चक्रवात और प्रतिचक्रवात

  • चक्रवात और प्रतिचक्रवात दो विशिष्ट प्रकार के वायुदाब और पवन तंत्र हैं। इन्हें परिवर्तनशील पवनें भी कहते हैं।

चक्रवात:-

  • निम्न वायुदाब के तंत्र होते हैं जिनके चारों ओर उच्च वायुदाब होता है।
  • चक्रवात में पवनों का प्रवाह चक्रीय रूप में होता है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध में चक्रवातों में पवनों की दिशा घड़ी की सुइयों के अनुरूप दिशा में होती है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणी गोलार्द्ध के विपरीत पवनों का प्रवाह घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरी दिशा में होती है।
  • चक्रवातों की उत्पत्ति शीतोष्ण व उष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में होती है। अतः इन्हें शीतोष्ण कटिबंधीय व उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप् में वर्गीकृत किया जाता है।
  • शीतोष्ण चक्रवात तापमान और आर्द्रता में भिन्नता रखने वाली वायुराशियों के मिलने से विकसित होते हैं। इन्हें तरंग चक्रवात भी कहा जाता है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का विकास इन क्षेत्रों में वायु के स्थानीय आधार पर गर्म होने से निम्न वायुदाब क्षेत्रों की उत्पत्ति का परिणाम होता है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विकास के लिए उष्णकटिबंधीय समुद्र और महासागर सबसे अनुकूल क्षेत्र होते हैं। इनके ऊर्जा का मुख्य स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है। इसलिए स्थलखण्डों पर जोन ये चक्रवात क्षीण हो जाते हैं तथा समाप्त हो जाते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात अत्यंत प्रबल होने के कारण जान और माल की काफी हानि करते हैं। ऐसा मुख्यतया तटवर्ती क्षेत्रों में होता है। इन्हें हिन्द महासागर में चक्रवात, वेस्टइंडीज में हरिकेन, चीन सागर में टाइफून और उत्तर पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में विली-विली के नाम से जानाजाता है।
  • इन्हें विक्षोभ अथवा अवदाबभी कहा जाता है।
  • वायु के अभिसरण और पवनों के चक्रीय प्रवाह के परिणामस्वरूप चक्रवात के केन्द्रीय भाग से वायु ऊपर उठती है और भारी वर्षा करती है।
  • पवनों का वेग बहुत अधिक होता है। चक्रवात में एक बेलनाकार आकार में ऊपर उठती हुईं वायु शीतल होकर क्षैतिज दिशा में फैलती है तथा इसमें से कुछ वायु चक्रवात के केन्द्रीय भाग में नीचे उतरती है। वायु के इस भाग में नीचे उतरने से इस भाग में शांत परिस्थिति रहती है।
  • चक्रवात के इस केन्द्रीय भाग को चक्रवात की आंख (चक्षु) कहते हैं। यह साफ मौसम का क्षेत्र होता है तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की एक प्रमुख विशेषता है।
  • चक्रवातों से संबंधित एक और विक्षोभ टॉरनेडो हैं। टॉरनेडो छोटे आकार का उष्णकटिबंधीय चक्रवात होता है। ये विक्षोभ अति प्रचंड होते हैं। इनका खतरा मुख्यतया संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में मिसीसिपी की घाटी में होता है। यहां इन्हें ट्विस्टरकहा जाता है।
  • टॉरनेडोकी उत्पत्ति ऑस्ट्रेलिया और कभी-कभी मध्य अक्षांशीय प्रदेशों में भी होती है। यह चक्रवातों से भिन्न माने जाते हैं क्योंकि इनका विकास स्थल पर होता है। यदि कोई टॉरनेडो अपने विकास के बाद समुद्र पर पहुंच जाता है तो इसकी शक्ति बढ़ जाती है। यह कीप के आकार वाले नीचे मेघ बनाते हैं जिनकी उत्पत्ति जल के तल के निकट होती है। इस स्थिति में पवनों के तेजी से घूमने से समुद्र का पानी भी ऊपर उठने लगता है। इस परिस्थिति को जल स्तम्भ कहते हैं।
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विकास मध्य अक्षांशों में होता है। वायुराशियों की अभिसारी प्रवाह प्रणाली और उनके तापमान की विभिन्नता जैसी विशेषताएं इन चक्रवातों की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए यहां दो प्रकार के वाताग्रों, उष्ण वाताग्र और शीत वाताग्र की उत्पत्ति होती है।
  • ध्रुवीय वाताग्र क्षेत्र इनकी उत्पत्ति का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इन चक्रवातों का आकार अंडाकार होता है तथा यह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तुलना में अधिक बड़े होते हैं। इन चक्रवातों के विकास की प्रक्रिया को सायक्लोनेसिस Cyclonesisकहा जाता है।
  • ये चक्रवात महाद्वीपों पर विकसित होते हैं तथा शीतकाल में ये अधिक प्रबल होते हैं क्योंकि इस समय ध्रुवीय वायुराशियों और उपोष्ण वायुराशियों के तापमान में अधिकतम अंतर होता है।
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की ऊर्जा का मुख्य स्रोत उनके विकास में सम्मिलित वायुराशियों के तापमान का अंतर होता है। साधारणतया ये चक्रवात पछुआ पवनों की पेटी में विकसित होते हैं। इन क्षेत्रों की प्रचलित पवनों के प्रभाव से चक्रवात पूर्व की ओर स्थानांतरित होते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विपरीत शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में चक्षु नहीं होते हैं। इनके प्रभाव से तापमान और वायुदाब में परिवर्तन होता है। जिस क्षेत्र से ये चक्रवात गुजरते हैं वहां बादल छाए रहते हैं और वर्षा होती है।

प्रतिचक्रवातः-

  • चक्रवातों के विपरीत प्रतिचक्रवात, उच्च वायुदाब के क्षेत्र होते हैं।
  • इन उच्च वायुदाब केन्द्रों से वायु के प्रवाह बाहर की ओर होता है।
  • वायु का प्रवाह उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में होता है।
  • ध्रुवीय क्षेत्रों की उच्च वायुदाब पेटियां और उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र इनकी उत्पत्ति के प्रमुख क्षेत्र हैं।
  • चक्रवातों की अपेक्षा प्रतिचक्रवातों का मौसम सम्बन्धी परिस्थितियों पर कम बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रतिचक्रवात वायु के नीचे उतरने के क्षेत्र होते हैं।
  • नीचे उतरती वायु धरातल पर उच्च वायुदाब बनाए रखती है तथा बाहर की ओर फैलती है। कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में प्रतिचक्रवातों में कपासी तथा कपासी वर्षा मेघों की उत्पत्ति होने से यह धारणा गलत सिद्ध होती है।
  • प्रतिचक्रवात के केन्द्र की ओर वायुदाब प्रवणता कमजोर होती है और पवनें हल्की तथा परिवर्तनशील होती है।
  • प्रतिचक्रवातों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।
  • उच्च अक्षांशीय शीत केंद्र प्रतिचक्रवात और निम्न अक्षांशीय उष्ण केंद्र प्रतिचक्रवात। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के बीच के क्षेत्रों में पाए जाने वाली धीमी गति से चलने वाले गतिशील प्रतिचक्रवात एक तीसरे वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
  • प्रतिचक्रवात शीतकाल में महाद्वीपों के आंतरिक भागों में विकसित होते हैं। ध्रुवीय और उपध्रुवीय क्षेत्र दक्षिण की ओर चलने वाले प्रति चक्रवातों के उत्पत्ति क्षेत्र होते हैं।
  • प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति के चार मुख्य क्षेत्र हैं।
  • उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी, ध्रुवीय महाद्वीपीय उच्च वायुदाब क्षेत्र, चक्रवातों के मध्य के क्षेत्र और ध्रुवीय प्रकोप उच्च(Polar outbreak high) क्षेत्र।
  • चक्रवातों की अपेक्षा इनकी वायुदाब प्रणाली अधिक स्थायी होती है। वायु के अवरोहण और शांत परिस्थितियों के कारण प्रतिचक्रवातीय क्षेत्र वायुराशियों के लिए उपयुक्त उत्पत्ति क्षेत्र होते हैं। कई बार ये वायुराशियों के धंसाव के कारण वायु प्रदूषण की समस्या को भी जन्म देते हैं।
  • प्रतिचक्रवात कभी-कभी शीत लहर की परिस्थितियों को भी जन्म देते हैं। जिन प्रतिचक्रवातों का आकार बड़ा होता है वे कई बार चक्रवातों के पूर्व की ओर स्थानान्तरण में भी अवरोध उपस्थित करते हैं।

 

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