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सल्तनतकालीन शासन व्यवस्था: भारत में चरखे का पहला उल्लेख मिलता है।

दीवान-ए-विजारत के अन्य प्रमुख अधिकारी निम्न थे-

मुशरिफ-ए-मुमालिक पर प्रान्तों एवं अन्य विभागों से प्राप्त होने वाली आय और उसके व्यय का लेखा-जोखा रखने का उत्तरदायित्व था।
मुस्तौफी-ए-मुमालिक महालेखा परीक्षक होता था।
वकील-ए-सुल्तान का गठन नासिरुद्दीन महमूद के काल में वजीर की सहायता एवं अन्य सैन्य व्यवस्था की देख-रेख के लिए किया गया था, किन्तु अधिक शक्तिशाली होने के कारण इस पद को समाप्त कर दिया गया।
मजूमदार आय-व्यय को ठीक रखता था।
आमिल राजस्व अधिकारी होता था।
दीवान-ए-अर्ज:-
यह सैन्य विभाग था, जिसका अधिकारी ‘आरिज-ए-मुमालिक’ कहलाता था। इसका गठन बलबन ने किया था।

सैनिक प्रशासन
सल्तनत काल
न्याय प्रशासन
प्रांतीय न्यायालय
राजस्व प्रशासन-

राज्य की समस्त भूमि चार वर्गों में विभाजित थी:-

सल्तनत काल में सामान्यतः 5 प्रकार के कर प्रचलित थे-

भू-राजस्व निर्धारण के तीन प्रमुख विधियां थी – बंटाई, मुक्ताई और मसाहत।
  1. बंटाई – इसके अंतर्गत वास्तविक उपज में से राज्य के हिस्से का निर्धारण किया जाता था। इसे गल्ला बख्शी, किस्मत-ए-गल्ला तथा हासिल भी कहा जाता था। बंटाई भी तीन प्रकार की होती थी।
    खेत बंटाई के अंतर्गत खड़ी फसल या फसल बोने के तुरन्त बाद कर निर्धारित किया जाता था।
    लंक बंटाई के तहत भूसे से अलग किये बिना फसल का सरकार व किसान के बीच बंटवारा होता था।
    रास बंटाई के तहत भूसा अलग करने के बाद अनाज का बंटवारा होता था।
  2. मुक्ताई – यह कर निर्धारण की मिश्रित प्रणाली थी। इसमें किसान और सरकारी कर्मचारी आपसी समझौते से उपज का आकलन करते थे। इसे मुगल काल में कनकुत कहा जाता था।
  3. मसाहत – यह भूमि की पैमाइश पर आधारित व्यवस्था थी, जिसमें जोती-बोई गयी जमीन की माप के आधार पर एक मानक राजस्व निर्धारित किया जाता था।
सल्तनतकालीन अर्थव्यवस्था
खानदेश
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