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बौद्ध दर्शन

बौद्ध मत का प्रतिपादन गौतम बुद्ध ने किया था। इस दर्शन के प्रमुख सिद्धांत निम्नप्रकार हैं’

चार आर्य सत्य
प्रथम आर्य सत्य
द्वितीय आर्य सत्य

यह द्वादशनिदान 3 निदानों में विभक्त हैं-

1. अतीत- जन्म सम्बन्धी

2. वर्तमान- जीवन सम्बन्धी निदान

3. भविष्य- जीवन से सम्बन्ध निदान

1.अविद्या – अविद्या का अर्थ विद्या का अभाव है अर्थात् अज्ञात। चार आर्य- सत्यों के ज्ञान का अभाव ही अज्ञात हैं।

2.संस्कार – यह कर्म हैं।

3.विज्ञान – यह विजानन हैं।

4.नामरूप – यह पंचस्कंध की अवस्था हैं।

5.षड़ायतन- पांच इन्द्रियों और मन को मिलाकर।

6.स्पर्श – यह इन्द्रिय और विषय के सम्पर्क या संयोग की अवस्था है। स्पर्श विषयानुभूति की अवस्था हैं।

7.वेदना – अनुभव करने का नाम (सुख-दुःख)

8.तृष्णा – यह विषयों के प्रति आसक्ति हैं। बौद्ध दर्शन में तृष्णा ही जन्म और मरण का यथार्थ कारण माना गया हैं।

9.उपादान – सांसारिक विषयों की उत्कष्ट अभिलाषा।

10.भव – जन्म ग्रहण की प्रवृत्ति – पुनर्जन्म

11.जाति – जन्म ग्रहण करना ही जाति है। जाति को पंचस्कन्धों के स्फुरण की अवस्था माना गया है। व्यक्ति भव-चक्र में पड़कर शरीर धारण करता है। इसी शरी धारण करने की क्रिया का नाम जाति है।

12.जरामरण – जरा का अर्थ बुढ़ापा और मरण का अर्थ मृत्यु या विनाश है। यही दुःख है।

द्वादश निदान को ही बौद्ध दर्शन में दुःख समुदाय कहा गया है। यही दुःख का करण (समुदाय) है। बिना कारण के कार्य नहीं उत्पन्न होता, यही कार्य कारण नियम है।

दुःख का यथार्थ कारण तृष्णा है।

जन्म-मरण का कारण कोई अदृश्य शक्ति, अज्ञात ईश्वर नही।

प्रतीत्य-समुत्पाद

प्रतीत्य- समुत्पाद से सर्वप्रथम कर्मवाद की स्थापना होती है।
यह सिद्धांत ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं बौद्ध धर्म का मूल मंत्र है।
प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है-
किसी वस्तु के होने पर (प्रतीत्य), किसी दूसरी वस्तु की उत्पत्ति होती है। (समुत्पाद)
जीवन के सारे कार्य, जैसे- जन्म, मरण, दुःख, खुशी आदि कार्य एवं कारण पर निर्भर करते है।

तृतीय आर्य सत्य
चतुर्थ आर्य सत्य

इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं-

1.सम्यक् दृष्टिः- अविद्या के कारण ही मिथ्या-दृष्टि उत्पन्न होती है। विवके द्वारा सत्य-असत्य, सदाचार-दुराचार को परखने की दृष्टि । पालि निकायों में मिथ्या दृष्टि को विपल्लासा कहा है।

2.सम्यक् संकल्पः- इच्छा और हिंसा से रहित संकल्प।

3.सम्यक् वाक्ः- अनुचित वचन का त्याग ही सम्यक् वाणी है। अनुचित वचन चार प्रकार के हैः मृषा-वाचाः मिथ्या वचन

4.सम्यक् कर्मान्त-

5.सम्यक् आजीव-

6.सम्यक् व्यायाम –

7.सम्यक् स्मृति-

सांसारिक निःसारता के ज्ञान को सदैव बनाए रखना।
ज्ञात विषयों का यथार्थ स्मरण हैं। जिन विषयों का सम्यक् ज्ञान हो चुका हैं उन्हें सतत स्मरण करना चाहिए।

8.सम्यक् समाधि-

मध्यम मार्ग
त्रिरत्न

1. शील- आचरण
2. समाधि- मनन
3. प्रज्ञा- ज्ञान

पंचशील

क्षणभंगवाद (क्षणिकवाद/अनित्यवाद)

अर्थक्रियाकारित्व

अनात्मवाद

पंच स्कन्द

रूप स्कन्द

वेदना स्कंध-

संज्ञा स्कन्ध-

संस्कार स्कंध-

विज्ञान स्कन्ध-

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