शुंग वंश का इतिहास एवं महत्त्वपूर्ण घटनाएं

शुंग राजवंश 184 ई.पू. – 72 ई.पू.
  • पुष्यमित्र द्वारा अन्तिम मौर्य सम्राट का वध कर सिंहासन प्राप्त करने का विवरण मिलता है – हर्षचरित में
    शुंग इतिहास के साधन
    साहित्य –
    पुराण:-
  • पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्रह्माण्ड विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
  • हर्षचरित – इसकी रचना महाकवि बाणभट्ट ने की थी। पुष्यमित्र ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की सेना निरीक्षण के बहाने बुलाकर हत्या कर दी और सिंहासन पर अधिकार कर लिया। इसमें उसे ‘अनार्य; तथा ‘निम्न उत्पत्ति’ का बताता है।
    पतंजलि का महाभाष्य
  • पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। उनके ‘महाभाष्य’  में यवन आक्रमण की चर्चा हुई है, जिसमें बताया गया हैं कि यवनों ने साकेत तथा माध्यमिका को रौंद डाला था।
    गार्गी संहिता
  • एक ज्योतिष ग्रंथ, इसके युग-पुराण खण्ड में यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है। यवन आक्रांता साकेत, पंचाल, मथुरा को जीतते हुए कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) के निकट तक जा पहुंचे।
    मालविकाग्निमित्र
  • यह महाकवि कालिदास का नाटक है। इससे शुंगकालीन राजनैतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है। पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था तथा उसने विदर्भ को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था। कालिदास यवन आक्रमण का भी उल्लेख करता है, जिसके अनुसार अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु नदी के दाहिने किनारे यवनों को पराजित किया था।
    थेरावली
  • इसकी रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने की थी। उज्जयिनी के शासकों की वंशावली दी। यहां पुष्यमित्र का भी उल्लेख किया।
    हरिवंश
  • पुष्यमित्र को ‘औद्भिज्ज’ (अचानक उठने वाला) कहा गया हैं जिसने कलियुग में चिरकाल से परित्यक्त अश्वमेध यज्ञ किया था। इसमें उसे ‘सेनानी’ तथा ‘काश्यपगोत्रीय’ इसकी पहचान पुष्यमित्र से करते हैं।
    दिव्यवदान
    पुरातत्व –
    अयोध्या का लेख
  • यह पुष्यमित्र के अयोध्या के राज्यपाल धनदेव का है। इससे पता चला हैं कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये।
    बेसनगर का लेख
  • यह यवन राजदूत हेलियोडोरस का है तथा गरुड़ स्तम्भ के ऊपर खुदा है। इसमें मध्यभारत में भागवत धर्म की लोकप्रियता सूचित होती है।
    भरहुत का लेख
  • यह भरहुत स्तूप की वेष्टिनी पर खुदा हैं इससे पता चलता है कि यह स्तूप शुंगकालीन रचना है।

शुंगों का उत्पत्ति

  • शुंगवंश को महर्षि पाणिनि ने ‘भारद्वाज’ गोत्र का ब्राह्मण कहा है।
  • बौद्धायन श्रौतसूत्र से पता चलता हैं कि बैम्बिक ‘काश्यप गौत्र’ के ब्राह्मण थे।
  • मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को ‘बैम्बिक कुल’ से सम्बन्धित किया।
  • आश्वालायन श्रौतसूत्र में शुंगों का उल्लेख आचार्यों के रूप में
  • वृहदारण्यक उपनिषद् में ‘शौंगीपुत्र’ नामक एक आचार्य का उल्लेख हैं
  • शुंग पहले मौर्यों के पुरोहित थे।
पुष्यमित्र शुंग 184 ई.पू. – 148 ई.पू.
  • पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ का प्रधान सेनापति था।
  • उसने स्वयं दो अश्वमेध यज्ञ किये।
  • पुष्यमित्र ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर देश की रक्षा काी वहीं दूसरी ओर देश में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना कर वैदिक धर्म एवं आदर्शों की जो अशोक के शासनकाल में उपेक्षित हो गये थे- पुनः प्रतिष्ठा की। इसी कारण उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है।
    विदर्भ युद्ध
  • मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता हैं कि पुष्यमित्र के समय विदर्भ (आधुनिक बरार) का प्रान्त यज्ञसेन के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया था उसे शुंग का ‘स्वाभाविक शत्रु’ (प्रकृत्यमित्र) बताया गया है।
  • पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल (उपराजा) था। उसका मित्र सेनापति वीरसेन को तुरन्त विदर्भ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। यज्ञसेन पराजित हुआ और विदर्भ राज्य दो भागों में बांट दिया गया। वर्धा नदी दोनों राज्यों की सीमा मान ली गई एक भाग का शासक माधवसेन व दूसरे का शुंगों की अधीनता स्वीकार करने पर यज्ञसेन को शासक बनाया गया।
    यवनों का आक्रमण
  • इस घटना की चर्चा पतंजलि के महाभाष्य, गार्गीसंहिता तथा कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक में हुई है।
  • पतंजलि पुष्यमित्र के पुरोहित थे।
  • पाटलिपुत्र साम्राज्य की राजधानी थी।
  • मालविकाग्निमित्र में ‘अमात्य-परिषद्’ तथा महाभाष्य में ‘सभा’ का उल्लेख हुआ है।
    अश्वमेध यज्ञ
  • पतंजलि के महाभाष्य, मालविकाग्निमित्र, अयोध्या लेख, हरिवंश पुराण में 2 अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख हुआ है।
  • इस वंश का 9वां शासक भागवत (भागभद्र) था। इसके शासन काल के 14 वें वर्ष तक्षशिला के यवन नरेश एन्टियालकीड़स का
  • राजदूत हेलियोडोरस उसके विदिशा स्थित दरबार में उपस्थित हुआ था। उसने भागवत धर्म ग्रहण कर लिया तथा विदिशा (बेसनगर) में गरुड़ स्तम्भ की स्थापना कर भागवत विष्णु की पूजा की।
  • शुंगवंश का अंतिम शासक नरेश देवभूति (देवभूमि) था।
  • उसके अमात्य वसुदेव ने उसकी हत्या कर दी और कण्व अथवा कण्वायन वंश की स्थापना की।
  • सुशर्मा कण्व वंश का अन्तिम शासक था उसकी हत्या शिमुख ने की।

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