राष्ट्रीय आय

  • किसी भी देश के नागरिकों द्वारा एक निश्चित समयावधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है। राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा स्टॉक से संबंधित है।
  • राष्ट्रीय आय से अभिप्राय एक राष्ट्र की एक वर्ष में आर्थिक क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग से होता है।
  • राष्ट्रीय आय में उन समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों को सम्मिलित किया जाता है, जो देश के सामान्य निवासियों द्वारा घरेलू सीमा में अथवा इसके बाहर रहकर उत्पादित की गई है। इसमें विदेशों से अर्जित साधन आय को भी सम्मिलित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय उत्पाद मात्रात्मक अवधारण हैं, जबकि राष्ट्रीय आय गुणात्मक अवधारणा है।
  • किसी देश के निवासियों द्वारा एक निश्चित समयावधि में अपनी भौगोलिक सीमा के अंतर्गत उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है।
  • GDP = C+I+G, जहां C = उपभोग, I = निवे, G = सरकारी व्यय
  • सकल घरेलू उत्पाद की गणना करते समय पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय, हस्तांतरण भुगतान, वित्तीय प्रपत्रों के मूल्य तथा स्व-उपभोग की सेवाओं को सम्मिलिता नही किया जाता है। परन्तु वित्तिय प्रपत्रों के क्रय-विक्रय अथवा पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर देय कमीशन या प्राप्य कमीशन को सम्मिलित किया जाता है।
  • भारत में राष्ट्रीय आय की गणना का अनुमान सर्वप्रथम 1863 में दादाभाई नौरोजी ने लगाया था। इसी कारण दादाभाई नौरोजी को राष्ट्रीय आय की गणना का जनक माना जाता है।
  • दादाभाई नौरोजी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दो क्षेत्रों – कृषि क्षेत्र तथा गैर-कृषि क्षेत्र में विभाजित करके राष्ट्रीय आय की गणना की थी।
  • नौरोजी के अनुसार 1867 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड रूपये तथा प्रति व्यक्ति आय 20 रूपये वार्षिक थी।
  • 1931-32 में वी.के.आर.वी. राव ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक विधि से राष्ट्रीय की गणना तथा राष्ट्रीय आय लेखा प्रणाली का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार 1931-32 में भारत की राष्ट्रीय आय 1689 करोड रूपये तथा प्रति व्यक्ति आय 62 रूपये थी।
  • 1948-49 में प्रो.पी.सी. महालनोबिस की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया गया। डी.आर.गाडगिल तथा वी.के.आर.वी. राव को इसका सदस्य नियुक्त किया गया। साइमन कुजनेट्स इसके सलाहकार नियुक्त किये गए थे।

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