19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय भावना के विकास के परिणामस्वरूप राजनीतिक आंदोलन का सूत्रपात हुआ। भारतीयों ने राजनीतिक आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए एक लंबा संघर्ष किया। अंग्रेजी शासन काल में भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना के उदय के निम्न कारण थे –

शोषणकारी आर्थिक नीति

आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद का उदय विदेशी प्रभुत्व को चुनौती देने के रूप में हुआ। अंग्रेजी शोषणकारी आर्थिक नीतियों से भारतीय कृषि, परंपरागत उद्योग एवं हस्तशिल्प नष्ट होने लगे। भारतीय समाज के आर्थिक ढांचे में परिवर्तन आने लगा। सर्वप्रथम यह परिवर्तन भूमि एवं कृषि व्यवस्था में आया।

गांवों की आत्मनिर्भरता को समाप्त किया गया। भूमि कर या लगान की राशि अधिक थी। कृषि का वाणिज्यीकरण किया गया। अब किसानों पर विशेष प्रकार की फसलें रुई, जूट आदि उत्पादित करने के लिए दबाव डाला जाने लगा। जंगल कानून अधिकार पारित कर चारागाहों एवं जंगल की भूमि के उपयोग करने के अधिकार छीन लिए गए।

ब्रिटेन के व्यापारियों के हित में भारतीय उद्योग धंधों को नष्ट किया जाने लगा। ब्रिटिश नीति के परिणामस्वरूप सबसे पहले भारत का वस्त्र उद्योग नष्ट हुआ। ब्रिटेन ने अपने उद्योगों के लिए भारत को कच्चे माल उत्पादक देश के रूप में परिवर्तित किया। अंग्रेजों ने ब्रिटेन के कारखानों में बनी वस्तुओं की खपत के लिए भारत का एक मंडी के रूप में उपयोग किया। भारतीय हस्तकार एवं शिल्पी बर्बाद होने लगे। ब्रिटेन के पूंजीपतियों ने चाय बागान, कोयला खानों, रेलवे, बैकों आदि में अपनी पूँजी लगाई। स्वदेशी उद्योगों के पतन से भारत की गरीबी में वृद्धि हुई।

अंग्रेजी शासन में भारतीय समाज में नए वर्ग का उदय हुआ। अंग्रेजों की शोषण नीति से इस वर्ग के आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक हितों का एकीकरण हुआ। मजदूर, पूँजीपति, व्यापारी, बुद्धिजीवी मध्यम वर्ग आदि में राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई।

प्रशासनिक एकीकरण 

अंग्रेजी सरकार ने अपने हितों के लिए एक समान कानून एवं एक प्रकार की न्याय व्यवस्था स्थापित की। एकीकृत प्रशासनिक व्यवस्था से भारतीय लोगों में पारस्परिक संपर्क बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ।

यातायात एवं संचार के साधनों का विकास 

रेलवे, मोटर और आवागमन के अन्य आधुनिक साधनों ने सामाजिक स्तर पर भारतीयों को एक सूत्र में बाँधने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आवागमन के साधन अंग्रेजी साम्राज्य की सुरक्षा के माध्यम थे किन्तु इसने भारतीयों को राजनीतिक आंदोलन के लिए संगठित करने का कार्य किया। तार, डाक आदि संचार के साधनों ने विचार के आदान-प्रदान एवं राजनीतिक आंदोलनों के कार्यक्रम निश्चित करने में सहायता प्रदान की।

प्रेस एवं साहित्य की भूमिका 

प्रेस ने राष्ट्रीय चेतना के उदय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसने लोगों को राजनीतिक शिक्षा प्रदान दी। आर्थिक एवं राजनीतिक विचारों का प्रचार किया।

ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी नीतियों एवं कार्यवाहियों की आलोचना की। अंग्रेजों के दुर्व्यवहार, भारतीयों के साथ जातीय भेदभाव आदि के समाचार मुख्य रूप से समाचार पत्रों में छपने लगे। समाचार पत्रों के माध्यम से जनता के मध्य जनतंत्र, प्रतिनिधि सरकार, स्वाधीनता आदि विचारों का प्रचार हुआ। संवाद कौमुदी, सोमप्रकाश, हिन्दू पेट्रियट, अमृत बाजार पत्रिका, बंगाली, हिंदू आदि राष्ट्रवादी विचारों का प्रसार करने वाले समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ।

देशभक्तिपूर्ण साहित्य ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में प्रमुख भूमिका निभाई। आधुनिक हिंदी के पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1876 में ‘भारत दुर्दशा’ नामक नाटक में अंग्रेजी शासन में भारत की दुर्दशा का दर्शाया। उर्दू में अल्ताफ हुसैन हाली, बंगला में बंकिमचंद्र चटर्जी, मराठी में विष्णु शास्त्री चिपलुणकर आदि ऐसे राष्ट्रवादी साहित्यकार हुए जिनकी रचनाओं ने राष्ट्रवादी भावना को जागृत किया।

सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन 

राजा राममोहन राय के ब्रह्म समाज, दयानंद सरस्वती के आर्य समाज एवं स्वामी विवेकानंद के रामकृष्ण मिशन ने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों को समाप्त कर सामाजिक रूप से भारतीयों को एक करने का प्रयास किया। भारतीय संस्कृति के गौरव को उजागर कर आत्मसम्मान की भावना का विकास किया। इन सुधार आंदोलनों ने भारतीयों में राष्ट्रवादी भावना उत्पन्न की।

जातीय भेदभाव 

ब्रिटिश सरकार एवं अंग्रेजों की जातीय भेद की नीति के कारण भारतीयों के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा की भावना भर गयी। यह अधिकांश देखने में आता था कि रेल के एक ही डिब्बे में अंग्रेज भारतीयों को अपने साथ यात्रा करने की अनुमति नहीं देते थे। भारतीय यूरोपीय लोगों के क्लब में नहीं जा सकते थे।

आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा 

पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने यूरोपीय राष्ट्रों के समसामयिक राष्ट्रवादी आंदोलनों का अध्ययन किया। वे मैजिनी, गैरीबाल्डी जैसे नेताओं के कार्यों से प्रभावित हुए। बर्क, मिल आदि के विचारों से परिचित हुए और एक मजबूत एवं एकताबद्ध भारत को बनाने का प्रयास करने लगे।

लार्ड लिटन की नीति 

गवर्नर जनरल लार्ड लिटन के कार्यों ने भारतीयों में असंतोष की भावना भर दी। इसने 1877 ई. में भयंकर अकाल के समय भव्य ‘दिल्ली दरबार’ का आयोजन किया, जिसमें ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। 1878 ई. के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट द्वारा भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाया गया। 1878 ई. में शस्त्र एक्ट द्वारा भारतीयों के शस्त्र रखने पर प्रतिबंध लगाया गया।

इल्बर्ट बिल विवाद 

लार्ड रिपन के समय 1883 ई. में उसकी परिषद के विधि सदस्य पी.सी. इल्बर्ट ने एक विधेयक प्रस्तुत किया, जिसे इल्बर्ट बिल कहा गया। इस प्रस्ताव में भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियनों के मुकदमों का निर्णय का अधिकार दिए जाने का प्रावधान था किंतु यूरोपियनों के विरोध के कारण यह बिल पारित नहीं हो पाया।

विभिन्न संस्थाओं की स्थापना

ईस्ट इंडिया एसोसिएशन, पूना सार्वजनिक सभा, इंडियन एसोसिएशन, मद्रास महाजन सभा, बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन, इंडियन नेशनल कांग्रेस आदि ऐसी संस्थाओं की स्थापना हुई, जिसने राजनीतिक चेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।