भोजन का पाचन

 

  • मानव में पाचन की क्रिया मुख से लेकर छोटी आंत तक होती है।
आहारनाल के मुख्य भाग हैं –
  • मुख गुहिका, ग्रास नली, आमाशय तथा आंत।
  • मानव के मुख में तीन जोड़ी लार ग्रंथियां होती हैं जिनसे पाचक एन्जाइम्स का स्रावण होता है, जैसे – एमाइलेज (टायलिन)
  • जीभ की सतह पर छोटे-छोटे उभार पाये जाते हैं जिन्हें स्वादांकुर कहते हैं। जीभ के अग्रभाग से मीठे स्वाद का, पिछले भाग से कड़वे स्वाद का और बगल से खट्टे स्वाद का आभास होता है।
  • लार वस्तुतः एन्जाइम होते हैं जो प्रकृति में अम्लीय होते हैं जिसका Ph मान 6.8 होता है।
  • मानव में प्रतिदिन लगभग 1.5 लीटर लार निकलता है।
  • जहां टायलिन अथवा एमाइलेज माण्ड को माल्टोस में परिवर्तित करता है, वहीं माल्टेस नामक एंजाइम माल्टोस शर्करा को ग्लूकोज में बदलने का कार्य करता है।
  • लार मिला चिकना भोजन मुखगुहा से ग्रासनली में पहुंचता है। यहां पर किसी प्रकार की पाचन क्रिया नहीं होती है।
  • ग्रासनली फैरिंग्स से लेकर उदरगुहा तक फैली होती है।
  • ग्रासनली लगभग 25 सेमी. लम्बीी एक संकरी नली होती है। जो भोजन को पाचन के लिए मुखगुहा से आमाशय में पहुंचाती है।
  • आमाशय, उदरगुहा में बांयी ओर स्थित होता है। इसकी रचना द्विपालिक थैली जैसी होती है।
  • आमाशय की लम्बाई 30 सेमी. होती है, जबकि चौड़ाई भोजन की मात्रा के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है।
  • आमाशय के पाइलोरिक (जठर) ग्रंथियों से जठर रस निकलना प्रारंभ हो जाता है तथा ऑक्सिन्टिक कोशिकाओं से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL) निकलता है।
  • जठर रस में 90 प्रतिशत जल, 5 प्रतिशत हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पेप्सिन, रेनिन व जठर लाइपेज नामक एंजाइम पाये जाते हैं।
  • पेप्सिन भोजन से प्रोटीन को पेप्टोन्स में तथा रेनिन, केसीन (दूध) को कैल्शियम पैराकैसीनेट में परिवर्तित करता है।
  • जठर लाइपेन चर्बी पर क्रिया करके इसे छोटे-छोटे कणों में तोड़ने का कार्य करता है।
  • भोजन आमाशय में तब तक रहता है जब तक कायम में नहीं बदल जाता है।
  • हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय बनाकर टायलिन के प्रभाव को समाप्त कर देता है। इसके अतिरिक्त, यह एंजाइमों की क्रिया को तीव्र करता है तथा भोजन में स्थित जीवाणुओ को मार डालता है।
  • आमाशय से कायम छोटी आंत के गृहणी (पक्वाशय) भाग में धीरे-धीरे पहुंचता है। यहां यकृत से पित्त रस तथा अग्नाशय से अग्नाशय रस आ जाते हैं।
  • छोटी आंत की ग्रंथियों से आंत्ररस भी निकलता है। अग्नाशय रस सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है और यह क्षारीय होता है।
एंजाइम की कायम पर निम्न प्रतिक्रिया होती है –
  • ट्रिप्सिन – यह पेप्टोन तथा बाकी बची प्रोटीन को अमीनो अम्ल में बदल देता है।
  • ऐमिलॉप्सिन – यह कायम की बाकी मांड (स्टार्च) तथा ग्लाइकोजन को घुलनशील शर्करा में परिवर्तित कर देता है।
  • स्टिऐप्सिन – यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसि डमें परिवर्तित कर देता है।
    पित्त में कोई एंजाइम नहीं पाया जाता। यह क्षारीय होता है। यह कायम की चर्बी को जल के साथ मिलाकर इमल्शन बनाने में सहयोग देता है।
  • स्टिऐप्सिन इस इमल्सीफाइड वसा पर ही कार्य करता है।
  • पक्वाशय के बाद कायम छोटी आंत में आता है। छोटी आंत की दीवारों पर आंत्र रसांकुर होते हैं जो अवशोषक सतह में वृद्धि करते हैं।
  • छोटी आंत की दीवारों से आंत्रिक रस निकलता है। यह प्रकृति में क्षारीय होता है।
  • एक स्वस्थ मनुष्य में प्रतिदिन लगभग 2 लीटर आंत्रिक रस निकलता है।
  • आंत्रिक रस में इरेप्सिन, माल्टेस, सुक्रेस, लैक्टेस तथा लाइपेज नामक एंजाइम उपस्थित रहते हैं।
  • इरेप्सिन प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में,
    माल्टेस माल्टोस को ग्लूकोज में,
    सुक्रेज सुक्रोज को ग्लूकोज एवं फ्रुक्टोज में,
    लैक्टोज यह लैक्टोज को ग्लूकोज तथा गैलैक्टोज में तथा
    लाइपेज वसा को ग्लिसरॉल एवं फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।
अवशोषण –
  • कायम के अवशोषण की मुख्य क्रिया छोटी आंत में ही होती है।
  • छोटी आंत में स्थित रसांकुर (Villi) की कोशिकाएं अवशोषिम करने योग्य तरल कायम को अवशोषित करने के पश्चात् रुधिर तथा लसिका में पहुंचा देती है।
  • इस प्रकार पचे हुए तरल कायम की ग्लूकोज तथा अमीनों रुधिर कोशिकाओं में अवशोषित होकर रुधिर मिश्रित हो जाते हैं, लेकिन वसा अम्ल तथा ग्लिसरीन लसिका में अवशोषित होेते हैं। इसके पश्चात् ये पदार्थ रुधिर संचरण द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचत जाते हैं।
  • अवशोषित भोजन का शरीर में उपयोग में लाया जाना स्वांगीकरण कहलाता है।
  • बिना पचा कायम छोटी आंत से बड़ी आंत में चला जाता है। बड़ी आंत में कायम से पानी को शोषित कर लेती है। शेष कायम मल के रूप में मलाशय में एकत्रित होकर गुदा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

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