प्रारम्भिक राजधानी- उज्जैन, कालान्तर में धारा (मध्यप्रदेश में)
प्रथम स्वतंत्र शासक सीयक अथवा श्रीहर्ष।
इसने अपने वंश को राष्ट्रकूटों की अधीनता से मुक्त कराया।
वाकपति मुंज
चालुक्य राजा तैलप द्वितीय को मुंज ने 6 बार हराया। 7वीं बार युद्ध में बन्दी बनाकर उसकी हत्या कर दी।
श्रीवल्लभ, पृथ्वीवल्लभ, अमोघवर्ष आदि उपाधियां धारण की।
कौथेम दान-पात्र में उसके द्वारा हूणों को पराजित करने का उल्लेख।
कवियों एवं विद्वानों का आश्रयदाता, उसके दरबार में – ‘यशोरूपलोक’ के लेखक धनिक, ‘नवसाहसांकचरित’ के लेखक पद्मगुप्त और ‘दशरूपक’ के लेखक धनंजय निवास करते थे।
धारा में ‘मुंज सागर’ नामक तालाब का निर्माण कराया।
भाई सिंधु राज शासक बना। पद्मगुप्त द्वारा लिखित नवसाहसांकचरितम् में इसी परमार नरेश के जीवन चरित का वर्णन किया गया है।
भोज 1000-55
चंदेल विद्याधर के हाथों पराजित हुआ।
1008 ई. में महमूद गजनवी के विरुद्ध शाही शासक आनन्दपाल को उज्जैन के शासक भोज ने सैनिक सहायता भेजी।
भोज ने प्राचीन राजधानी उज्जैन को छोड़कर धारा को अपनी राजधानी बनाई।
पराक्रमी शासक के साथ ही वह विद्वान, विद्या एवं कला का संरक्षक था।
कविराज की उपाधि धारण की। उसने विविध विषयों – चिकित्साशास्त्र, खगोलशास्त्र, धर्म, व्याकरण, स्थापत्यशास्त्र आदि पर बीस से अधिक ग्रंथों की रचना की।
उसके द्वारा लिखित ग्रन्थों में चिकित्साशास्त्र पर आयुर्वेद सर्वस्व एवं स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
इसके अतिरिक्त – सरस्वती कठांभरण, सिद्धांतसंग्रह, योगसूत्रवृत्ति, राजमार्तण्ड, विद्याविनोद, युक्ति-कल्पतरु, चारुचर्चा, आदित्य प्रताप सिद्धांत, प्राकृत व्याकरण, कूर्मशतक, श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख है।
आईन-ए-अकबरी – उसके दरबार में 500 विद्वान का उल्लेख किया
दरबारी कवि – भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल
अनुश्रुति के अनुसार वह हर कवि को प्रत्येक श्लोक पर 1 लाख मुद्राएं देता था।
भोज ने धारा नगरी का विस्तार किया और वहां भोजशाला के रूप में प्रख्यात एक महाविद्यालय की स्थापना कर उसमें वाग्देवी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की।
अपने नाम से उसने भोजपुर नगर बसाया तथा एक बहुत बड़े भोजसर नामक तालाब को निर्मित करवाया।