- तुर्की आक्रमणों के पश्चात् भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, जिसके अंतर्गत अलग-अलग शासकों ने शासनभार संभाला।
- सर्वप्रथम कुतुबुद्दीन ऐबक का नाम आता है, जिसने ‘ममलूक वंश’ की नींव रखी। आरंभ में इसे ‘दास (गुलाम) वंश’ भी कहा जाता था।
- दास वंश के नाम पर कई इतिहासविदों ने आपत्ति व्यक्त की। इसका अंतर्निहित कारण ‘दास’ और ‘ममलूक’ शब्दों के सटीक निर्धारण की वजह से था।
- दरअसल, ‘ममलूक’ और ‘दास’ में पारिभाषिक तौर पर एक अंतर था। ‘दास’ शब्द का अभिप्राय ‘जन्मजात दास’ माना जाता था जबकि ‘ममलूक’ शब्द का अभिप्राय ‘स्वतंत्र माता-पिता की संतान’ था। अंततः हबीबुल्लाह द्वारा प्रस्तावित ‘ममलूक वंश’ ही सर्वाधिक मान्य हुआ।
कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 से 1210 ई.
- मुहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात् ऐबक को सिंध और मुल्तान छोड़कर मुहम्मद गौरी द्वारा विजित उत्तर भारत का संपूर्ण क्षेत्र -सियालकोट, लाहौर, अजमेर, झाँसी, दिल्ली, मेरठ, कोल ;अलीगढ़द्ध, कन्नौज, बनारस, बिहार तथा लखनौती के क्षेत्र आदि प्राप्त हुआ था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने उत्तराधिकार युद्ध की चुनौतियों का सामना अपनी कुशल वैवाहिक नीति से किया।
- उसने मुहम्मद गौरी के एक अन्य विश्वस्त अधिकारी ताजुद्दीन यलदौज की पुत्री से विवाह किया।
- उसने अपनी बहन का विवाह नासिरुद्दीन कुबाचा से किया, जो सिंध का प्रभावी अधिकारी था।
- उसने अपनी पुत्री का विवाह तुर्की दास अधिकारी इल्तुतमिश से किया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने न तो अपने नाम से सिक्के चलवाए और न ही ख़ुत्बा पढ़वाया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने ‘मलिक’ और ‘सिपहसालार’ की उपाधियों से शासन प्रारंभ किया तथा ‘सुल्तान’ की पदवी धारण नहीं की।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर से शासन का संचालन किया तथा लाहौर ही उसकी राजधानी थी।
- 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से अचानक गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद आरामशाह लगभग एक साल के लिये राजगद्दी पर बैठा।
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कुतुबुद्दीन ऐबक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन
- कुतुबुद्दीन ऐबक एक योग्य सेनापति, अचूक तीरंदाज, साहसी तथा प्रतिभाशाली व्यक्ति था। एक गुलाम की अवस्था से उठकर सुल्तान के पद पर पहुँचना उसकी योग्यता तथा प्रतिभा का ही परिचय था।
- ऐबक ने साम्राज्य विस्तार से अधिक ध्यान राज्य के सुदृढ़ीकरण पर दिया।
- यलदोज एवं कुबाचा के प्रति उसकी नीति राजनीतिक कुशलता का प्रमाण है।
- कुतुबुद्दीन एक उदार शासक था। अतः उसकी उदारता के कारण उसे ‘लाखबख्श’ (लाखों का दान करने वाला) कहा गया।
- सैन्य योग्यता के साथ-साथ, वह साहित्य और कला-प्रेमी भी था।
- उसने दो मस्जिद ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ (महरौली, दिल्ली) और ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’, अजमेर का निर्माण करवाया।
- उसने प्रसिद्ध सूफी संत ‘ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी’ की स्मृति में दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव रखी, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
आरामशाह 1210 ई.
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद सैनिक वर्ग में असंतोष, साधारण जनता में अशांति व उपद्रव रोकने के लिये लाहौर के सरदारों ने कुतुबुद्दीन ऐबक के पुत्र आरामशाह को गद्दी पर बैठाया।
- आरामशाह एक कमजोर एवं अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। अतः दिल्ली के लोगों ने उसे अपना शासक स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
- आरामशाह को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से बदायूँ के इक्ता इल्तुतमिश को एक निमंत्रण-पत्र भेजा गया।
- इल्तुतमिश ने निमंत्रण स्वीकार किया और दिल्ली के निकट जड नामक स्थान पर आरामशाह को परास्त किया। इल्तुतमिश ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार कर लिया।