स्थानीय स्वशासन निकाय एवं पंचायती राज

  • भारतीय संविधान में 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा दिया गया है।
  • राज्य में तीन तरह की शहरी संस्थायें हैं – नगर निगम, नगर परिषद तथा नगर पालिका।
  • वर्तमान में राजस्थान में 6 नगर निगम (अजमेर, जयपुर, कोटा, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर), 13 नगरपरिषद तथा 170 नगरपालिका मिलाकर कुल 188 नगरीय निकाय हैं।
  • पंचायती राज- भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले में 2 अक्टूबर, 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।
  • राजस्थान में भी इसी के साथ ग्रामीण स्थानीय शासन प्रारंभ हुआ।
  • वर्तमान में तीन स्तरीय व्यवस्था प्रचलित है- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा इन्हें संवैधानिक संस्थाओं का स्तर प्रदान किया गया तथा संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची भी जोड़ी गई है।
  • जिसमें पंचायती राज संस्थाओं को 29 विषय दिये गये है। जिन पर ये संस्थायें कार्य करती है।
73वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषतायें –
1 . संवैधानिक स्तर प्रदान किया गया है-
  • इस अधिनियम से पूर्व तक पंचायतीराज अधिकतर राज्य सरकारों के भरोसे था, लेकिन अब संविधान में स्पष्ट स्थान व स्तर प्राप्त हो गया है। इससे सत्ता परिवर्तन का प्रभाव इन पर नहीं पड़ता है।
  • संविधान में (भाग 9 जोड़ा गया है तथा 16) नये अनुच्छेद जोड़े गए है।
2 . आरक्षण व्यवस्था –
  • वर्तमान में पंचायती राज की तीनों स्तर की संस्थाओं में आरक्षण व्यवस्था की गई है।
  • (क) अनु. जाति और अनु. जनजाति के आरक्षण – इन दोनों वर्गों हेतु प्रत्येक स्तर पर जनसंख्या के अनुपात में राज्य सरकार ने आरक्षण कर रखा है, जो बारी-बारी से आवर्तित (रोटेशन) होता रहता है।
  • (ख) महिलाओं के लिये आरक्षण – इस अधिनियम के तहत राज्य में महिलाओं हेतु प्रत्येक वर्ग में एक तिहाई स्थान आरक्षित किये गये हैं। ये भी बारी-बारी चक्रानुक्रम पद्धति से आरक्षित होते हैं। राज्य सरकार ने 2009 में पंचायती राज एवं नगरीय शासन में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत स्थान आरक्षित किये थे।
  • (ग) पिछड़े वर्गों हेतु आरक्षण – पंचायती राज में पिछड़े वर्गों हेतु भी राज्य सरकार ने जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण रखा है, जो वर्तमान में 21 प्रतिशत है।
  • (घ) अध्यक्ष पदों पर आरक्षण – पंचायती राज में अब अध्यक्षों के लिये भी उक्त तीनों प्रकार का आरक्षण किया गया है।
3 . कार्यकाल –
  • पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल अब 5 वर्ष निश्चित किया गया है। इससे पूर्व किसी कारण से इन संस्थाओं को भंग करना पड़े, तो 6 माह के अंदर ही पुनः चुनाव करवाना अनिवार्य है। इन पंचायती राज संस्थाओं हेतु राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।
4 . ग्राम सभा का गठन-
  • प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र पर एक ग्राम सभा का गठन होगा। उस ग्राम पंचायत क्षेत्र के समस्त वयस्क मतदाता उसके सदस्य होते है। वर्तमान में राजस्थान में वर्ष में चार बार इसकी बैठकें आहुत की जाती है जब कि दो बार, प्रत्येक वर्ष में, बैठकें अनिवार्य है।
5 . कार्य एवं शक्तियाँ –
  • पंचायती राज संस्थाओं को संविधान की 11वीं अनुसूची में वर्णित 29 विषयों पर निर्णय लेकर कार्य करने की शक्तियाँ प्रदान की है।
6 . त्रिस्तरीय व्यवस्था-
  • प्रत्येक जिले में त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है।
  1.  ग्राम पंचायत- ग्राम पंचायत सभी वार्ड पंचों, उप सरपंच व सरपंच से मिलकर बनती है तथा एक सरकारी कर्मचारी ग्राम सचिव भी रहता है। माह में दो बार इसकी बैठक होती है।
  2.  पंचायत समिति- प्रत्येक विकास खण्ड से निर्वाचित पंचायत समिति सदस्य, उप प्रधान व प्रधान मिलकर खण्ड स्तर की संस्था बनाते है। इनके साथ सरकारी अधिकारी विकास अधिकारी होते है।
  3. जिला परिषद् – पंचायती राज की सर्वोच्च संस्था प्रत्येक जिला स्तर पर जिला परिषद नाम से गठित है। राज्य में इसमें जिला परिषद् सदस्य, उपजिला प्रमुख तथा जिला प्रमुख होते है तथा एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहता है।
  • सरपंच को छोड़कर शेष अध्यक्षों, उपाध्यक्षों प्रधान, उपप्रधान, जिला प्रमुख, उप जिला प्रमुख का निर्वाचन सदस्यों द्वारा होता है।
  • वर्तमान में राजस्थान में 9892 ग्राम पंचायतें, 295 पंचायत समितियाँ तथा 33 जिला परिषदें हैं।
  • जिनके सदस्य व अध्यक्ष पद हेतु 21 वर्ष की आयु का सम्बन्धित क्षेत्र का मतदाता निर्वाचन लड़ सकता है।

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