उत्सर्जी अंग
  • निम्नकोटि के अकशेरूक जन्तुओं जैसे प्रोटोजोआ में उत्सर्जन परासरण द्वारा होता है।
  • एनीलिडा में उत्सर्जन उसके उत्सर्जी अंग नेफ्रीडिया द्वारा सम्पन्न होता है।
  • प्लेटीहेल्मिन्थीज जन्तुओं में प्रमुख उत्सर्जी अंग ज्वाला कोशिकाएं होती है।
  • आर्थ्रोपोडा में मैल्पीघी नलिकाएं तथा ग्रीन ग्रंथियां उत्सर्जी अंग है।
  • पक्षियों, सरीसृपों एवं कीटों में उत्सर्जन आहारनाल द्वारा होता है।
यकृत –
  • यकृत कोशिकाओं के अन्दर ही अमीनो अम्ल से यूरिया बनता है।
  • इस तरह से यकृत भी उत्सर्जी अंग के रूप में कार्य करता है।
वृक्क
  • एक जोड़ी, सेम के बीज के आकार का लगभग 5 इंच लम्बा वृक्क होता है।
  • प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं- बाह्य कॉर्टेक्स तथा भीतरी मेडुला।
  • प्रत्येक वृक्क का निर्माण अनेक नेफ्रोन से होता है जिन्हें वृक्क का क्रियात्मक इकाई कहा जाता है।
  • प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख नेफ्रोन होते हैं।
  • नेफ्रोन का आरम्भ ग्लोमरूलस के रूप में होता है जिसको मालपीजी का पिण्ड भी कहा जाता है।
  • वृक्क की कार्यात्मक इकाई नेफ्रोन व वृक्क नलिकाएं होती है।
  • प्रत्येक नेफ्रॉन द्विभित्ति, प्याले के आकार के बोमन-सम्पुट का बना होता है। बोमन सम्पुट में पतली रूधिर कोशिकाओं का केशिक गुच्छ पाया जाता है।
  • अभिवाही धमनिका, अपवाही धमनिका से अधिक चौड़े व्यास की होती है।
  • एक स्वस्थ मुनष्य के रूधिर में आने वाले का रूधिर दाब 70 मिमी/Hg होता है, जबकि ग्लोमेरूलस से जाते समय रूधिर दाब 30 मिमी/ Hg होता है।
  • ग्लोमेरूलस से छनकर बोमन सम्पुट की गुहा में जाने वाले द्रव को ग्लोमेरूलस निष्यंद कहते हैं।
  • ग्लोमेरूलस की कोशिकाओं से द्रव के छनकर बोमन सम्पुट की गुहा में पहुंचने की प्रक्रिया को परानिष्यंदन कहते है।
  • कुंडलित भाग को स्त्रावी भाग कहते हैं। इसके तीन भाग है – समीपस्थ कुण्डिलत नलिका व लूप ऑफ हेनले और दूरस्थ कुण्डलित नलिका।
  • सर्वप्रथम पुनरावशोषण बोमन सम्पुट में होता है। जिससे यहां निस्यंद प्रोटीन रहित प्लाज्मा के समपरासरी रहता है।
  • पेल्विस में पहुंचा निस्यंद मूत्र कहलाता है।
मूत्र
  • मूत्र एक हल्का अम्लीय होता है। जिसका Ph 6.0 होता है तथा पीले रंग का होता है।
  • मूत्र का रंग उसमें उपस्थित वर्णक यूरोक्रोम के कारण होता है।
  • यूरोक्रोम हीमोग्लोबिन के विखण्डन से बनता है।
  • मूत्र का रासायनिक संगठन – पानी, यूरिया, सोडियम, क्लोरीन, पोटेशियम, सल्फेट, यूरिक अम्ल, क्रिएटिन आदि।
ड्यूरोसिस
  • मूत्रस्त्राव की मात्रा बढ़ जाने को डाई यूरेसिस कहते हैं।
  • वे पदार्थ जो इसको क्रियान्वित करते हैं उनको ड्यूरेटिक कहा जाता है।
  • यूरिया, ड्यूरेटिक है। यह मूत्र स्त्राव को बहुत प्रभावित करता है।
  • कुछ अन्य ड्यूरिटिक पदार्थ – मैनिटॉल, यूरिया, सुक्रोज, ग्लूकोज कैफीन इत्यादि।
कार्य –
  • वृक्क स्तनधारियों एवं अन्य कशेरूकी जन्तुओं में उत्सर्जी अंग है जो उपापचय के फलस्वरूप उत्पनन विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है।
  • यह रूधिर में H की सांद्रता अर्थात् PH को नियंत्रित करता है। यह अम्लीय एवं क्षारीय पदार्थों के अधिशेष भाग का निष्कासन कर
  • रूधिर के Ph को स्थायी रूप से कायम रखता है।
  • यह रूधिर के परासरणी दाब तथा उसकी मात्रा का नियंत्रण करता है।
  • वृक्क रूधिर तथा ऊतक द्रव्य में जल एवं लवणों की मात्रा को निश्चित कर रूधिर दाब बनाए रखता है। इससे ऊतक द्रव्य की परासरणीयता भी नियंत्रित रहती है।
  • रूधिर के विभिन्न पदार्थों का वरणात्मक उत्सर्जन कर वृक्क शरीर की रासायनिक अखण्डता बनाने में सहायक होता है।
  • यदि हाइपॉक्सिया अर्थात् शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाय, तो ऐसी अवस्था में विशेष एन्जाइम के स्रवण से वृक्क एरिथ्रोपोईटिन नामक हार्मोन द्वारा लाल रूधिराणु के तेजी से बनने में सहायक।
  • यह कुछ पोषक तत्वों के अधिशेष भाग जैसे शर्करा, अमीनो अम्ल इत्यादि का निष्कासन करता है।
  • यह बाहरी पदार्थों – जैसे दवाइयां, विष इत्यादि जिनका शरीर में कोई प्रयोजन नहीं, निष्कासन करता है।
  • शरीर में परासरण – नियंत्रण द्वारा वृक्क जल की निश्चित मात्रा बनाए रखता है।

Note:-

  • पॉरीफेरा संघ के जन्तु में विशिष्ट नलिका तंत्र द्वारा।
  • मोलस्का – मूत्र अंग द्वारा
  • सीलेन्ट्रेटस – सीधे कोशिकाओं द्वारा
  • मुनष्य में यूरियोटेलिक प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है।
  • वृक्क मनुष्य का सबसे मुख्य उत्सर्जी अंग है।
  • यकृत पेरिटोनियम नामक झिल्ली से घिरा रहता है।
  • मूत्राशय उदर गुहा में उपस्थित होता है।
  • मूत्र में 95 प्रतिशत जल की मात्रा होती है।
  • एडिसन नामक रोग में मूत्र में जल तथा सोडियम की मात्रा बढ़ जाती है।