मुद्रा की परिभाषा
  • अंग्रेजी भाषा का शब्द Money लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा Moneta से बना।
  • पहली टकसाल रोम में देवी जूनो के मन्दिर में खुली थी। इसे मोनेटा नाम से पुकारते।
  • रोमन सिक्के मोनेटा देवी का शीश, दूसरी ओर मोनेटा नाम अंकित होता था।
  • लैटिन भाषा में मुद्रा शब्द के लिए पेक्यूनिया शब्द, जो पैकस शब्द से बना जिसका अर्थ पशुधन होता है।
  • राबर्टसन – ऐसी वस्तु जो वस्तुओं के लिए भुगतान में स्वीकार की जाए व अन्य प्रकार के व्यावसायिक लेन-देनों के निपटारे में प्रयुक्त हो।
  • मुद्रा वह हैं जो मुद्रा का कार्य करें।
  • प्रो. जे.बी. से ‘मुद्रा सर्वमान्य पदार्थ होती है।’
  • प्रो. एली ‘कोई भी वह वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कहलाती है।’
  • सर्वमान्य- मुद्रा वह पदार्थ है जिसे जनसामान्य द्वारा लेन-देन के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त होती है।
मुद्रा के कार्य –
  • मुद्रा की प्रकृति के अनुसार मुद्रा के चार कार्य निर्धारित किये जा सकते हैं।
  • जिसमें विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापन, संचय का साधन तथा स्थगित भुगतानों का आधार प्रमुख है।
अ. प्रमुख कार्य अथवा प्राथमिक कार्य-
विनिमय का साधन
  • वस्तु विनिमय प्रणाली के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय प्रणाली को सरल तथा सुगम बनाया है।
मूल्य का मापन
ब. सहायक अथवा गौण कार्य-
  • भावी भुगतान का आधार
  • स्ंचय का साधन
  • क्रय शक्ति का हस्तान्तरण
आकस्मिक कार्य-
  • साख मुद्रा का आधार – चैक, हुण्डी
सामाजिक आय का वितरण- 
  • उत्पादन में उत्पत्ति के साधनों श्रम, पूंजी, भूमि, साहस आदि को उसकी सीमान्त उत्पादकता के अनुसार प्रतिफल मिलना चाहिए।
सम्पत्ति की तरलता-
द. अन्य कार्य-
  • निर्णय का वाहक –
  • मुद्रा में संग्रह शक्ति एवं सर्वग्राह्यता गुण है।
  • इस कारण मनुष्य इसको संचित कर अपनी आवश्यकतानुसार एवं इच्छानुसार व्यय करके न केवल वस्तुओं को खरीद सकता है बल्कि लाभ का स्तर बढ़ा सकता है।
मुद्रा का महत्व- 

दो दृष्टिकोण

परम्परावादी दृष्टिकोण
  • अर्थशास्त्री: एड़म स्मिथ, जॉन स्टुअर्ट मिल
  • ये मानते हैं कि मुद्रा महत्त्वहीन है, अनुत्पादक है। यह विनिमय की एक नई पद्धति मात्र है।
आधुनिक दृष्टिकोण
  • मुद्रा अर्थव्यवस्था की समस्त सामाजिक, आर्थिक क्रियाओं का नियमन करती है।
  • मार्शल -‘मुद्रा वह धुरी है, जिस पर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।’
  • प्रो. रॉबर्टसन -‘मुद्रा एक सामाजिक बुराई है यह समस्त बुराइयों की जड़ है।
  • मुद्रा मानव के लिए वरदानों का स्रोत है परन्तु अनियंत्रण की स्थिति में यह अभिशाप है।
मुद्रा के गुण/महत्व-
आर्थिक क्षेत्र में
  • उपभोग के क्षेत्र में
  • उत्पादन के
  • विनिमय
  • श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण
  • मुद्रा पूंजी की गतिशीलता में वृद्धि करती है।
  • अर्थशास्त्र की धुरी
  • राजस्व
सामाजिक क्षेत्र में
  • सामाजिक स्वतंत्रता में वृद्धि
  • सामाजिक प्रतिष्ठादायक
  • सामाजिक कल्याण का मापक
  • राष्ट्रीय एकता
  • राजनैतिक एकता
  • अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में
मुद्रा के दोष अथवा सीमाएं
  • रॉबर्टसन – ‘मुद्रा एक अच्छा सेवक है किन्तु बुरा स्वामी है।’
मुद्रा के आर्थिक दोष
  • आर्थिक जीवन में अनिश्चितता
  • साधनों का केन्द्रीयकरण, असमानता
  • ऋणी अर्थव्यवस्था
  • शोषण में वृद्धि
  • धन संग्रह का उचित माध्यम नहीं
सामाजिक दोष 
  • सामाजिक वर्ग भेद
  • चारित्रिक एवं नैतिक पतन
  • भौतिकवाद तथा द्वेषी प्रवृत्ति
  • प्रतिष्ठा का आधार मुद्रा न कि ज्ञान

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