आर्थ्रोपोडा (Arthropoda) संघ

 

आर्थ्रोपोडा एक ग्रीक शब्द है, जो दो शब्दों से मिल कर बना है (Arthros = joint संधि + podas = foot उपांग) अर्थात् इस संघ में आने वाले जन्तुओं के उपांग संधियुक्त होते हैं।
यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। जन्तु जगत की 80% से अधिक (लगभग दो तिहाई) जातियां इसमें हैं।

मुख्य लक्षण (Main Characteristics)

इस संघ के जन्तु सभी प्रकार के आवासों (Habitats) में पाये जाते हैं। ये समुद्रीय जल, स्वच्छ जल, स्थलीय, वायवीय, परजीवी आदि हैं।

ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरकी, विखंडित एवं प्रगुही जन्तु हैं।

शरीर के ऊपर काइटिन से बना खण्डीय कंकाल पाया जाता है जो समय-समय पर नवीकृत किया जाता है।

शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में विभाजित होता है। इनमें संधियुक्त पाद पाये जाते हैं।

संघ के सदस्यों में विखण्डी खण्डीभवन ( Metameric segmentation) पाया जाता है।

संवेदी अंग जैसे— श्रृंगिकाएं, संयुक्त नेत्र (Compound eyes), सरल नेत्र या नेत्रक (Ocilli), संतुलनपुटी (स्टेटोसिस्ट) उपस्थित होते हैं।

पाचन तंत्र पूर्ण होता है तथा विभिन्न पोषण व्यवहार की उपस्थिति के आधार पर विशिष्ट मुखांग पाये जाते हैं।

उत्सर्जन मैलपिगी नलिकाओं (Malpighian tubules) या हरित ग्रंथियों (Green glands) के द्वारा होता है।

परिसंचरण तंत्र (Circulatory system) खुला (Open) प्रकार का होता है। रक्त वाहिनियां अनुपस्थित होती हैं। हृदय (Heart) पृष्ठ सतह पर स्थित होता है तथा रक्त पात्र (Blood sinuses) पाये जाते हैं।

श्वसन अंग क्लोम, पुस्त फुफ्फुस (Book lung) या पुस्त क्लोम (Book gills) अथवा श्वसनिकाओं (Trachea) के द्वारा होता है।

तंत्रिका तंत्र में पृष्ठ तंत्रिका वलय व अधर तंत्रिका रज्जु पाया जाता है।

नर एवं मादा पृथक होते हैं।

संघ के सदस्य अण्डज (Oviparous) या अण्डजरायुज (Ovoviviparous) होते हैं तथा परिवर्धन सामान्यतः लार्वा द्वारा होता है, कुछ में अनिषेकजनन (Parthenogenesis) भी पाया जाता है।

उदाहरण-

आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट — रेशमकीट (बांबिक्स), मधुमक्खी (ऐपिस), लैसिफर (लाख कीट)
रोग वाहक कीट— एनाफलीज, क्यूलेक्स, एडीज, पेरीपेटस, पेलिमोन, कनखजुरा, तिलचट्टा, मक्खी, तितली, शलभ, झिंगुर, बिच्छु, दीमक, टिड्डा, केकड़ा आदि।

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