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1935 का अधिनियम

1935 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –

  1.  1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त किया गया। प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की गयी।
  2.  प्रांतों में दो सदन वाली विधायिका की व्यवस्था की गयी। 6 प्रांतों बंगाल, मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रांत, आसाम एवं बिहार में द्विसदनी विधायिका की व्यवस्था की गयी। उच्च सदन विधानपरिषद् एवं निम्न सदन विधान सभा था।
  3.  एक ‘अखिल भारतीय संघ’ की स्थापना का प्रावधान किया गया। गवर्नरों द्वारा शासित प्रांतों एवं देशी रियासतों को मिलाकर इस अखिल भारतीय संघ Federal की स्थापना का प्रावधान किया गया। इस सम्बंध में तब तक कोई घोषणा नहीं की जा सकती थी जब तक निर्धारित संख्या में देशी रियासतें संघ की स्थापना में इच्छुक न हों।
  4.  केन्द्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी।
  5.  इस अधिनियम द्वारा समस्त विषयों को तीन सूचियों में बाँटा गया। संघ सूची, प्रांत सूची एवं समवर्ती सूची। संघीय सूची के विषय केन्द्र के अधीन थे, प्रांतीय सूची के विषय प्रांतों के अधीन थे। समवर्ती सूची के विषय केन्द्र एवं प्रांत दोनों के अधीन थे।
  6. एक ‘संघीय न्यायालय’ (Federal Court) की स्थापना की गयी। इसके निर्णयों के विरूद्ध कुछ मामलों में इंग्लैंड में स्थित प्रिवी कौंसिल में अपील की जा सकती थी।
  7.  इस अधिनियम द्वारा 1858 के अधिनियम द्वारा स्थापित इंडिया कौंसिल को समाप्त कर दिया गया। इसके स्थान पर भारत सचिव के लिए सलाहकारों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया।
  8. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया। दलितों के लिए भी साम्प्रदायिक आधार पर निर्वाचन प्रणाली का प्रावधान किया गया।
  9. एक केन्द्रीय बैंक का प्रावधान किया गया, जो भारतीय रिजर्व बैंक कहलाया।
  10. रेलवे के नियंत्रण, निर्माण, रखरखाव एवं संचालन के लिए एक संघीय रेलवे प्राधिकरण का प्रावधान किया गया।
  11. बर्मा को भारत से पृथक् कर दिया गया। सिंध एवं उडीसा दो नए प्रांत बनाए गए (ब्रिटिश भारत में इसके बाद 11 प्रांत हो गए)।
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