राज्यपाल

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 160 तक राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन किया गया है।
  • अनु. 153 – प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार हमारे राज्य की कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित है तथा उनका प्रयोग वह खुद या अपने अधीनस्थों से करवायेगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल पद पर नियुक्ति की जाती है। नियुक्ति सामान्यतः 5 वर्ष हेतु की जाती है, किन्तु राष्ट्रपति उससे पूर्व भी राज्यपाल को हटा सकता है। यदि उस पर कदाचार सिद्ध हो या उस पर अक्षमता के आरोप लगें।

राज्यपाल पद हेतु योग्यताएं- अनु. 157 के अनुसारः

  1. वह भारत का नागरिक हो,
  2. 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  3. वह सम्बन्धित राज्य का नागरिक न हो।
  4. केन्द्र या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो एवं संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित योग्यताओं को पूरा करता हो।
राज्यपाल द्वारा संविधान प्रदत्त कई शक्तियों को प्रयोग में लाया जाता है, जो कि निम्न हैं- 
  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना तथा उसके परामर्श पर मंत्रिपरिषद का गठन करना।
  • विधान सभा का सत्र आहूत करना, सत्रावसान की घोषणा, विधान सभा को भंग करना आदि।
  • वित्तीय शक्तियाँ, विधायी शक्तियाँ, क्षमादान की शक्तियां आदि।
  • संविधान के अनुच्छेद 168 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल अथवा विधायिका होगी। विधायिका से तात्पर्य है जो व्यवस्था को बनाये रखने हेतु विधि निर्माण करती हो। इसे व्यवस्थापिका अथवा विधान मण्डल भी कहते हैं।
  • अनु. 213 के अनुसार, राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। उसके अध्यादेश का वही महत्त्व है, जो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित कानूनों का। यदि विधानसभा अपनी प्रथम बैठक में इसे स्वीकृति नहीं करती, तो बैठक की तारीख से 6 सप्ताह बाद अध्यादेश स्वतः खत्म हो जाता है।
  • यद्यपि राज्यपाल को सैनिक न्यायालय द्वारा दिये गये मृत्युदंड को माफ करने का अधिकार नहीं है, तथापि संविधान के अनुच्छेद 161 के अनुसार तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 54 के अनुसार उसे सैनिक न्यायालय द्वारा दिये गये मृत्युदंड को छोड़कर, अन्य सजाओं को कम करने, उसे दूसरी सजा में बदलने या उसके परिहार करने का अधिकार प्राप्त है।
  • संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल किसी विधेयक को विधानमंडल के पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं, परन्तु राज्य विधानमंडल द्वारा दुबारा भेजे जाने पर राज्यपाल अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य है।
  • अनु. 201 के अनुसार, राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए रख सकता है या राष्ट्रपति के कहने से उसे मंत्रिमंडल में पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। मंत्रिमंडल द्वारा पारित होने के बाद वह पुनः उक्त विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित कर सकता है।
  • अनु. 202 में कहा गया है कि राज्यपाल प्रतिवर्ष राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) दोनों सदनों में रखवायेगा।
  • अनु. 207 – धन एवं वित्त विधेयक विधानसभा मे राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से ही पेश किये जायेंगे।
  • अनु. 164 के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा।
  • संविधान के 7वें संशोधन, 1956 के अनुसार, दो या दो से अधिक राज्यों के लिए भी एक राज्यपाल हो सकता है।
  • संविधान के अनु. 174(1) वह विधानसभा का अधिवेशन बुला सकता है, उसका सत्रावसान कर सकता है एवं 174(2) के अनुसार, विधानसभा को विघटित भी कर सकता है, जैसा कई राज्यपालों ने किया भी है।

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