परजीविता Parasitism-
  • वातावरण में कवक, जीवाणु एवं विषाणु तथा कुछ उच्चवर्गीय आवृत्त बीजी पौधे जैसे- अमरबेल, लोरेन्थस, ओरोबैका, वेलेनोफोरा, रैफ्लेशिया आदि परजीवी के रूप में उगते हैं।
  • इनमें पर्णहरिम का अभाव होता है और ये सभी अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं दूसरे पौधों से चूषकांगों द्वारा प्राप्त करते हैं। पौधों के इस गुण को परजीविता एवं ऐसे पौधों को परजीवी कहते हैं।
  • इन पौधों का पृथ्वी से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है। जिन पौधों पर परजीवी उगते हैं और अपना भोजन लेते हैं उन्हें पोषित पौधे कहते हैं।
  • कुछ पौधे पूर्णरूप से परजीवी होते हैं, जैसे- अमरबेल तथा कुछ आंशिक परजीवी होते हैं जैसे- लोरेन्थस, विस्कम तथा चंदन।
  • कुछ तनों पर परजीवी होते हैं जिन्हें क्रमशः मूल परजीवी तथा स्तम्भ परजीवी कहते है।
  • पूर्ण मूल परजीवी – औरोबैंकी
  • आंशिक मूल परजीवी – चंदन (Santalum album)
  • पूर्ण स्तम्भ परजीवी – अमरबेल (Cuscuta)
  • आंशिक स्तम्भ परजीवी – लोरेन्थस (Loranthus) तथा विस्कम (Vixcum)।
सहजीविता Symbiosis-
  • जब दो पौधे अथवा जीवधारी साथ-साथ रहते हैं तथा एक-दूसरे को लाभ पहुंचाते हैं तो उन्हें सहजीवी तथा इस प्रकार के सम्बन्ध को सहजीवन कहते हैं। पौधों का यह गुण सहजीविता कहलाता है।
  • सहजीविता के उदाहरण है – लाइकेन तथा लैग्यूमिनेसी कुल के पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाये जाने वाले नाइट्रीकरण जीवाणु।
    लाइकेन के शरीर का निर्माण शैवाल तथा कवक के द्वारा होता है।
  • नाइट्रीकरण जीवाणु भूमि की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तित कर देते हैं। इसे पौधे जड़ों द्वारा खाद रूप में ग्रहण करते हैं। इसके बदले में पौधे इन जीवाणुओं को भोजन एवं रहने के लिये स्थान देते हैं। इस प्रकार इस सहजीविता का प्रभाव पौधों एवं वातावरण पर पड़ता है।
माइकोराइजा Mycorrhiza
  • कवक का किसी पौधे की जड़ के साथ सहजीवन माइकोराइजा कहलाता है।
  • यह दो प्रकार का होता है-
    अ. एक्टोट्रोफिक – जिसमें कवक जाल जड़ों के धरातल पर मिलता है
    ब. एण्डोट्रोफिक- जिसमें कवक जड़ों की बल्कुट कोशिकाओं में फैला रहता है।
  • माइकोराइजा चीड़ आर्किड, लीची, रेफ्लेशिया व अन्य पौधों की जड़ों में पाया जाता है।
मृतोपजीविता Saprophytism
  • पौधों का सडे़ गले पदार्थों पर उगला तथा उन्हीं से अपना भोजन प्राप्त करने का गुण मृतोपजीविता कहलाता है।
    ये पौधे मृतोपजीवी कहलाते हैं।
  • इनमें पर्णहरित का अभाव होता है जिससे ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं।
  • मृतोपजीवी के अन्तर्गत विभिन्न कवक जैसे- यीस्ट, म्यूकर, राइजोपस, पेनीसिलियम, कुकुरमत्ता आदि जीवाणु तथा सुपुष्पी पौधे जैसे – मोनोट्रोपा, नियोट्टिया तथा यूनीफ्लोरा आदि आते हैं। मृतोपजीवी कवक एवं जीवाणु पौधों तथा जन्तुओं के मृतक शरीरों का अपघटन करके सरल तत्वों में बदलते रहते हैं जिससे प्रकृति में कूड़ा-करकट के ढेरों तथा लाशों की सफाई होती रहती है।
कीटभक्षी पौधे
  • ये पौधे प्रायः उन स्थानों पर पाये जाते हैं जहां की भूमि में नाइट्रोजन की कमी होती है। इस कमी को पूरा करने के लिए कीटभक्षी पौधे छोटे-छोटे कीट-पतंगों को मारकर उससे नाइट्रोजन युक्त पदार्थ ग्रहण करते हैं।
  • इनमें हरी पत्तियां पाई जाती हैं। ये पौधे अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। कीटभक्षी पौधे के उदाहरण हैं – यूट्रीकुलेरिया, ड्रोसेरा, नेपेन्थिस तथा डायोनियां आदि।