भूकम्पीय तरंग
भूकम्पीय तरंगे तीन प्रकार की होती है-
- P तरंगे
- S तरंगे
- L तरंगे
P तरंगे
- यह तरंगे धरातल पर सबसे पहले पहुंचती है जिस कारण इन्हें प्राथमिक तरंगे कहा जाता है।
- औसत गति 8 किमी/सैकण्ड
- इन तरंगों में कणों का संचरण तरंग की दिशा में ही होता है। इस कारण इन्हें अनुदैर्ध्य तरंगे longitudinal wavs कहा जाता है।
- ध्वनि तरंगों के समान होता है। अपने दबाव देने वाले स्वभाव के कारण इन्हें संपीडनात्मक तरंगे कहा जाता है।
- यह तीनों माध्यमों (ठोस, द्रव, गैस) से होकर गुजर सकती है।
S तरंगे
- यह धरातल पर पी तरंगों के बाद प्रकट होती है। इस कारण इन्हें ‘द्वितीयक तरंगें‘ कहा जाता है।
- इन तरंगों में कणों का संचरण तरंग दिशा के लम्बवत होता है
- इस कारण इन्हें अनुप्रस्थ तरंगे कहा जाता है।
- औसत गति 4 किमी/ सैकण्ड होती है
- यह तरल माध्यम से होकर नहीं गुजर सकती है।
- एस तरंगों की गति पी तरंगों की तुलना में 1.7 गुना कम होती है।
L तरंगे
- यह धरातल पर सबसे अन्त में प्रकट होती है
- औसत गति 3 किमी /सैकण्ड होती है
- यद्यपि इनकी गति सबसे कम होती है परन्तु सर्वाधिक विनाशकारी तरंगे होती है।
- यह आड़े-तिरछे रूप में गति करती है।
- यह केवल धरातल के ऊपरी भाग में गमन करती है। जिस कारण इन्हें ‘धरातलीय तरंगे‘ कहा जाता है।
भूकंप का मापन
रिएक्टर स्केल –
- अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रांसिस रिचर ने 1935 ई. में इस पैमाने की खोज की थी, इस कारण इसे रिचर पैमाना भी कहते हैं। इस स्केल पर 0 से 9 तक इकाई होती है। रिचर स्केल में 6 से अधिक परिमाण वाले भूकंप काफी विनाशकारी होते है।
मारकेली स्केल –
- इटली के वैज्ञानिक मारकेली ने 1931 में इस स्केल का निर्माण किया थ। जिस पर कुल 12 इकाइयाँ पाई जाती है।