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मार्टिन लूथर का धर्म सुधार आन्दोलन में योगदान

मार्टिन लूथर 1483-1546
लूथर के विचार एवं उनका प्रसार:-
  1. उसने ईसा और बाइबिल की सत्ता स्वीकारने तथा पोप और चर्च की दिव्यता एवं निरंकुशता को नकारने की बात कही।
  2. चर्च द्वारा निर्धारित कर्मों के स्थान पर उसने ईश्वर में आस्था को मुक्ति का साधन बताया।
  3. ‘सप्त संस्कारों’ में से उसने केवल तीन नामकरण, प्रायश्चित और पवित्र प्रसाद/रोटी को ही माना।
  4. चर्च के चमत्कार में अविश्वास व्यक्त किया।
  5. किसी भी व्यक्ति को न्याय से उपर नही होना चाहिए।
  6. रोम के चर्च के प्रभुत्व का अन्त करके राष्ट्रीय चर्च की शक्ति को सबल बनाया जाना चाहिए।
  7. धर्मग्रंथ सबके लिए हैं, सब उसका ज्ञान प्राप्त कर सकते है।
  8. चर्च के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पादरी लोगों को विवाह करके सभ्य नागरिकों की तरह रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  9. मुक्ति केवल ईश्वर की असीम दया, ईश्वर में श्रद्धा तथा भक्ति के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है, धर्माधिकरियों की कृपा से नहीं।
  10. क्षमायाचना से विशेष लाभ नही होता है। जो व्यक्ति वास्तव में पश्चाताप करता है। वह यातना से भागता नही है, अपितु पश्चाताप की चिरस्मृति को बनाए रखने के लिए उसे सहर्ष सहन करता है। जब वह अन्तःकरण से पश्चाताप करता है, उसे अपने पाप तथा यातना दोनों से मुक्ति मिल जाती है।
  11. उसने कैथोलिक चर्च की श्रेणीबद्ध व्यवस्था को अस्वीकार किया।
  12. जर्मन भाषा को चर्च के कार्य व्यवहार की भाषा बनाया।
  13. मठवाद का अन्त किया।
  14. धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में पुरोहितों के विशेष पदों को समाप्त किया।
  15. देववाद के सिद्धान्तों एवं धर्म ग्रंथों की सत्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
  16. तीर्थयात्रा एवं अवशेषों की यात्रा को गौण माना।
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