क्या कारण है कि साबुन एवं अपमार्जक गंदे वस्त्रों को सरलता से साफ कर देते हैं?
पदार्थ के आणविक गुण
विसरण –
विभिन्न गैसों, द्रवों व ठोसों तक के भी अणुओं के परस्पर मिश्रित होने को विसरण कहते हैं। द्रव में विसरण गैस की अपेक्षा धीमी गति से होता है तथा ठोस में अत्यन्त ही धीमी गति से होता है।
इत्र की खुशबू का फैलना इत्र के अणुओं का वायु के अणुओं में विसरण के कारण होता है।
ससंजक बल –
एक ही पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं। ठोस में ससंजक बल का मान अधिक होता है।
आसंजक बल –
दो विभिन्न पदार्थों के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं।
आसंजक बल के कारण ही पानी कांच को भिगोता है तथा पीतल के बर्तनों पर निकल की पॉलिश की जाती है।
जल के अणुओं के मध्य ससंजन की अपेक्षा जल व कांच के अणुओं में आसंजन अधिक होने के कारण, कांच की प्लेट पर पड़ी जल की बूंद फैल जाती है।
पारे की बूंद लगभग गोलीय रूप में रहती है, क्योंकि पारे के अणुओं का ससंजन कांच के अणुओं के प्रति उनके आसंजन से अधिक होता है।
पृष्ठ तनाव –
द्रव का स्वतंत्र पृष्ठ सदैव तनाव की स्थिति में रहता है तथा उसमें कम-से-कम क्षेत्रफल प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।
द्रव के पृष्ठ का यह तनाव ही पृष्ठ तनाव कहलाता है।
द्रव की सतह प्रत्यास्थ-झिल्ली के रूप में कार्य करती है।
पृष्ठ तनाव का मात्रक न्यूटन/मीटर होता है।
द्रव का ताप बढ़ाने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है और क्रांतिक ताप पर यह शून्य हो जाता है।
द्रव की बूंदे जैसे – वर्षा की बूंद, तेल की बूंद, पिघली धातु की बूंद, ओस की बूंद सभी गोलीय होती हैं, क्योंकि उनकी सतह सिकुड़कर न्यूनतम क्षेत्रफल प्राप्त करना चाहती है।
क्या कारण है कि साबुन एवं अपमार्जक गंदे वस्त्रों को सरलता से साफ कर देते हैं?
साबुन एवं अपमार्जक डिटर्जेंट जल के पृष्ठ तनाव को कम करते हैं, अतः इनको पानी में मिलाने पर बना घोल वस्त्रों व बर्तनों को और अधिक गीला करता है, जिससे उन पर लगी गंदगी को सरलता से छुड़ाने में सफलता मिलती है।
केशिकत्व –
केशनली में द्रव के ऊपर चढ़ने या नीचे दबने की घटना को केशिकत्व कहते हैं। किस सीमा तक द्रव केशनली में चढ़ता या उतरता है, यह केशनली की त्रिज्या पर निर्भर करता है।
सामान्यतः जो द्रव कांच को भिगोता है वह केशनली में ऊपर चढ़ जाता है और जो द्रव कांच को नहीं भिगोता वह नीचे दब जाता है।
केशिका नली में जल के ऊपर चढ़ने का कारण है जल के अणुओं का एक-दूसरे के प्रति आकर्षण एवं इसके साथ ही जल के अणुओं का कांच के अणुओं के प्रति आकर्षण।
लालटेन या लैम्प में इसी प्रक्रिया के कारण बत्ती पर तेल ऊपर जाता है।
ब्लॉटिंग पेपर के छोटे-छोटे रंध्र बारीक केशिका के रूप में कार्य करते हैं और स्याही इन रंध्रों द्वारा सोखकर ऊपर आ जाती है।
मिट्टी में केशिकत्व की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही जल, पौधों की जड़ों तक पहुंचता है।
पेड़-पौधों की शाखाओं, तनों एवं पत्तियों तक जल और आवश्यक लवण केशिकत्व की क्रिया द्वारा ही पहुंचते हैं।
फाउन्टेन पेन के निब की नोक बीच में चिरी होती है, जिससे स्याही उसमें चढ़ जाती है।
तरल का वह गुण जिसके कारण तरल की विभिन्न परतों के मध्य आपेक्षिक गति का विरोध होता है, श्यानता कहलाता है।
ताप बढ़ाने पर द्रव की श्यानता घट जाती है, परन्तु गैसों की बढ़ जाती है। किसी तरल की श्यानता को श्यानता गुणांक द्वारा मापा जाता है जिसका एसआई मात्रक डेकाप्वॉइज या प्वॉयजली कहलाता है। इसे पास्कल सेकेण्ड भी कहते हैं।
जब कोई वस्तु किसी श्यान द्रव में गिरती है तो प्रारंभ में उसका वेग बढ़ता जाता है, किन्तु कुछ समय बाद वह नियत वेग से गिरने लगती है। इस नियत वेग को ही वस्तु का सीमान्त वेग कहते हैं।
यह वेग की त्रिज्या के वर्ग का अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात् बड़ी वस्तु अधिक वेग से और छोटी वस्तु कम वेग से गिरती है।
वर्षा की छोटी-छोटी बूंदें सीमान्त वेग से पृथ्वी की ओर गिरती हैं।
पैराशूट में भी व्यक्ति सीमान्त वेग से नीचे आता है।
जितनी तेजी से हम वायु में दौड़ सकते हैं, उतनी तेजी से जल में नहीं दौड़ सकते। ऐसा क्यों होता है?
इसका कारण है कि जल की श्यानता वायु से अधिक होती है जो हमारे दौड़ने का विरोध करती है। जो द्रव जितने अधिक गाढ़े होते हैं, वे उतने ही अधिक श्यान होते हैं। वायु की श्यानता के कारण ही बादल के कण बहुत धीरे-धीरे नीचे आ पाते हैं तथा बादल आकाश में तैरते प्रतीत होते हैं। एक आदर्श तरल की श्यानता शून्य होती है।
प्रत्यास्थता
प्रत्यास्थता किसी पदार्थ का वह गुण है, जिसके कारण वस्तु किसी विरूपक बल के द्वारा उत्पन्न आकार अथवा रूप के परिवर्तन का विरोध करती है तथा विरूपक बल हटा लिए जाने पर अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।
पदार्थ की उस सीमा को जिससे आगे उसका प्रत्यास्थता का गुण समाप्त हो जाता है, ‘ प्रत्यास्थता सीमा’ कहते हैं।
हुक का नियम
प्रत्यास्थता की सीमा के अंदर प्रतिबल सदैव विकृति के अनुक्रमानुपाती होता है। इसे हुक का नियम कहते हैं।
अर्थात् प्रतिबल ∞ विकृति
प्रतिबल = प्रत्यास्थता (E) X विकृति
अथवा, प्रतिबल/विकृति = प्रत्यास्थता E
जहां E एक नियतांक है, जिसे प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
किसी दिये हुए पदार्थ के लिए प्रत्यास्थता गुणांक का मान प्रतिबल तथा विकृति पर निर्भर करता है।
यदि विकृति अनुदैर्घ्य है तो प्रत्यास्थता गुणांक को यंग का प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं और विकृति आयतन में है, तो इसे ‘आयतनात्मक प्रत्यास्थता गुणांक’ कहते हैं।