• श्यामजी कृष्ण वर्मा का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वह इंग्लैंड में रहकर देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वालों में से एक थे। वह प्रखर प्रवक्ता और पत्रकार थे, जिन्होंने लंदन में इंडियन होमरूल सोसाइटी, इंडिया हाउस जैसे संगठन की स्थापना की। इंडिया हाउस भारत से आने वाले छात्रों का प्रमुख केन्द्र था। उन्होंने मासिक पत्रिका ‘द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ का भी संचालन किया। भारत से इंग्लैंड जाकर अध्ययन करते थे उनके लिए विचार-विमर्श के प्रमुख केन्द्र थी। वह लंदन में रह रहे भारतीयों के प्रेरणास्रोत ही नहीं बल्कि देश की आजादी की लड़ाई में प्रयत्नशील व्यक्ति थे।
जीवन परिचय
  • श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर, 1857 को गुजरात के मांडवी में हुआ था। उनके पिता कृष्णदास भानुशाली कपास प्रेस कंपनी में मजदूर थे और माता गोमतीबाई गृहिणी थीं। जब वह 11 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई। उनकी दादी ने ही परवरिश की थी।
  • उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मांडवी गांव के स्कूल से की और भुज से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए बंबई चले गए और विल्सन हाई स्कूल में एडमिशन ले लिया। यहां पर उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी रूचि जाग्रत की।
  • वर्ष 1875 में उन्होंने भानुमती भाटिया से शादी कर ली, जो बंबई के एक समृद्ध गुजराती व्यवसायी की बेटी और उनके दोस्त रामदास की बहन थीं।
ऑक्सफोर्ड में संस्कृत के सहायक प्रोफेसर नियुक्त
  • उनका संपर्क आर्य समाज के संस्थापक और वेदों के ज्ञाता स्वामी दयानंद सरस्वती से हुआ। उनसे वह बहुत प्रभावित हुए और उनके शिष्य बन गए। उन्होंने वैदिक दर्शन और धर्म पर व्याख्यान देना शुरू कर दिया। उन्होंने वर्ष 1877 में पूरे भारत का दौरा किया। वह बंबई आर्य समाज के पहले अध्यक्ष बने। वह काशी के पंडितों से ‘पंडित’ का खिताब पाने वाले पहले गैर—ब्राह्मण थे। संस्कृत के विद्वान होने के कारण ही उन्हें ऑक्सफोर्ड प्रोफेसर मोनियर विलियम्स ने अपना सहायक बनने की पेशकश की। 25 अप्रैल, 1879 को इंग्लैंड गए और उन्हें प्रोफेसर विलियम्स की सिफारिश पर संस्कृत विभाग के एक सहायक प्रोफेसर के रूप में ऑक्सफोर्ड के बैलिओल कॉलेज में नियुक्त हो गए।
  • वर्ष 1883 में उन्होंने स्नातक उत्तीर्ण की। उन्होंने वर्ष 1885 में बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की और वह इसी वर्ष भारत लौट आए। वह बंबई हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। उन्हें रतलाम राज्य के राजा द्वारा दीवान के रूप में नियुक्त किया गया था। वह वहां ज्यादा समय नहीं टिक सके और स्वास्थ्य कारण से सेवानिवृत्त हो गए।
  • बाद में वह अपने गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती के मुख्यालय अजमेर में आकर बस गए। यहीं पर ब्रिटिश कोर्ट में वकालत जारी रखी। उन्होंने अपनी आय को तीन कपास प्रेस में निवेश किया और अपने जीवन के बाकी हिस्सों के लिए स्वतंत्र होने के लिए पर्याप्त स्थायी आय प्राप्त की। उन्होंने 1893 से 1895 तक उदयपुर के महाराजा के लिए परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया, उसके बाद जूनागढ़ राज्य के दीवान के पद पर रहे। उन्होंने 1897 में एक ब्रिटिश एजेंट के साथ एक कड़वे अनुभव के बाद इस्तीफा दे दिया, जिसने ब्रिटिश शासन के प्रति उनमें अविश्वास पैदा कर दिया।
इंडियन सोशियोलोजिस्ट पत्र से इंग्लैंड में जगाई भारतीय में आजादी की जोत
  • स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों और दर्शन से प्रेरित होकर उनमें राष्ट्रवाद की भावना जाग्रत हुई। उन्होंने 18 फरवरी, 1905 को लंदन में इंडिया हाउस की स्थापना की और जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश दासता से मुक्त करवाना और भारत के लोगों में स्वतंत्रता व राष्ट्रीय एकता की भावना जाग्रत करना था।
  • उन्होंने अंग्रेजी में एक मासिक पत्र ‘इंडियन सोशियोलोजिस्ट’ निकाला। देश की आजादी के लिए इंडिया हाउस की स्थापना की, जो इंग्लैंड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र बना। यहीं से आजादी के लिए कई क्रांतिकारियों को तैयार किया। जिनमें मैडम कामा, वीर सावरकर, लाला हरदयाल और मदन लाल ढींगरा प्रमुख थे।
  • लंदन में उनकी संस्था द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न होने पर वहां का मीडिया उनके विरुद्ध हो गया और उनके अखबार के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाए गए थे। उन्हें वर्ष 1907 में अपना मुख्यालय पेरिस में स्थानान्तरित करना पड़ा। यहां पर उन्होंने यूरोपीय देशों से भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाना शुरू किया। बाद में यहां से भी कार्यालय जिनेवा में स्थानांतरित कर दिया।
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निधन
  • महान क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा का 30 मार्च, 1930 को 79 वर्ष की अवस्था में जिनेवा के एक अस्पताल में देहांत हो गया।
  • उनकी स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 4 अक्टूबर, 1989 को एक डाक टिकट जारी किया।

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