राजभाषा आयोग

 

संविधान के अनुच्छेद

अनु. के अनुसार

1

343(1)

संघ की राजभाषा हिन्दी होगी एवं लिपि देवनागरी होगी।

2

343(3)

संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद तक संघ के सभी कार्य अंग्रेजी में होंगे।

3

343 (4)

संसद 15 वर्ष बाद चाहे तो देवनागरी लिपि के संबंध में उपबन्ध बना सकती है।

4

344

राष्ट्रपति राजभाषा पर एक राजभाषा आयोग एवं समिति की स्थापना कर सकते हैं। राजभाषा आयोग का गठन संविधान के लागू होने के बाद एवं प्रत्येक दस-दस वर्षों के अन्तराल पर होगा।

5

344

राष्ट्रपति एक भाषा समिति की स्थापना करेंगे, जिसमें 20 सदस्य लोकसभा से एवं 10 राज्यसभा से लिए जायेंगे अर्थात् इसमें कुल 30 सदस्य होंगे।

6

345

राज्य के विधानमंडल को यह अधिकार है कि वह एक या एक से अधिक भाषा या हिन्दी को अपनी राजभाषा बना सकता है।

7

348

उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के सभी कार्य अंग्रेजी में होंगे, जब तक कि संसद इस संबंध में विशेष कानून नहीं बनाती। इसी अनुच्छेद में कहा गया है कि संसद, राज्य विधानमंडलों के विधेयकों एवं नियमों तथा राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के अध्यादेशों का मूल प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी में होगा।

8

350 (ब)

भाषायी अल्पसंख्यकों की चर्चा की गई है एवं कहा गया है कि इनके हितों की देख-रेख हेतु राष्ट्रपति एक अधिकारी की नियुक्ति करेगा, जो राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन देगा और जिसे राष्ट्रपति संसद में प्रस्तुत करवायेंगे।

 

9

351

में कहा गया है कि केन्द्र सरकार हिन्दी भाषा के विकास के लिए सतत् कार्य करेगी एवं अन्य भाषाओं की सहायता से हिन्दी भाषा की समृद्धि एवं उन्नति निश्चित करेगी।

  • 1955 में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष बी.जी. खेर थे।
संविधान में सम्मिलित भाषाएं
  1. असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो।
  2. डोगरी – संविधान संशोधन (21वां) अधिनियम, 1967 द्वारा जोड़ी गई।
  3. कोंकणी और मणिपुरी – संविधान संशोधन (71वां) अधिनियम, 1992 द्वारा 31 अगस्त, 1992 में सम्मिलित की।
  4. मैथिली और संथाली – संविधान संशोधन (92वां) अधिनियम, 2003 द्वारा जोड़ी गई।

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