सल्तनतकालीन शासन व्यवस्था: भारत में चरखे का पहला उल्लेख मिलता है।

दीवान-ए-विजारत के अन्य प्रमुख अधिकारी निम्न थे-

मुशरिफ-ए-मुमालिक पर प्रान्तों एवं अन्य विभागों से प्राप्त होने वाली आय और उसके व्यय का लेखा-जोखा रखने का उत्तरदायित्व था।
मुस्तौफी-ए-मुमालिक महालेखा परीक्षक होता था।
वकील-ए-सुल्तान का गठन नासिरुद्दीन महमूद के काल में वजीर की सहायता एवं अन्य सैन्य व्यवस्था की देख-रेख के लिए किया गया था, किन्तु अधिक शक्तिशाली होने के कारण इस पद को समाप्त कर दिया गया।
मजूमदार आय-व्यय को ठीक रखता था।
आमिल राजस्व अधिकारी होता था।
दीवान-ए-अर्ज:-
यह सैन्य विभाग था, जिसका अधिकारी ‘आरिज-ए-मुमालिक’ कहलाता था। इसका गठन बलबन ने किया था।

सैनिक प्रशासन
  • सल्तनत की शासन व्यवस्था मुख्य रूप से सैनिक शक्ति पर आधारित थीं गयासुद्दीन तुगलक ने वसियत-ए-हश्म (वेतन रजिस्टर) तैयार करवाया तथा स्वयं उसकी जांच की।
  • केन्द्रीय या सुल्तान की सेना – हश्म-ए-कल्ब या कल्ब-ए-सुल्तानी।
  • प्रांतपतियों की सेना – हश्म-ए-अतरफ।
  • सुल्तान की व्यक्गित सेना, जो सुल्तान की सेवा में रहती थी, उन्हें खास-ए-खैल कहा जाता था। शाही घुड़सवार सवार-ए-कल्ब कहलाते थे। पैदल सैनिकों को पायक कहा जाता था, ये सामान्यतः हिन्दू, दास, नीच जाति के गरीब होते थे जो घोड़े नहीं रख सकते थे। हाथी सेना शहना-ए-पील के अधीन होती थी।
  • दस सैनिकों का सेनानायक अमीर-ए-दह, सौ सैनिकों का सेनानायक अमीर-ए-सदा, एक हजार सैनिकों का सेना नायक अमीर-एझारा, दस हजार सैनिकों का सेना नायक अमीर-ए-तुमन कहलाता था।
  • जियाउद्दीन बरनी के अनुसार सेना की सबसे छोटी इकाई सरखेल तथा सबसे बड़ी इकाई खान के अधीन रहती थी। खान के ऊपर सुल्तान होता था।
  • सरखेल – 10 घुड़सवारों की टुकड़ी का प्रधान
  • सिपहसलार – 10 सरखेल (100 घुड़सवार)
  • अमीर – 10 सिपहसलार
  • मलिक – अमीर
  • खान – 10 मलिक
  • सुल्तान – 10 खान
सल्तनत काल
  • किलों की दीवारें तोड़नें, बारूदी गोले फेंकने वाले यंत्र को मंगलीक या अर्राद कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के युद्धइंजनों का प्रयोग किया जाता था; जैसे चर्ख (शिला प्रक्षेपास्त्र) सवत् सुरक्षित गाड़ी, गरगज चलायमान मंच, फलाखून गुलेल इत्यादि
    शत्रु सेना की गतिविधियों की सूचना तलेअह एवं यजकी नामक गुप्तचर देते थे।
न्याय प्रशासन
  • सुल्तान, सद्र-उस-सुदूर, काजी-उल-कुजात आदि न्याय से सम्बद्ध सर्वोच्च अधिकारी थे। अलाउद्दीन ने न्याय से सम्बन्धित एक नया विभाग ‘दीवान-ए-रियासत’ कायम कियां
  • मुस्लिम कानून के चार स्रोत थे- कुरान, हदीस, इजमा और कयास।
  • कुरान, मुस्लिम कानून का प्रमुख स्रोत थां हदीस, पैगम्बर के कथनों एवं कार्यों का संकलन है। इजमा मुजतहिद द्वारा व्याख्यायित कानून है तथा कयास तर्क या विश्लेषण पर आधारित कानून थां इन्हीं के आधार पर न्याय किया जाता था।
  • सामान्य कानून (व्यापार आदि से सम्बद्ध) तथा फौजदारी कानून मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों पर समान रूप से लागू होते थे।
  • बड़ी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में काजी और मुफ्ती होते थे जो मुसलमानों फौजदारी व दीवानी तथा हिन्दुओं के फौजदारी मामलों में न्याय करते थे।
  • गैर-मुस्लिमों के सामाजिक और धार्मिक मामलों में सल्तनत का हस्तक्षेप नाममात्र का होता था। ये मामले प्रायः विद्वान पंडित एवं ब्राह्मणों द्वारा सुलझाए जाते थे।
प्रांतीय न्यायालय
  • गवर्नर का न्यायालय – इसके प्रमुख को वली कहा जाता था, जो काजी-ए-सूबा की सहायता से न्याय करता था तथा इसके निर्णय के विरुद्ध केन्द्रीय न्यायालय में अपील की जा सकती थी।
  • काजी-ए-सूबा- यह मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर सुल्तान द्वारा नियुक्त किया जाता था तथा दीवानी और फौजदारी मुकद्दमों का फैसला करता था।
  • दीवान-ए-सूबा- यह केवल भू-राजस्व संबंधी मामलों पर ही फैसला देता था।
  • सद्रे-सूबाः- इसका अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित था। मुफ्ती, मुहतसिब, दादबक आदि न्यायिक पदाधिकरी थे।
राजस्व प्रशासन-

राज्य की समस्त भूमि चार वर्गों में विभाजित थी:-

  • इक्ता – इसका लगान वसूलने वाला अधिकारी वली कहलाता था। यह भूमि इक्तादारों को दी जाती थी। ख्वाजा वली के कार्यों का निरीक्षण करता था।
  • खालसा – केन्द्र के नियंत्रण वाली इस भूमि से चौधरी एवं मुकद्दम राजस्व वसूल करते थे।
    इनाम (वक्फ) – पुरस्कारस्वरूप दी गई यह भूमि वंशानुगत एवं कर मुक्त थी।
    सामंतों की भूमि – इस भूमि से निश्चित मात्रा में प्रतिवर्ष कर प्राप्त होता था। यह मुख्यतः हिन्दू राजाओं और जमींदारों को दी जाती थीं

सल्तनत काल में सामान्यतः 5 प्रकार के कर प्रचलित थे-

  • उश्र – यह सिर्फ मुसलमानों से 5 से 10 प्रतिशत तक लिया जाता था।
    खराज – यह गैर-मुस्लिमों से लिया जाता था। जो उपज का 1/3 से 1/2 भाग लिया जाता था।
    खुम्स – युद्ध में लूट का धन होता था। इसमें राज्य 1/5 भाग अपने पास तथा शेष सैनिकों में बांट दिया जाता था। अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद तुगलक ने 4/5 भाग अपने पास रखा।
    जकात – मुसलमानों से लिया जाने वाला धार्मिक कर, जो आय का 2.5 प्रतिशत होता था।
    जजिया – यह जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा के बदले गैर-मुसलमानों से लिया जाता था। यह सम्पन्न वर्ग से 40 टंका, मध्यम वर्ग से 20 टंका तथा सामान्य वर्ग से 10 टंका प्रतिवर्ष लिया जाता था।
भू-राजस्व निर्धारण के तीन प्रमुख विधियां थी – बंटाई, मुक्ताई और मसाहत।
  1. बंटाई – इसके अंतर्गत वास्तविक उपज में से राज्य के हिस्से का निर्धारण किया जाता था। इसे गल्ला बख्शी, किस्मत-ए-गल्ला तथा हासिल भी कहा जाता था। बंटाई भी तीन प्रकार की होती थी।
    खेत बंटाई के अंतर्गत खड़ी फसल या फसल बोने के तुरन्त बाद कर निर्धारित किया जाता था।
    लंक बंटाई के तहत भूसे से अलग किये बिना फसल का सरकार व किसान के बीच बंटवारा होता था।
    रास बंटाई के तहत भूसा अलग करने के बाद अनाज का बंटवारा होता था।
  2. मुक्ताई – यह कर निर्धारण की मिश्रित प्रणाली थी। इसमें किसान और सरकारी कर्मचारी आपसी समझौते से उपज का आकलन करते थे। इसे मुगल काल में कनकुत कहा जाता था।
  3. मसाहत – यह भूमि की पैमाइश पर आधारित व्यवस्था थी, जिसमें जोती-बोई गयी जमीन की माप के आधार पर एक मानक राजस्व निर्धारित किया जाता था।
सल्तनतकालीन अर्थव्यवस्था
  • सल्तनत काल में आर्थिक अवस्था अच्छी थी। व्यापार स्थल एवं जल दोनों मार्गों से होता था।
  • निर्यातित वस्तुओं में अनाज, लोहा, हथियार, मसालें, जड़ी-बूटी, नील, शक्कर फल आदि वस्तुएं शामिल हैं सूती वस्त्र निर्यात की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु थी।
  • आयतित वस्तुओं में घोड़े (अरब, रूस, ईरान, तुर्किस्तान से), अस्त्र-शस्त्र, मेवे, फल, दास आदि शामिल थे।
  • देवल इस काल में अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था। दिल्ली, सोनारगांव, थट्टा, देवल, सरसुती, आगरा, लाहौर, वाराणसी, सतगांव, अन्हिलवाड़ इत्यादि सल्तनत काल के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे।
  • तुर्क अपने साथ चरखा लेकर आए, जिससे वस्त्र उद्योग को बढ़ावा मिला। इसका भारत में प्रथम उल्लेख 14वीं सदी में प्राप्त होता है। यद्यपि तकली भारत में प्रचलित थी, किन्तु इसकी क्षमता कम थी। नद्दाफ (धुनिया) इसी काल की देन है।
  • तुर्कों के आगमन से नगरों का विकास हुआ तथा आर्थिक प्रगति तेज गति से बढ़ी। उद्योग इस काल की प्रमुख विशेषता है।
  • शाही कारखानों को राज्य की ओर से वित्तीय सहायता मिलती थी। इन कारखानों में राजपरिवार एवं राजदबार की विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन होता थां फिरोज तुगलक के काल में कारखानों का अधिक विकास हुआ।
  • अफीक के अनुसार कारखाने दो प्रकार के थे- रातिबी और गैर-रातिबीं रातिबी में वैतनिक कर्मचारी होते थे तथा गैर-रातिबी में अनिश्चित वैतनिक कर्मचारी होते थे।
  • वस्त्र उद्योग इस काल का प्रमुख उद्योग था। बरनी ने मशरूमशेरी उत्तम, खजकौल, बुरद, शीरिन इत्यादि वस्त्रों का उल्लेख किया है। बंगाल और गुजरात वस्त्रोद्योग के प्रमुख केन्द्र थे। ढाका की मलमल विश्वविख्यात थी।
  • रेशम उद्योग के लिए बनारस, मालदा, कासिम बाजार, पटना प्रमुख केन्द्र थे। इस काल के वर्णरत्नाकर (ज्योतिश्वर कृत) में 20 प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख मिलता है।
  • अहमदाबाद, बंगाल और दिल्ली लौह उद्योग के प्रमुख केन्द्र थे। कालिंजर, बनारस, लाहौर, गोलकुण्डा, सियालकोट में उत्तम श्रेणी की तलवारें बनती थी। बीदर बर्तनों पर कारीगरी (सोने-चांदी की) के लिए प्रसिद्ध था। बारबोसा के अनुसार खम्भात में कुशल स्वर्णकार रहते थे।
  • दिल्ली और मुल्तान हाथी दांत, कश्मीर लकड़ी की दस्तकारी, गुजरात चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध था।
  • भारत में चरखे का पहला उल्लेख फुतूह-उस-सलातीन में मिलता है।
  • खिज्र खां को छोड़कर दिल्ली सल्तनत के सभी तुर्की शासकों ने सुल्तान की उपाधि धारण की।
  • ’सदका’ एक धार्मिक कर था।
  • सुल्तान के कर्मचारियों को दी गयी भूमि इतलाक कहलाती थी।
  • रहट या अरघट्ट का पहला विस्तृत विवरण 16वीं सदी के बाबरनामा में मिलता है।
  • विद्वानों या धार्मिक कार्यों हेतु दी गयी वंशानुगत चलने वाली भूमि को मिल्क कहा जाता था।
  • ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया का नाम सिक्कों पर अंकित करवाया।
  • इल्तुतमिश ने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए तथा चांदी का टंका जारी किया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने सैनिकों की नियुक्ति तथा प्रशिक्षण आरिज-ए-मुमालिक विभाग के अधीन की।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलों से सुरक्षा के लिए 1304 ई. में सीरी को राजधानी बनाया।
  • फिरोजशाह ने अपनी जीवनी ‘फतूहाते फिरोजशाही’ की रचना की।
  • मंत्रिपरिषद को ‘मजलिस-ए-खलवत’ कहा जाता था।
  • ‘वकील-ए-सुल्तान’ नामक पद की स्थापना नासिरुद्दीन महमूद के काल में की गयी।
  • जकात धनवान मुसलमानों से प्राप्त एक धार्मिक कर था, जो आय का 2.5 प्रतिशत लिया जात था।
  • वली के कार्यों का निरिक्षण ‘ख्वाजा’ नामक अधिकारी करता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने न्याय के लिए एक नए विभाग ‘दीवान-ए-रियासत’ की स्थापना की।
खानदेश
  • स्थापना – 1388 ई. में मलिक अहमद राजा फारूकी ने
  • नर्मदा और ताप्ती नदियों के मध्य भाग में
  • राजधानी बुरहानपुर एवं सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ था।
  • सन् 1601 ई. में सम्राट अकबर ने खानदेश के शासक बहादुर खान को परास्त कर अपने राज्य में मिला लिया।
  • बंगाल पर पहला मुस्लिम आक्रमण इख्तियारूद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने किया।
  • गयायुद्दीन तुगलक ने बंगाल को उत्ती बंगाल (लखनौती पूर्वी बंगाल (सोनार गांव) तथा दक्षिणी बंगाल (सतगांव) मे विभाजित किया।
  • सिकंदर – अदीना मस्जिद (पांडुआ) का निर्माण करवाया

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