- समकालीन विचारकों अथवा दार्शनिकों में जीन जोकस रूसो ने सबसे अधिक प्रसिद्धि पायी है। रूसो का जन्म 28 जून, 1712 को स्विट्जरलैंड के जिनेवा नगर में एक साधरण घड़ीसाज के घर हुआ। इनकी माता की मृत्यु इनके जन्म के कुछ दिनों बाद हो गई। रूसो को प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता ने दी। इन्हें स्कूल भेजा गया, पर वहां के कृत्रिम वातावरण और दण्ड व्यवस्था का इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और वे स्कूल से भाग आए। इस कारण रूसो को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला पाया, किन्तु वह जन्म से ही एक मौलिक और रचनात्मक बुद्धिवाला व्यक्ति था। दरिद्रता के कारण उसका अधिकांश जीवन इधर-उधर भटकते हुए बीता। अपने घुमक्कड़ी जीवन में उसने विविध अनुभव प्राप्त किए तथा अमीर-गरीब, शोषक और शोषित के भेदभाव को निकटता से देखा और सामाजिक तथा राजनीतिक विसंगतियों के कारणों पर गंभीरता से विचार किया।
- रूसो ने अपने ग्रंथ लिखे जिनमें भावना और संवेदना की प्रधनता है। वाल्तेयर के लेखन में जहां बुद्धि की प्रधनता थी, वहीं रूसो के लेखन में भावना प्रधान थी। उसके द्वारा रचित दि न्यू हेल्वायज (New Heloise), दि एमिल, सामाजिक समझौता (Social Contract), द कन्फेशन (The Confession), द रेवरीज (The Reveries) आदि विशेष प्रसिद्ध है। इनमें भी उसकी पुस्तक सामाजिक समझौता या सामाजिक संविदा (द सोशल कॉन्ट्रैक्ट) सर्वाधिक चर्चित हुई। इस ग्रंथ में उसने अपने क्रान्तिकारी और प्रगतिवादी विचारों को अभिव्यक्त किया जिसके कारण उसे कारागार में डाल दिया गया।
सामाजिक-सिद्धांत
- रूसो अपने युग का एक महान विचारक और दार्शनिक था। उसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि जब पेरिस में उसकी मृत्यु हुई तब प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति उसकी ही पुस्तक पढ़ रहा था। उसके सामाजिक-सिद्धांत संविदा सिद्धांत की मूल भावना यह है कि ”मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न हुआ था परन्तु आज वह सर्वत्र शृंखलाओं में जकड़ा हुआ है। मानव सभ्यता के आरंभ में प्रत्येक मनुष्य अपनी प्राकृतिक अवस्था में हर प्रकार के बंधन से मुक्त और सर्वथा स्वतंत्र था। सभ्यता के विकास की स्थिति में जब मनुष्य को राज्य नामक संस्था की आवश्यकता अनुभव हुई तो समाज के सब व्यक्तियों ने मिलकर एक समझौता किया जिसके आधार पर राज्य की रचना हुई। एक व्यक्ति शासक नियुक्त हुआ। उसे सब लोगों के प्रति प्रतिज्ञा करनी पड़ी कि वह सार्वजनिक हित में शासन का संचालन करेगा। यह राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता था।”
- सामाजिक पुनर्गठन के लिए जो सिद्धांत और मार्ग रूसो ने खोजा वह अत्यन्त क्रान्तिकारी और सर्वथा मौलिक दर्शन था। उसने तर्कों के आधार पर पुरातन व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी। उसके जीवनकाल में ही उसके सिद्धांतों का रूस में प्रभावशाली प्रचार-प्रसार हुआ। उसने जनतंत्र की स्थापना के लिए फ्रांस को तैयार कर दिया। स्वतंत्रता और समानता रूसो के मूल सिद्धांत थे। स्वतंत्रता और समानता का सिद्धांत ही फ्रांसीसी क्रान्ति का मुख्य नारा बन गया। इसमें बन्धुत्व की बात और जोड़ दी गई थी।
- संक्षेप में कहा जा सकता है कि रूसो अठारहवीं सदी का सबसे अधिक प्रभावशाली दार्शनिक था। दूषित पुरातन व्यवस्था के प्रति, रूसो ने तर्कों के आधार पर लोगों में घृणा की भावना उत्पन्न की थी। रूसो क्रान्ति का अग्रदूत था। नेपोलियन कहा करता था कि यदि रूसो न होता तो फ्रांस में राज्यक्रान्ति का होना भी असंभव था।
शिक्षा के उद्देश्य
- रूसो समाज की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व देते थे इसलिए उन्होंने शिक्षा द्वारा मनुष्य के वैयष्टिक विकास पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि हमें किसी बच्चे को सैनिक, पादरी अथवा मजिस्ट्रेट बनाने से पहले उसे आदमी बनाना चाहिए। यह आदमी प्राकृतिक आदमी होगा और भावप्रधान आदमी होगा। वह सबसे प्रेम करेगा और सबका सहयोग करेगा। वह झूठ, दंभ, स्वार्थपरता के दोषों से मुक्त होगा। इसके लिए उन्होंने मनुष्य की नैसर्गिक शक्तियों के प्राकृतिक विकास की बात कही है। उनके अनुसार शिक्षा का यही उद्देश्य होना चाहिए।
मनुष्य के विकास का एक क्रम है, वह कई अवस्थाओं — शिशु, बाल, किशोर एवं युवा को पार करता हुआ एक प्रौढ़ बनता है और भिन्न—भिन्न आयु स्तर पर उसकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति भिन्न होती है।