सती प्रथा
- राजा राममोहन राय के प्रयास से लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1829 के 17वें नियम द्वारा विधवाओं को जिंदा जलाना अपराध घोषित कर दिया। पहले यह नियम बंगाल प्रेसीडेंसी में लागू हुआ, परंतु 1830 में इसे बंबई और मद्रास में भी लागू कर दिया गया।
बाल हत्या
- यह प्रथा विशेषत: बंगालियों और राजपूतों में प्रचलित थी। लॉर्ड हार्डिंग ने 1795 के बंगाल नियम 21 एवं 1804 के नियम 3 द्वारा बाल हत्या को साधारण हत्या घोषित किया।
विधवा पुनर्विवाह
- कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के आचार्य ईश्वरचंद विद्यासागर ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि वेदों में विधवा विवाह को मान्यता दी गई है। उनके प्रयासों के कारण तत्कालीन गवर्नर जनरल डलहौजी ने 1856 में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम द्वारा विधवा विवाह को मान्यता दे दी।
- इस क्षेत्र में प्रो. डी.के. कर्वे एवं वीरेसलिंगम् पण्टुलू के योगदान उल्लेखनीय है।
- कर्वे ने पूना में 1899 में एक ‘विधवा आश्रम’ स्थापित किया।
बाल विवाह
- केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से 1872 में ‘सिविल मैरेज एक्ट’ पारित हुआ, जिसमें 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं तथा 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों के विवाह वर्जित कर दिए गए एवं बहु पत्नी प्रथा समाप्त कर दी गयी।
- 1891 ई. में बी.एम. मालाबारी के प्रयासों से ‘एज ऑफ कंसेंट एक्ट’ पारित हुआ, जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 1930 ई. में ‘शारदा अधिनियम’ द्वारा विवाह के लिए कन्या की न्यूनतम आयु 14 वर्ष और युवकों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निश्चित की गयी।
स्त्री शिक्षा
- सर्वप्रथम ईसाई धर्म प्रचारकों ने इस क्षेत्र में कार्य करते हुए 1819 में स्त्री शिक्षा के लिए कलकत्ता में एक ‘तरुण स्त्री सभा’ की स्थापना की। जे.डी. बटन ने 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की।
- 1854 ई. में के. चार्ल्स वुड पत्र में स्त्री शिक्षा की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया।
- 1926 में ‘अखिल भारतीय महिला संघ’ की स्थापना की गयी।
दास प्रथा
- भारतीय समाज में दास प्रथा प्राचीन काल में प्रचलित रही है। इंग्लैंड में 1833 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- भारत में 1833 के चार्टर अधिनियम में एक धारा जोड़कर दासता को शीघ्रातिशीघ्र समाप्त करने की बात की कही गयी। 1843 में समस्त प्रकार की दासता को भारत में अवैध घोषित कर दिया गया।