मौर्ययुगीन कला को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  • दरबारी अथवा राजकीय कला जिसमें राजप्रासाद, स्तम्भ, गुहा-विहार, स्तूप
  • लोककला जिसमें स्वतंत्र कलाकारों द्वारा लोकरूचि की वस्तुओं का निर्माण किया गया, जैसे- यक्ष-यक्षिणी, प्रतिमाएं, मिट्टी की मूर्तियां आदि।
स्तम्भ कला
  • स्तम्भ मौर्ययुगीन वास्तुकला के सबसे अच्छे उदाहरण है।
  • सर जॉन मार्शल, पर्सीब्राउन, स्टेला कैम्रिश जैसे विद्वानों इन्हें ईरानी स्तम्भों की अनुकृति बताते हैं।

इन स्तम्भों में मूलभूत अंतर है –

  1. अशोक के स्तम्भ एकाश्मक अर्थात् एक ही पत्थर से तराशकर बनाये गये हैं। जबकि ईरानी स्तम्भों को कई मण्डलाकार टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया।
  2. अशोक के स्तम्भ बिना चौकी या आधार के भूमि पर टिकाये गये हैं जबकि ईरानी स्तम्भों को चौकी पर टिकाया गया है।
  3. ईरानी स्तम्भ विशाल भवनों में लगाये गये हैं जबकि अशोक के स्तम्भ स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं।
  4. अशोक के स्तम्भों के शीर्ष पर पशुओं की आकृतियां है, जबकि ईरानी स्तम्भों पर मानव आकृतियां हैं।
  5. ईरानी स्तम्भ गड़ारीदार है किन्तु अशोक के स्तम्भ सपाट है।
  6. अशोक के स्तम्भों के शीर्ष पर लगी पशु मूर्तियों का एक विशेष प्रतीकात्मक अर्थ है जिसकी समुचित व्याख्या भारतीय परम्पराओं में सम्भव है।
  7. अशोक के स्तम्भ नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः पतले होते गये हैं, जबकि ईरानी स्तम्भों की चौड़ाई नीचे से ऊपर तक एक जैसी है।
  • स्पूनर ‘मौर्य स्तम्भों पर जो ओपदार पॉलिश है वह ईरान से ग्रहण की गई है।’
  • अशोक के स्तम्भों की संख्या निश्चित नहीं है।
  • फाह्यान ने छः तथा ह्वेनसांग ने 15 स्तम्भों का उल्लेख किया।
  • ये चुनार के बलुआ पत्थर से निर्मित है।
  • अशोक द्वारा निर्मित स्तम्भों पर सामान्यतः चार पशु सिंह, अश्व, हाथी तथा बैल की आकृति मिलती है। इसके साथ ही 24 आरियों का धम्मचक्र भी स्तम्भों पर मिलती है।
स्तम्भ
पशु आकृति
सांची, मध्यप्रदेश चतुर्सिंह शीर्ष
सारनाथ, उत्तर प्रदेश चतुर्सिंह
रामपुरवा, बिहार वृषभ
लौरिया अरराज, बिहार गरुड़
संकिशा, बिहार गज
लुम्बिनी, नेपाल की तराई अश्व
लौरिया नन्दनगढ़ सिंह
कौशाम्बी, इलाहाबाद सिंह
बसाढ़ सिंह
दिल्ली-टोपरा सिंह
दिल्ली-मेरठ सिंह

नोट –

  • लौरिया नन्दनगढ़ स्तम्भ पर औरंगजेब का लेख मिलता है।
  • कौशाम्बी, इलाहाबाद स्तम्भ पर समुद्रगुप्त, जहांगीर तथा बीरबल के लेख मिले हैं।
  • दिल्ली-टोपरा स्तम्भ प्रारम्भ में टोपरा नामक स्थान पर स्थित था इसे फिरोजशाह तुगलक द्वारा यहां लाया गया। इस पर लिखे अभिलेख को जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ई. में पहली बार पढ़ा जो ब्राह्मी लिपि में लिखा था व अनुवाद किया।
  • इस स्तम्भ अभिलेख पर अजमेर के चौहान शासक बीसलदेव का लेख भी मिलता है।
  • इस स्तम्भ अभिलेख पर सात आदेश खुदें मिलते हैं, जबकि अन्य स्तम्भ अभिलेखों पर 6 आदेश ही मिलते है।
  • दिल्ली-मेरठ स्तम्भ पहले मेरठ में स्थित था जिसे फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली ले जाया गया।