पुरन्दर की संधि

पुरन्दर की संधि

  • शाइस्ता खां की असफलता के बाद औरंगजेब ने शिवाजी का दमन करने के लि आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भारत भेजा।
  • वह औरंगजेब का सबसे विश्वस्त सलाहकारों में से था। उसे पूरी प्रशासनिक और सैनिक स्वायत्तता प्रदान की गई जिससे उसे दक्कन में मुगल प्रति​निधि पर किसी प्रकार निर्भर न रहना पड़े।
  • उसने पहले के सेनापतियों की तरह मराठों की शक्ति को कम आंकने की भूल नहीं की। उसने शिवाजी को अकेला करने के लिए पहले उनके प्रमुख सेनापतियों को प्रलोभन दिया।
  • उसने शिवाजी को कमजोर करने के लिए पूना की जागीर के आसपास के गांवों को तहस—नहस कर दिया।
  • यूरोप की व्यापारी कंपनियों को भी मराठा नौ—सेना की किसी भी कार्रवाई को रोकने के निर्देश दे​ दिए गए।
  • जयसिंह ने पुरन्दर के दुर्ग की 1665 ई. में घेराबंदी कर दी। अंतत: मराठों को झुकना पड़ा और दोनों पक्षों के बीच 11 जून, 1665 ई. को पुरन्दर की संधि हुई, जिसकी शर्तें निम्न प्रकार थी—
    1. इस संधि के अनुसार शिवाजी को 35 में से 23 किले और उनके आसपास के इलाके जिनसे प्रतिवर्ष 4 लाख हूण की राजस्विक आमदनी होती थी, मुगलों को दे देने पड़े।
    2. शिवाजी ने मुगल आधिपत्य स्वीकार कर लिया परंतु अपने स्थान पर अपने पुत्र शम्भाजी को 5000 घुड़सवारों के साथ ​मुगलों की सेवा में भेजना स्वीकार किया।
    3. शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वादा किया।

इस प्रकार तीन माह में ही जयसिंह की कूटनीति और शक्ति ने शिवाजी को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के लएि बाध्य कर दिया। इस आक्रमण और संधि से शिवाजी को बहुत हानि हुई।

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