शैव मतावलम्बी कालिदास गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त II के दरबारी कवि थे। कालिदास द्वारा रचित सात पद्य और नाट्य ग्रंथों की प्रामाणिकता सिद्ध होती है।
महाकाव्य
रघुवंश:
यह 19 सर्गों में विभक्त महाकाव्य है, जिसमें राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक चालीस इक्ष्वाकु वंश के राजाओं का चरित्र चित्रण है।
कुमारसम्भव :
यह 17 सर्गों में बंटा एक महाकाव्य है, जिसमें शिव-पार्वती का प्रणय, विवाह व कार्तिकेय (कुमार) के जन्म की कथा वर्णित है।
खण्डकाव्य :
ऋतुसंहार :
कालिदास की प्रथम काव्य रचना है, जो छः सर्गो ( ऋतु ओं) का एक खंड काव्य है इन सर्गो के नाम है – ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर एवं वसन्त।
मेघदूत :
यह पूर्व मेघ तथा उत्तर मेघ में विभक्त एक खंडकाव्य है, जो वियोग श्रृंगार की उत्कृष्ट रचना है। इसमें उज्जैन के वैभव, महाकाल का वर्णन है।
नाटक :
मालविकाग्निमित्र :
यह पांच अंकों में बंटी, कालिदास की प्रथम नाट्य रचना है, जिसमें शुंग राजा अग्निमित्र और मालविका के प्रणय की कथा वर्णित है।
विक्रमोर्वशीय :- यह कालिदास का द्वितीय नाट्य ग्रंथ है, जिसमें पाँच अंकों में पुरुरवा एवं उर्वशी की प्रणय कथा का वर्णन है।
अभिज्ञान शाकुंतलम :
यह कालिदास की सर्वोत्कृष्ट नाट्य रचना है। इसमें सात अंकों में हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त व कण्व ऋषि की पालिता पुत्री शकुंतला के संयोग व वियोग श्रृंगार का वर्णन है।
क्षेमेन्द्र के ग्रंथ औचित्य विचारचर्या में कालिदास की अन्य रचना कुन्तलेश्वरदौत्य का उल्लेख मिलता है। लेकिन ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं।