छायावाद काव्य प्रवृत्तियाँ-
आत्माभिव्यक्ति और सर्वात्मवादी भावना
मानवीय सौन्दर्य के तात्विक एवं व्यावहारिक स्वरूपों का बोध
राष्ट्रबोध की भावना
भारतीय एवं अन्य देशों की दार्शनिक चेतनाओं की सम्बद्धता।
रहस्यवादी भावना
प्रकृति के रमणीय रूपों की रचना
कलात्मक कल्पना
श्रृंगारिकता की भावना
खड़ी बोली का काव्यात्मक और कलात्मक रूप
भारतीय और पाश्चात्य अलंकारों का प्रयोग
नारी के विभिन्न रूप
इस युग में प्रकृति के समस्त रूपों की सम्यक् आराधना की गई है।
मानवीकरण की प्रवृत्ति प्राय: छायावाद की प्रमुख प्रवृत्ति रही है।
रहस्यात्मक कविता छायावाद को लोकोत्तर काव्य की श्रेणी में स्थापित करती है।
कल्पना का अतिशय प्रयोग एवं काव्यकला कमनीयता इसकी प्रमुख विशेषता है।
श्रृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों को समान रूप से प्रस्तुत किया गया है।
युगानुरूप राष्ट्रीय भावना का स्वर मुखर हुआ। भारत की सांस्कृतिक गरिमा और राष्ट्र जागृति की भावना को एक साथ अभिव्यक्ति मिली।
दार्शनिक विचारधारा का इस युग पर गहरा प्रभाव दिखाई देता है। अमूर्त के प्रति यह काव्य समर्पित दिखाई देता है।
आत्म निवेदन, टीस, दु:ख आदि इस काव्य धारा का प्रमुख विषय रहा है।
इस काव्य में उपेक्षित, असमर्थ, असहाय लोगों के प्रति सहानुभूति, संवेदना तथा शोषकों के प्रति घृणा एवं नफरत का भाव व्यक्त हुआ है ।
छायावादी काव्य में बिम्ब विधान भी दर्शनीय है।
प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं।
भावों की गहराई काव्य को दुरूह बनाती प्रतीत होती है।
प्रमुख छायावादी कवि और उनकी प्रमुख रचनाएँ
जयशंकर प्रसाद-
कामायनी, लहर, प्रेम लहर, वन मिलन, चित्राधार, आँसू आदि।
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-
अनामिका, कुकुरमुत्ता, राम की शक्ति पूजा, भिक्षुक आदि।
रामकुमार वर्मा-
चित्ररेखा, आकाश गंगा, एकलव्य, चंद्रकिरण आदि।
महादेवी वर्मा-
दीपशिखा, यामा, नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत आदि।
सुमित्रानंदन पंत –
वीणा, युगान्त, उत्तरा, पतझड़, चिदम्बरा आदि।
सुभद्राकुमारी चौहान-
त्रिधारा, झाँसी की रानी, मुकुल आदि।
हरिवंशराय बच्चन –
मधुशाला, मधुबाला, सतरंगिनी, मधुकलश आदि।
माखनलाल चतुर्वेदी-
हिम किरीटिनी, हिम तरंगिनी, धूम्रवलय, बीजुरी काजल औज रही, वेणु लौं गूँजे धारा, समर्पण, युग चरण, माता।
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’-
अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, विषपायी जनम के, विनोबा स्तवन, कुमकुम, हम, ऊर्मिला।
जगन्नाथ प्रसाद – जीवन संगीत।
रामधारी सिंह “दिनकर”-
कुरुक्षेत्र, रेणुका, हुंकार, रसवंती, नीलाकुसुम, रश्मिरथी, द्वंद्वगीत, इतिहास के आँसू, उर्वशी और लोकायतन।
गुरु भक्तसिंह भक्त-
अवंतिका, रूप-अरूप, विक्रमादित्य, नूरजहाँ, क्षिप्रा, मेघगीत।
नरेन्द्र शर्मा –
प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, प्रभात फेरी, द्रौपदी, उत्तरजय।
ठाकुर प्रसाद सिंह- पार्वती।
रामदरश मिश्र-
कंधे पर सूरज, बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई हैं धूप, दिन एक नदी बन गया, बाजार को निकले हैं लोग।
आरसी प्रसाद सिंह-
कलापि, प्रेमगीत, जीवन और यौवन, संचयिका, पांचजन्य।
देवराज – आहत आत्मा है, इला और अमिताभ।