• राजस्थान में राजनीतिक चेतना का श्रीगणेश कर यहाँ की जनजातियों एवं किसानों ने इतिहास रच दिया। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में भील, मीणा, गरासिया आदि जनजातियाँ प्राचीन काल से रहती आयी हैं।
  • अपने परम्परागत अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में इन्होंने अपना विरोध प्रकट किया, चाहे वह फिर अंग्रेजों के विरुद्ध हो या फिर देशी शासक के विरुद्ध।
  • यहाँ के किसानों ने भी अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों, शोषण एवं आर्थिक मार के विरोध में अपना विरोध जताकर राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दे डाली।
गोविन्द गुरू (1858-1931)
  • वागड़ प्रदेश में आदिवासी भीलों के उद्धार के लिए ‘भगत आन्देालन’ (1921-1929) चलाया था।
  • इससे पूर्व गोविन्द गुरु ने 1883 में ‘सम्प सभा’ की स्थापना कर इसके माध्यम से भीलों में सामाजिक एवं राजनीतिक जागृति पैदा कर उन्हें संगठित किया। उन्होंने मेवाड़, डूँगरपुर, ईडर, मालवा आदि क्षेत्रों में बसे भीलों एवं गरासियों को ‘सम्प सभा’ के माध्यम से संगठित किया।
  • उन्होंने एक ओर तो इन आदिवासी जातियों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न किया तो दूसरी ओर, उनको अपने मूलभूत अधिकारों का अहसास कराया।
  • गोविन्द गुरु ने ‘सम्प सभा’ का प्रथम अधिवेशन गुजरात में स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर किया।
  • इस अधिवेशन में गोविन्द गुरु के प्रवचनों से प्रभावित होकर हजारों भील-गरासियों ने शराब छोड़ने, बच्चों को पढ़ाने और आपसी झगड़ों को अपनी पंचायत में ही सुलझाने की शपथ ली।
  • गोविन्द गुरु ने उन्हें बैठ-बेगार और गैर वाजिब लागतें नहीं देने के लिए आह्वान किया। इस अधिवेशन के पश्चात् हर वर्ष आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा का अधिवेशन होने लगा।
  • भीलों में बढ़ती जागृति से पड़ोसी राज्य सावधान हो गये। अतः उन्होंने ब्रिटिश सरकार से प्रार्थना की कि भीलों के इस संगठन को सख्ती से दबा दिया जावे।
  • हर वर्ष की भाँति जब 1913 में मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा का अधिवेशन हो रहा था, तब ब्रिटिश सेना ने मानगढ़ की पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया। उसने भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी।
  • 1500 आदिवासी घटना स्थल पर ही शहीद हो गये।
  • गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। परन्तु भीलों में प्रतिक्रिया होने के डर से उनकी यह सजा 20 वर्षों के कारावास में तब्दील कर दी। अंत में वे 10 वर्ष में ही रिहा हो गये। गुरु अहिंसा के पक्षधर थे व उनकी श्वेत ध्वजा शांति की प्रतीक थी।
मोतीलाल तेजावत
  • राजस्थान में स्वतन्त्रता आन्दोलन एवं आदिवासियों में जनजागृति लाने वालों में मोतीलाल तेजावत (1888-1963) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तेजावत का जन्म उदयपुर में ओसवाल परिवार में हुआ था।
  • तेजावत ने एक बड़ा आन्दोलन ‘एकी आन्दोलन‘ (1921-22) का सफल नेतृत्व किया।
  • मोतीलाल मेवाड़ रियासत के झाड़ोल ठिकाने के कामदार थे।
  • आदिवासियों पर किये जाने वाले जुल्मों से व्यथित होकर उन्होंने ठिकाने की नौकरी छोड़ दी।
  • यह आंदोलन भोमट क्षेत्र के भीलो ने किया था अतः इसे भोमट भील आंदोलन भी कहा जाता है।
  • चित्तोड़गढ़ के मातृकुंडिया नामक स्थान से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
  • उन्होंने 1921 में भीलों को जागीरदारों द्वारा ली जाने वाली बैठ-बेगार और लाग- बागों के प्रश्न को लेकर संगठित करना प्रारम्भ किया।
  • यह आन्दोलन सिरोही, ईडर, पालनपुर, विजयनगर आदि राज्यों में भी विस्तार पाने लगा।
  • तेजावत ने अपनी मांगों को लेकर भीलों का एक सम्मेलन विजयनगर राज्य के नीमड़ा गाँव में आयोजित किया।
  • मेवाड़ एवं अन्य पड़ोसी राज्यों की सेनाएँ भीलों के आन्दोलन को दबाने के लिए नीमड़ा में सेना द्वारा सम्मेलन स्थल को घेर लेने और गोलियाँ चलाने के कारण 1200 भील मारे गये और कई घायल हो गये।
  • मोतीलाल तेजावत पैर में गोली लगने से घायल हो गये।
  • तेजावत भूमिगत हो गये, इस कारण मेवाड़, सिरोही आदि राज्यों की पुलिस उनको पकड़ने में नाकामयाब रहीं।
  • अंत में, 8 वर्ष पश्चात् 1929 में गाँधीजी की सलाह पर तेजावत ने अपने आपको ईडर पुलिस के सुपुर्द कर दिया।
  • 1936 में उन्हें रिहा कर दिया गया।