साहित्यिक स्रोतः-
वैदिक साहित्य –
- इसके अन्तर्गत वेद तथा उससे सम्बन्धित ग्रंथ, पुराण, महाकाव्य, स्मृति आदि है।
- सबसे प्राचीन ग्रंथ ‘वेद’ है जिसका अर्थ ‘ज्ञान’ है।
- श्रवण परम्परा में सुरक्षित होने के कारण इसे ‘श्रुति’ भी कहा जाता है।
- वेदव्यास ने वेदों को संकलित कर दिया।
- वेदों की संख्या चार है – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
ऋग्वेदः-
- इसकी रचना 1500-1000 ई.पू. मानी जाती है। यह छंदों तथा चरणों से युक्त मंत्र की रचना है।
- ऋग्वेद मंत्रों का एक संकलन (संहिता) है, जिन्हें यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिए ‘होतृ’ ऋषियों द्वारा उच्चारित किया जाता था।
- ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में सम्प्रति ‘शाकल संहिता’ ही उपलब्ध है।
- संहिता का अर्थ संग्रह या संकलन है। सम्पूर्ण ऋग्वेद संहिता में दस मंडल तथा 1028 सूक्त है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र है।
- ऋग्वेद की पांच शाखायें है – शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, शंखायन तथा मांडूक्य।
- ऋग्वेद का दो से सातवां मंडल प्रामाणिक और शेष को प्रक्षिप्त माना जाता है।
- बाद में जोड़े गये 10वें मंडल में पहली बार शूद्रों का उल्लेख मिलता है, जिसे ‘पुरुष सूक्त’ के नाम से जाना जाता है। देवता सोम का उल्लेख 9वें मंडल में है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख भी ऋग्वेद में ही मिलता है।
- ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ – ऐतरेय और कौषीतकी है।
यजुर्वेद:-
- यजुर्वेद में ‘यजुष’ का अर्थ है – यज्ञ
- यजुर्वेद संहिता में यज्ञों को सम्पन्न कराने में सहायक मंत्रों का संग्रह है जिसका उच्चारण ‘अध्वर्यु’ नामक पुरोहित द्वारा किया जाात था।
- कर्मकाण्ड प्रधान यजुर्वेद में यज्ञ करने की विधियों का वर्णन मिलता है।
- यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद।
- कृष्ण यजुर्वेद में छन्द बद्ध मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्य मिलते हैं। इसकी मुख्य शाखायें हैं – तैत्तिरीय, काठक, मैत्रायणी तथा कपिष्ठल।
- शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्र है। इसकी मुख्य शाखायें है – माध्यन्दिन तथा काण्व।
- इसकी संहिताओं को ‘वाजसनेय’ भी कहा गया है, क्योंकि वाजसेनी के पुत्र याज्ञवल्क्य इसके प्रथम द्रष्टा थे। इसमें कुल 40 अध्याय हैं।
- यजुर्वेद के ब्राह्मण गंथ हैं – तैत्तिरीय और शतपथ ब्राह्मण।
सामवेद:-
- वेदों में सामवेद का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- सामवेद का रचनाकाल – 1000-500 ई.पू. में।
- ‘साम’ का अर्थ संगीत या गान होता है। इसमें यज्ञों को गाने वाला ‘उद्गाता’ कहलाता था।
- सामवेद के दो मुख्य भाग है – आर्चिक एवं गान।
- सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेद व्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
- सामवेद की प्रमुख शाखायें है – कौथुमीय, जैमिनीय तथा राणायनीय।
- सामवेद में कुल 1549 ऋचायें हैं, जिनमें से मात्र 78 ही नयी है, शेष ऋग्वेद से ली गयी है।
- सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जा सकता है।
- सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं – पंचविश, तांड्य,षड्विश, अद्भुत और जैमिनी।
अथर्ववेदः-
- पहले की तीनों संहितायें (वेद) जहां विषयों का प्रतिपादन करती हैं, वहीं अथर्ववेद संहिता लौकिक फल प्रदान करने वाली है।
- अथर्वा नामक ऋषि इसके प्रथम द्रष्टा थे, अतः उन्हीं के नाम पर इसे ‘अथर्ववेद’ कहा गया।
- इसके दूसरे द्रष्टा अंगिरस ऋषि के नाम पर इसे अथर्वांगिरस वेद भी कहा जाता है।
- अथर्ववेद में उस समय के समाज का चित्र मिलता है, जब आर्यों ने अनार्यों के अनेक धार्मिक विश्वासों को अपना लिया था।
- अथर्ववेद की दो शाखायें – पिप्पलाद एवं शौनक। इस संहिता में कुल 20 कांड, 731 सूक्त तथा 5987 मंत्रों का संग्रह है।
- अथर्ववेद की कुछ ऋचायें यज्ञ सम्बन्धी है। ब्रह्म विद्याा विषयक होने के कारण इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।
लेकिन इसके अधिकांश मंत्र लौकिक जीवन से ही सम्बन्धित हैं। - रोग निवारण, मंत्र-तंत्र, जादू-टोना, शाप, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, प्रायश्चित, औषधि अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राजकर्म इत्यादि का वर्णन
- अथर्ववेद के ब्राह्मण ग्रंथ – गोपथ ब्राह्मण है।
अन्य प्रमुख तथ्य:
- ब्राह्मण ग्रंथों की रचना यज्ञादि विधानों के प्रतिपादन तथा उनकी क्रिया को समझाने के उद्देश्य से की गयी थी। चूंकि ‘ब्रह्म’ का शब्दार्थ ‘यज्ञ’ होता है, अतः यज्ञीय विषयों के प्रतिपादक ग्रंथ ‘ब्राह्मण’ कहे गये।
- आरण्यक ग्रंथों की रचना अरण्यों अर्थात् वनों में पढ़ाये जाने के निमित्त होने के कारण ही इन्हें ‘आरण्यक’ कहा गया।
- इनमें ज्ञान एवं चिंतन को प्रधानता दी गयी। इन दार्शनिक रचनाओं से ही कालान्तर में उपनिषदों का विकास हुआ।
- प्रमुख आरण्यक ग्रंथ हैं- ऐतरेय, शांखायन, तैत्तिरीय, वृहदारण्यक, छान्दोग्य, जैमिनी, मैत्रायणी, तलवकार तथा माध्यन्दिन।
- उपनिषदों को ‘वेदान्त’ भी कहा जाता है। उपनिषद मुख्यतः ज्ञानमार्गी रचनायें हैं। इनका मुख्य विषयक ब्रह्म विद्या का प्रतिपादन है।
- उपनिषद का अर्थ है – उप यानि समीप, नि का अर्थ निष्ठापूर्वक, सद् यानी बैठना अर्थात् रहस्य/ज्ञान के लिए गुरु के समीप निष्ठापूर्वक बैठना।
- ‘मुक्तिकोपनिषद में 108 उपनिषदों का उल्लेख मिलता है।
- 12 उपनिषद – ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, वृहदारण्यक, श्वेताश्वतर और कौषीतकी।