निम्नलिखित में से कौन-सा सृजनात्मकता से संबंधित है?

(a) अपसारी चिंतन (b) अभिसारी चिंतन

(c) सांवेगिक चिंतन (d) अहंवादी चिंतन

उत्तर—(a)

अपसारी चिंतन के अंतर्गत व्यक्ति विभिन्न विभिन्नताओं के साथ ही समस्या का हल खोजता है तथा व्यक्ति उन समाधानों की अच्छाई तथा उपयोगिता के संबंध में निर्णय लेता है। अपसारी चिंतन बालक में सृजनात्मकता के गुणों में वृद्धि करता है। जबकि अभिसारी चिंतन के अंतर्गत समस्या समाधान परंपरा एवं प्रचलन के अनुसार ही किया जाता है।

एक औसत बुद्धि वाला बच्चा यदि भाषा को पढ़ने एवं समझने में कठिनाई प्रदर्शित करता है, तो यह संकेत देता है कि बच्चों में……का लक्षण प्रदर्शित कर रहा है।

(a) पठन-अक्षमता (डिस्लैक्सिया)

(b) लेखन-अक्षमता (डिस्ग्राफिया)

(c) गणितीय-अक्षमता (डिस्केल्कुलिया)

(d) गतिसमन्वय-अक्षमता (डिस्प्रेक्सिया)

उत्तर—(a)

कुछ छात्र लिखने-पढ़ने, मौखिक अभिव्यक्ति, शब्दों की वर्तनी करने आदि में कमजोर होते हैं, इस कमजोरी को ही अधिगम अशक्तता के नाम से जाना जाता है। डिस्लैक्सिया का संबंध पठन विकार से है। इस अधिगम अशक्तता में बालक को पढ़ने में कठिनाई होती है जैसे- वह b और d में विभेद नहीं कर पाता। प्रश्न में वर्णित बच्चे में पढ़ने एवं समझने की कठिनाई को डिस्लैक्सिया अथर्गत पठन अक्षमता के अंतर्गत शामिल किया जाएगा।

विकास …… से ……. की ओर बढ़ता है।

(a) सामान्य-विशिष्ट (b) जटिल – कठिन

(c) विशिष्ट-सामान्य (d) साधारण-आसान

उत्तर—(a)

विकास एक जीवनपर्यत चलने वाली प्रक्रिया है। विकासात्मक परिवर्तन प्राय: व्यवस्थित प्रगतिशील तथा नियमित होते हैं। विकास प्राय: सामान्य से विशिष्ट तथा सरल से जटिल की ओर बढ़ता है। विकास बहुआयामी प्रक्रिया है। विकासात्मक परिवर्तन मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों ही हो सकता है।

शैशवकाल की अवधि है –

(a) जन्म से 1 वर्ष तक

(b) जन्म से 2 वर्ष तक

(d) 2 से 3 वर्ष तक

(c) जन्म से 3 वर्ष तक

उत्तर—(b)

जन्म से 2 वर्ष की अवधि शैशवकाल की अवधि है। बालक इस अवस्था में पूर्णतया माता-पिता पर आश्रित होता है। इस अवस्था में बालक के अंदर संवेगात्मक विकास होता है।

पियाजे के अनुसार, 2 से 7 वर्ष के बीच का एक बच्चा संज्ञानात्मक विकास को …… अवस्था में है।

(a) पूर्व-संक्रियात्मक (b) औपचारिक संक्रियात्मक

(c) मूर्त-संक्रियात्मक (d) संवेदी-गतिक

उत्तर—(a)

पियाजे के अनुसार, 2 -7 वर्ष के बीच का एक बच्चा संज्ञानात्मक विकास की पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था में है। इस अवस्था में बालक अपने परिवेश की वस्तुओं को पहचानने एवं उसमें भेद करने लगता है। इस उम्र के बीच ही उसमें भाषा का विकास भी शुरू हो जाता है।


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