झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य

  • जनजा​तीय समाज में लोक नाट्य कला का विकास आरंभ से ही देखने को मिलता है। झारखण्ड की लोक संस्कृति में लोक नाट्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन लोक नाट्यों को किसी मांगलिक अवसरों, त्यौहारों पर मनोरंजन के उद्देश्य से आयोजित किए जाते हैं। इनमें प्रमुख कृष्णलीला, डोमकच, रामायण, कीरतनिया और अन्य पौराणिक काल्पनिक नाट्य हैं।
  • राज्य में प्रचलित प्रमुख लोक नाट्य निम्नलिखित हैं—

डोमकच:

  • यह एक घरेलू एवं निजी लोक नाट्य है।
  • इस लोक नाट्य को मुख्यत: घर—आंगन के परिसर में विशेष अवसरों पर जैसे— बारात जाने के बाद देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • इसमें अभिनय के समय यह ध्यान दिया जाता है कि कोई अल्पायु का बालक एवं बालिका इसे देख—सुन न सके, क्योंकि इस लोक नाट्य में हास—परिहास के साथ ही अश्लील हाव—भाव, प्रसंग तथा संवाद की प्रस्तुति होती है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा ही मुक्तकंठ से सराहे जाते हैं। इसलिए इस लोक नाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है।

सामा—चकेवा:

  • इस लोक नाट्य अभिनय में सामूहिक रूप से गाये जाने वाले गीतों में प्रश्नोत्तर के माध्यम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।
  • हर साल कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक अभिनीत इस लोक नाट्य में पात्र तो मिट्टी द्वारा बनाये हुए होत हैं, लेकिन उनका अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में सामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है।

किरतनिया:

  • इस भक्तिपूर्ण लोक नाट्य में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति गीतों, जिन्हें ‘कीर्तन’ कहा जाता है, के साथ भाव एवं श्रद्धापूर्वक किया जाता है। कीरतनिया का कई वाद्यों की संगत से कीर्तन के रूप में मंचन किया जाता है। ‘जट—जाटिन’ के माध्यम से गृहस्थ जीवन के उतार—चढ़ाव देखे जा सकते हैं।

भाकुली बंका:

  • हर साल सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोक नाट्य में जट—जाटिन द्वारा नृत्य किया जाता है।
  • भकुली बंका नृत्य आधारित नाट्य हैं।
जट—जाटिन:
  • हर साल सावन से प्रारंभ होकर कार्तिक माह की पूर्णिमा अथवा उसके दो दिन पूर्व या बाद केवल अविवाहित महिलाओं द्वारा अभिनीत किया जाता है।
  • इस लोक नाट्य में जट—जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।

विदेशिया:

  • इस लोक नाट्य में लोकप्रिय ‘लौंडा नृत्य’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी, गोंड, नेटुआ, पंवडिया आदि का पुट होता है। नाटक का प्रारंभ मंगलाचरण से होता है।
  • नाटक में स्त्रियों की पात्रता वाली भूमिका को पुरुष कलाकारों द्वारा अभिनीत किया जाता है। इस लोक नाट्य में पात्र अभिनय के साथ—साथ गायन—वादन भी किया जाता है।

संस्थाएं

  • रांची में नाट्य कला के विकास में हस्ताक्षर, रंगायन, वसुंधरा आर्ट, रंग—दर्पण, सार्थक और नाट्यांचल जैसी संस्थाएं सक्रिय हैं।
  • हजारीबाग में सम्राट, गिरिडीह में रंगालय, त्रिमूर्ति और तेतास नाट्य समूह संस्थाएं इन नाट्य कलाकारों को मंच प्रदान कर रही है।

Leave a Reply