• मदन लाल ढींगरा ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने परिवार की इच्छाओं के विपरीत देश के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्हें देश प्रेम और गुलामी की दासता को त्यागने के लिए परिवारों वालों से नाराजगी का सामना करना पड़ा, क्योंकि मदन का परिवार अंग्रेज सरकार का राजभक्त था। परंतु उनके हृदय में पल रही देशभक्ति को परिवार के बंधन नहीं विचलित कर पाए और वह देश के लिए शहीद हो गए।

मां के धार्मिक विचारों का प्रभाव पड़ा

  • मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 फरवरी, 1883 में पंजाब राज्य के अमृतसर में हुआ। उनके पिता डॉ. दित्तामल ब्रिटिश सरकार के भक्त थे और रहन-सहन में पूरे अंग्रेज थे। पिता पंजाब सिविल में सर्जन पद पर थे, इसलिए परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। लेकिन उनकी मां धार्मिक प्रवृति और भारतीय संस्कारों में पली बढ़ी थी इसलिए मदनलाल पर उनके विचार का बहुत प्रभाव पड़ा।
  • ढींगरा ने सन् 1900 में एमबी इंटरमीडिएट कॉलेज अमृतसर में स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद वह लाहौर स्थित गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने चले गए। उन्होंने वर्ष 1904 में स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर इंग्लैंड से आयातित कॉलेज ब्लेजर के विरोध में छात्रों का नेतृत्व किया। इस कारण उसको कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय वे कॉलेज से मास्टर ऑफ आर्ट्स में अध्ययन कर रहे थे। जब परिवार में इस बात का पता चला तो मदन से रिश्ता तोड़ लिया गया। वह पढ़ाई कर रहे थे तब उन्होंने विस्तृत रूस से भारतीय गरीबी और अकाल के बारे में पढ़ा और उन्होंने निश्चय किया कि वह देश की आजादी के लिए लड़ेंगे।
  • ढींगरा ने अपनी आजीविका चलाने के लिए पहले क्लर्क के रूप में काम किया, फिर कालका में एक तांगा (गाड़ी) चलाया और बाद में एक कारखाने में मजदूरी की। इस दौरान उन्होंने संघ को संगठित करने का प्रयास किया लेकिन बर्खास्त कर दिया गया।

इंजीनियरिंग के लिए लंदन जाना और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल

  • अपने बड़े भाई डॉ. बिहारी लाल की सलाह पर अपनी उच्च शिक्षा जारी रखने के लिए वे इंग्लैंड चले गए और वहां वर्ष 1906 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में दाखिला लिया।
  • मदनलाल लंदन स्थित इंडिया हाउस से जुड़ गए जो वर्ष 1905 में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित किया गया क्रांतिकारी संगठन था। यहीं पर उनकी मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर से हुई। वे उनसे काफी प्रभावित हुए। वहीं पर ढींगरा ने हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

कर्जन वायली की हत्या

  • ब्रिटिश सरकार का एक भारतीय सेना का अवकाश प्राप्त अधिकारी कर्नल विलियम वायली लंदन में रहता था। वायली लंदन में रह रहे भारतीय छात्रों की जासूसी करता था। वायली उसके पिता के दोस्त थे और उसने मदनलाल के पिता को सलाह दी थी कि वह अपने पुत्र को इंडिया हाउस से दूर रहने की सलाह दे। इस पर उसके मन में उनके प्रति घृणा जाग्रत होने लगी। लंदन में रह रहे क्रान्तिकारियो ने अंग्रेजों के जासूस वायली की हत्या करने का निश्चय किया। इस काम का जिम्मा ढींगरा को सौंपा गया। उन्होंने इंडिया हाउस में रहकर बंदूक चलाने का प्रशिक्षण लिया था।
  • 1 जुलाई, 1909 को लंदन में हुए इंडियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने आए कर्नल वायली की मदनलाल ढींगरा ने गोली मारकर हत्या कर दी। गोली मारने के तुरंत बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।

मदनलाल को फांसी की सजा

  • उसको जब कोर्ट में पेश किया गया था तो वायली की हत्या पर उन्होंने कहा कि उन्हें कर्नल वायली की हत्या का कोई दुख नहीं है। ढींगरा ने कहा था कि उन्होंने अमानवीय ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए अपनी भूमिका निभाई। कोर्ट के फैसले के बाद ढींगरा को ब्रिटिश जेल में 17 अगस्त, 1909 को फांसी पर लटकाया गया।

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