• कांची के पल्लव वंश की ऐतिहासिक जानकारी सबसे पहले हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति एवं ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से मिलती है।
  • पल्लव सातवाहनों के सामंत थे।
  • सिंहविष्णु ने 575 ई. में पल्लव वंश की स्थापना की।
  • ‘किरातार्जुनीयम’ के लेखक भारवि को सिंहविष्णु (अवनीसिंह) का संरक्षण प्राप्त था।
  • सिंहविष्णु ने मामल्लपुरम में आदिवराह गुहा मंदिर बनवाया।
  • पल्लव वंश की राजधानी कांची थी।

प्रमुख शासक:-

 

 

महेन्द्र वर्मन प्रथम (600-630 ई.)

 

  • इसके शासनकाल में पल्लवों और चालुक्यों के मध्य लम्बा संघर्ष शुरू हो गया था।
  • उसने ‘मत्तविलासप्रहसन’ नामक हास्य नाटक की रचना की, जिसमें कापालिकों, भिक्षुओं पर व्यंग्य किया है। उसने भगवदज्जुकीयम ग्रंथ भी लिखा।
  • उसने प्रसिद्ध संगीतज्ञ रूद्राचार्य से संगीत की शिक्षा ली।
  • संगीतशास्त्र पर आधारित ग्रंथ ‘कुडमिमालय’ की रचना इसके संरक्षण में की गई थी।
  • पहले जैन धर्म को मानता था लेकिन शैव संत अप्पार के प्रभाव में आकर शैव धर्म स्वीकार कर लिया।
  • उसने मत्तविलास, विचित्रचित्र, चेत्थकारी, चित्रकारपुल्ली, ललिताकुर एवं गुणभार की उपाधि धारण की थी।

 

 

नरसिंह वर्मन प्रथम 630-668 ई.

 

  • सर्वाधिक पल्लव शक्तिशाली शासक था।
  • उसके समय 641 ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची आया था।
  • उसने चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय को लगभग 642 ई. में परास्त किया और राजधानी बादामी पर अधिकार कर ‘महामल्ल’ और ‘वातापिकोंडा’ की उपाधि धारण की।
  • विजयस्तम्भ बनावाया।
  • श्रीलंका के मानवर्मन को सहायता के लिए शक्तिशाली नौ-सेना भेजी, उसे पुनः राजगद्दी प्राप्त करने में मदद की।
  • इसका उल्लेख काशक्कुड्डि ताम्रपत्र और महावंश में किया गया है।
  • महाबलीपुरम के एकाश्म मंदिर जिन्हें रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा करवाया गया था।
  • महाबलीपुरम् के सप्त पैगोडा का निर्माण नरसिंह वर्मन प्रथम ने करवाया।
  • रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रौपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है।
  • महाबलीपुरम् एक प्रमुख बंदरगाह था।
  • महेन्द्र वर्मन द्वितीय 668-670 ई.
परमेश्वर वर्मन प्रथम

670-680 ई.

  • शैव मतानुयायी था। उसने एकमल्ल, रणजय, उग्रदंड, गुणभाजन उपाध्यिां धारण की।

 

 

 

नरसिंह वर्मन द्वितीय 704-728 ई.

 

  • उसने राजसिंह, आगमप्रिय और शंकरभक्त की उपाधियां धारण की।
  • ‘दशकुमारचरित’ के लेखक दण्डी नरसिंहवर्मन द्वितीय के दरबार में रहते थे।
  • इसके समय में अरबों के आक्रमण हुए।
  • उसने कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इसी मंदिर के निर्माण से द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत हुई।
  • यह महाबलिपुरम् के शोर मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • उसने अपना एक दूत मंडल भेजा था।
  • उसके समय चीनी बौद्ध यात्रियों के लिए नागपट्टम में एक विहार का निर्माण करवाया था।
 

 

नंदिवर्मन प्रथम 731-795 ई.

 

  • वैष्णव मतानुयायी था।
  • वैलूरपाल्यम अभिलेख में दंतिवर्मन को ‘विष्णु का अवतार’ कहा गया है।
  • उसने कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरूमल मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमंगाई अलवार उसका समकालीन था।
  • नंदिवर्मन तृतीय की राजसभा में ‘भारतवेणवा’ ग्रंथ के रचनाकार संत पेरुंदेवनार निवास करता था
  • पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित 879-897 ई. था।

पल्लव कला एवं वास्तुकला

द्रविड़ शैली – पल्लवों के नेतृत्व में द्रविड़ शैली का विकास चार चरणों में हुआ था।

महेन्द्रशैली –

  • इसके अन्तर्गत कठोर पाषाणों को काटकर गुहा मन्दिरों का निर्माण हुआ, जिन्हें (मण्डप शैली) मण्डप कहा जाता है।

नरसिंह शैली (मामल्लशैली) –

  • इस शैली का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम मामल्ल के काल में हुआ। इसमें रथ या एक शिलाखंडीय (एकाश्म मंदिर) हैं जो मामल्लपुरम में पाए जाते हैं किन्तु वास्तव में आठ हैं – धर्मराज, अर्जुन, भीम, सहदेव, द्रौपदी, गणेशपिदारी एवं वालायन कुट्टीय।

राजसिंह शैली –

  • इसके अन्तर्गत गुहा मंदिरों के स्थान पर पाषाण, ईंट की सहायता से इमारती मन्दिरों का निर्माण किया गया इस शैली का प्रयोग नरसिंह वर्मन द्वितीय ने किया।
  • महाबलीपुरम् का तट, ईश्वर तथा मुंद मंदिर, कांची का कैलाशनाथ मंदिर एवं ऐतरातेश्वर मंदिर।

नंदिवर्मन शैली –

  • इस शैली के अंतर्गत अपेक्षाकृत छोटे मंदिर निर्मित हुए।
  • इसका प्रयोग नंदिवर्मन ने किया, जैसे -कांची के मुक्तेश्वर मंदिर, बैकुण्ठपेरूमल मंदिर आदि।