कोशिका का शक्तिगृह कहलाता है

  • जीवन की मूल इकाई कोशिका कहलताली है। सर्वप्रथम 1965 ई. में रॉबर्ट हुक नामक वैज्ञानिक ने कॉर्क के एक सेक्शन के अध्ययन के पश्चात् पाया कि उसकी संरचना मधुमक्खी के छत्ते से मेल खाती है। इस संरचना को उन्होंने कोशिका नाम दिया।
  • 1833 ई. में रॉबर्ट ब्राउन ने कोशिका के केन्द्रक की खोज की और 1838-39 में श्लाइडेन और श्वान नामक वैज्ञानिकों ने बहुचर्चित कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत की।
  • कोशिका सिद्धांत के अनुसार, सभी जीव कोशिकओं से बने होते हैं, तथा कोशिका ही प्रत्येक जीवधारी की मूल संरचना तथा कार्यात्मक इकाई है।
  • समस्त जैविक क्रियाएं कोशिकाओं में ही सम्पन्न होती हैं।
  • अमीबा एवं पैरामीशियम जैसे जीवों का शरीर मात्र एक कोशिका से ही निर्मित होता है। ऐसे जीव एककोशिकीय जीव कहलाते हैं।
  • मनुष्य, बंदर, वृक्ष जैसे जीवधारियों का शरीर अनेक कोशिकाओं का संगठन होता है। ऐसे जीव बहुकोशिकीय जीव कहलाते हैं।
  • संरचना के आधार पर कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं:- प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक
  • प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्लीबद्ध नहीं होता। प्रोकैरियोटिक डीएनए अनावृत्त (नग्न) होता है और कोशिका के मध्य
  • खुले रज्जुकों के रूप में रहता है, जिसे केन्द्रकाभ (न्यूक्लिऑयड) कहते हैं।
  • यूकैरियोटिक कोशिकाओं में एक सुस्पष्ट केन्द्रक दो झिल्लियों से घिरा होता है।
  • नील-हरित शैवालों तथा कुछ जीवाणुओं में प्रोकैरियोटिक संगठन पाया जाता है।
  • सूक्ष्मतम कोशिका माइकोप्लाज्म में प्रोकैरियोटिक संगठन पाया जाता है।

कोशिका झिल्ली –

  • कोशिका झिल्ली तथा कोशिकांगों की सुरक्षा के लिए अजैव पदार्थों की कोशिका भित्ति बनी होती है। जन्तु कोशिका में यह अनुपस्थित होती है।
  • कोशिका झिल्ली अर्द्धपारगम्य झिल्ली होती है, जिसकी मोटाई 75  होती है। कोशिका झिल्ली का मुख्य कार्य विसरण या जल की परासरण क्रिया पर नियंत्रण और इलेक्ट्रॉन के आवागमन हेतु माध्यम का कार्य करना है।

लाइसोसेाम –

  • इसकी खोज सी.डी. डुवे ने 1955 ई. में की।
  • इसे ‘आत्महत्या की थैली’ कहते हैं। इसका कार्य कोशिकाओं के अंदर अनावश्यक पदार्थों का विघटन करना है।

माइटोकॉन्ड्रिया –

  • इसे कोशिका का ‘शक्ति केन्द्र’ कहा जाता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया में कहुत से श्वसन एन्जाइम रहते हैं, जिनकी सहायता से इलेक्ट्रॉन स्थानांतरण के द्वारा ऊर्जा (ए.टी.पी.) का निर्माण होता है।
  • कोशिका द्रव्य में रसधानियों को आवृत्त करते हुए झिल्लियों के जाल को अन्तर्द्रव्यी जालिका कहते हैं।
  • गॉल्जी उपकरण प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है। अतिरिक्त लगभग सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है।
  • यह कोशिकांग अनेक चक्राभ, चपटी, पट्टिका जैसे कक्षों या सिस्टनी का बना होता है। इसके मुख्य कार्य संचयन, संघनन, संवेष्ठन तथा पदार्थों का स्थानांतरण आदि है।
  • राइबोसोम सूक्ष्म, घने तथा गोलाकार कण होते हैं, जो अंतर्द्रव्यी जालिका के साथ लगे होते हैं। इनका कार्य प्रोटी का संश्लेषण करना होता है।
  • केन्द्रक कोशिका का मुख्य भाग होता है। केन्द्रक में डीएनए तथा आरएनए और क्रोमोसोम पाये जाते हैं, इसलिए केन्द्रक का आनुवंशिकी में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • कोशिका विभाजन तीन प्रकार का होता है – पहला, असूत्री विभाजन, दूसरा समसूत्री विभाजन तथा तीसरा अर्द्धसूत्री विभाजन।
  • असूत्री विभाजन अविकसित कोशिकाओं में होता है, जैसे – जीवाणु, नीलहरित शैवाल, यीस्ट, अमीबा आदि।
  • समसूत्री विभाजन केवल कायिक कोशिकाओं में होता है। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1882 ई. में फ्लेमिंग ने किया था।
  • अर्द्धसूत्री विभाजन केवल लिंगी जनन करने वाले जीवों में होता है। इसमें क्रोमोसोम द्विगुणित से विभाजित होकर अगुणित बनते हैं, इसलिए इसे न्यूनकारी विभाजन भी कहा जाता है।

जंतु व पादप कोशिका में अंतर

जंतु कोशिका पादप कोशिका
कोशिका कला के बाहर कोई भित्ति नहीं होती। कोशिका कला चारों ओर से एक भित्ति द्वारा घिरी होती है जिसे कोशिकाभित्ति कहते है।
रसधानियां या तो होती नहीं, होती है तो बहुत छोटी। अतः कोशिका द्रव्य कोशिका में समान रूप से वितरित रहता है। बड़ी-बड़ी रसधानियां होती हैं। फलस्वरूप कोशिकाद्रव्य कोशिका कला के साथ-साथ एक छोटे भाग में ही दिखायी पड़ता है।
लवक नहीं पाये जाते हैं। लवक पाये जाते हैं- हरे क्लोरोप्लास्ट, रंगहीन ल्यूकोप्लास्ट, रंगीन क्रोमोप्लास्ट।
अधिकांश जंतु कोशिकाओं में सेण्ट्रोसोम पाये जाते हैं। अधिकांश पौधों की कोशिकाओं में सेण्ट्रोसोम नहीं पाये जाते।
लाइसोसोम पाये जाते हैं। लाइसोसोम नहीं पाये जाते हैं। आवश्यक विकर रिक्तिका में ही भरे रहते हैं।

 

 

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