आई माता
- बिलाड़ा जोधपुर
- छुआछूत की को दूर कर निम्न वर्ग को ऊंचा उठाने का कार्य किया।
- सिरवी समाज की कुल देवी
- मंदिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती है।
- दरगाह- मंदिर को कहते हैं, मंदिर में मूर्ति नहीं, जिसे बढेर या थान कहते हैं।
नीम के पेड़ के नीचे अपना पंथ चलाया।
जमवाय माता
- ढूंढाड़ के कछवाहा वंश की कुल देवी है। जमवायरामगढ़, जयपुर में मंदिर जिसे दुल्हेराय ने बनवाया।
सकराय माता
- उदयपुरवाटी, झुंझुनूं में मंदिर।
- खण्डेलवालों की कुल देवी।
- उन्होंने अकाल पीड़ित लोगों के लिए फल, सब्जियां, कंदमूल पैदा किये, इसी कारण यह देवी शाकंभरी कहलाई।
एक मंदिर सांभर में दूसरा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है।
नागणेची माता
- मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुलदेवी। मंदिर नागाणा गांव, बाड़मेर में है।
नारायणी माता
- राजगढ़, अलवर में। मंदिर 11वीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में बनाया।
- नाई समाज की कुल देवी।
भदाणा माता
- कोटा में मूठ से पीड़ित व्यक्ति का इलाज किया जाता हैं
बड़ली माता
- टाकोला, चित्तौड़गढ़ में बेड़च नदी के किनारे मंदिर।
- मंदिर की दो तिबारियों से बच्चे को निकालने से असाध्य रोग सही हो जाते हैं।
बाणमाता
- मेवाड़ के सिसोदिया वंश की कुल देवी
- केलवाड़ा राजसमंद में मंदिर है।
- इसे बरबड़ी माता कहते हैं।
सच्चिया माता
- ओसिया, जोधपुर में मंदिर है।
- इसका निर्माण 8वीं से 11वीं शताब्दी में प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया। परमार राजकुमार उत्पल देव द्वारा मंदिर का निर्माण।
- ओसवालों की कुलदेवी है।
चौथ माता
- चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर में।
लटियाल माता
- कल्ला ब्राह्मणों की कुल देवी।
- मंदिर फलौदी जोधपुर और लोद्रवा जैसलमेर में।
चामुंडा माता
- मारवाड़ के राठौड़ वंश की आराध्य देवी।
- प्रतिहारों की कुल देवी।
स्वांगिया माता
- जैसेलमेर के भाटियों की कुलदेवी है। सुगन चिड़ी इनका प्रतीक रूप है।
- आवड़ माता का एक रूप स्वांगिया माता हैं
तनोट माता
- तनोट जैसलमेर में स्थित मंदिर। यह जैसलमेर के भाटियो की आराध्य देवी है।
- 1965 ई. में भारत-पाक युद्ध के समय बम गिराए गए, फिर भी सुरक्षित है।
- सेना के जवानों की देवी। इसे थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है।
पुजारी बी.एस.एफ के जवान