं योग्यतम की उत्तरजीविता

स. उपार्जित लक्षणों की वंशागति

द. उत्परिवर्तन

उत्तर— ब

उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त दिया था—

अ. डी ब्रीज 

ब. लेमार्क

स. रसेल

द. डार्विन

उत्तर— ब

3. औद्योगिक अतिकृष्णा का उदाहरण निम्न में से किस जन्तु में देखा गया?

अ. सिल्क मॉथ

ब. मधुमक्खी

स. पेपर्ड मॉथ

द. ड्रॉसोफिला

उत्तर— स

4. सिकल सेल एनिमिया रोग में—

अ. लाल रक्त कणिकाएं गोलाकार हो जाती हैं।

ब. लाल रक्त कणिकाएं हंसिए के आकार की हो जाती हैं।

स. रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है।

द. लाल रक्त कणिकाएं हंसिए की आकार की हो जाती हैं तथा उनकी संख्या में अत्यधिक कमी आती है।

उत्तर— द

5. सिकल सेल एनिमिया रोग का फैलाव है—

अ. यूरोप महाद्वीप में 

ब. उत्तरी एवं दक्षिण अमेरिका में

स. अफ्रीका में

द. सम्पूर्ण संसार में

उत्तर— स

6. लेमार्कवाद आधारित है—

अ. उत्परिवर्तन

ब. उपार्जित लक्षण 

स. जीवन संघर्ष

द. पुनरावर्तन

उत्तर— ब

7. डार्विन द्वारा लिखित पुस्तक ‘ ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ कब प्रकाशित हुई थी?

अ. 1859 ई. में

ब. 1809 ई. में

स. 1857 ई. में

द. 1869 ई. में

उत्तर— अ

8. प्राकृतिक वरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया था—

अ. लेमार्क 

ब. डार्विन 

स. वेलेस 

द. विजमान

उत्तर— ब

9. लेमार्क का ​जैव विकास का सिद्धांत कहलाता है—

अ. प्राकृतिक वरण 

ब. उपार्जित लक्षणों की वंशागति

स. व्यक्ति विकास जाति विकास को दोहराता है।

द. कृत्रिम वरण।

उत्तर— ब

10. प्राकृतिक चयन का वास्तविक अर्थ है- (पी.एम.टी. 2003)

अ. अनुपयुक्त का लोप 

ब. योग्यता की उत्तरजीविता

स. भेदकर प्रजनन

द. जीवन संघर्ष

उत्तर- ब

11. आधुनिक संश्लेषणात्मक सिद्धान्त के अनुसार जैव विकास निर्भर करता है-

अ. उत्परिवर्तन एवं प्राकृतिक चयन पर

ब. उत्परिवर्तन, जननिक अलगाव एवं प्राकृतिक चयन पर

स. जीन पुर्नमिश्रण एवं प्राकृतिक चयन पर

द. उपरोक्त सभी कारकों पर

उत्तर- द

12. कुछ जीवाणु स्ट्रेप्टोमाइसिन युक्त माध्यम में पनपने में समर्थ होते हैं, इसका कारण हैं-

(सी.बी.एस.ई. 2002)

(अ) प्राकृतिक चयन (ब) प्रेरित उत्परिवर्तन

(स) जननात्मक पृथक्करण (द) आनुवंशिक विचलन

उत्तर- अ

13. कार्बनिक विकास हेतु डार्विन और वैलेस ने निम्न में से कौनसा क्रम प्रतिपादित किया था-

(सी.बी.एस.ई. 2003)

अ. अति उत्पादन समष्टि के आकार में स्थिरता, विभिन्नताएँ, प्राकृतिक वरण

ब. विभिन्नताएं, प्राकृतिक वरण, अति उत्पादन, समष्टि के आकार में स्थिरता

स. अति उत्पादन, विभिन्नताएँ, समष्टि के आकार में स्थिरता, प्राकृतिक वरण

द. विभिन्नताएं, समष्टि के आकार में स्थिरता, अति उत्पादन, प्राकृतिक वरण

उत्तर- द

14. डार्विन ने प्रकृतिवरणवाद सिद्धान्त में कार्बनिक विकास के संदर्भ में निम्न में से किसकी भूमिका पर विश्वास नहीं किया था-

(सी.बी.एस.ई. 2003)

अ. जीवन संघर्ष

ब. विच्छिन्न विभिन्नताएँ

स. परजीवी एवं परभक्षी को प्राकृतिक शत्रु के रूप में

द. योग्यतम की उत्तरजीविता

उत्तर- स

15. पौधों में विविधिकरण हुआ- (सी.बी.एस.ई. 2004)

अ. लम्बे समय तक जैव विकासीय परिवर्तनों के कारण

ब. आकस्मिक उत्परिवर्तन के कारण

स. पृथ्वी पर अचानक

द. बीज प्रकीर्णन के द्वारा

उत्तर- अ

16. निम्न में से कौन-सी घटना जैव-विकास में डार्विन के सिद्धान्त का समर्थन करती है-

अ. ट्रान्सजेनिक जन्तुओं का विकास

ब. क्लोनिंग द्वारा डॉली नामक भेड़ का उत्पादन

स. पीड़कनाशी प्रतिरोधक कीटों की प्रचुरता

द. स्टेम कोशिकाओं से अंग प्रत्यर्पण हेतु अंगों का विकास

उत्तर- स

‘ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ नामक पुस्तक किसने लिखी थी?

(a) लेमार्क
(b) हरगोविंद खुराना
(c) डार्विन
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर- c