भारत में धर्मसुधार आंदोलन

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

  • बंगाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक और शिक्षाविद्
  • एक आदर्श अध्यापक जिन्होंने बंगाल में समाज सुधार और बालिकाओं की शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।
  • वे जाति प्रथा के विरोधी एवं स्त्रियों की दशा में सुधार के पक्षधर थे।
  • उन्होंने हिन्दू विधवाओं की दीन—हीन दशा के खिलाफ आंदोलन चलाया और विधवा पुनर्विवाह के लिए प्रयास किए।
  • 1856 ई. में विधवा पुनर्विवाह कानून पारित हुआ।
  • उन्होंने बाल—विवाह और बहु—विवाह का विरोध किया।
  • उन्होंने कलकत्ता में बैथुन स्कूल को महिला शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में विकसित किया।
  • बालिकाओं के लिए 36 विद्यालय स्थापित किए।

थियोसोफिकल सोसाइटी

  • स्थापना: रूसी महिला ब्लावेटस्की और कर्नल अल्कॉट ने 1875 ई. में न्यूयॉर्क में की।
  • भारत में श्रीम​ती एनी बेसेण्ट के प्रयासों से 1832 ई. में मद्रास (चेन्नई) के समीप अड्यार में मुख्यालय स्थापित किया गया।
  • उद्देश्य: सभी प्राचीन धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करना
  • इसके अनुयायी पुनर्जन्म और कर्म में विश्वास करते हैं।
  • 1898 ई. में एनी बेसेण्ट के प्रयासों से ही बनारस में ‘सेण्ट्रल हिन्दू स्कूल’ की स्थापना की गई जिसे बाद में 1915 ई. में मदनमोहन मालवीय ने ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ के रूप में विकसित किया।
  • बाल—विवाह का विरोध, जाति प्रथा को समाप्त करने, अन्त्यजों के उत्थान तथा विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने का भरसक प्रयत्न किया।

सत्यशोधक समाज

  • स्थापना : 1873 ई. में ज्योतिबा फुले ने की
  • उद्देश्य: समाज में पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।श्
  • दलिातों को सामाजिक न्याय और आत्मसम्मान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1854 ई. में उन्होंने दलितों के लिए एक विद्यालय खोला और विधवाओं की सहायता के लिए एक अनाथालय शुरू किया।
  • उनकी 1872 ई. में प्रकाशित पुस्तक ‘गुलामगिरी’ में ब्राह्मणों पर प्रहार किया।
  • ज्योतिबा समाज सुधार कार्यों के लिए ‘महात्मा’ कहलाने लगे।

कूका आन्दोलन

  • इसे नामधारी आन्दोलन कहा जाता है।
  • शुरूआत : भाई बालक सिंह द्वारा
  • परंतु उनके शिष्य रामसिंह ने इस आन्दोलन को लोकप्रिय बनाया।
  • समाज में व्याप्त कु​रीतियों का विरोध करने के साथ ही ब्रिटिश शासन का विरोध किया।
  • इस आन्दोलन ने पंजाब में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
  • अनुयायियों को जीवन में पवित्रता एवं सरलता का संदेश दिया।
  • वे सफेद वस्त्र एवं पगड़ी धारण करते थे।
  • शराब, चोरी, झूठ बोलना, विश्वासघात आदि कुकृत्यों से अनुयायियों को दूर रहने की प्रतिज्ञा कराई जाती थी।
  • वे एक कूक (आवाज) के माध्यम से एक​त्र होते थे, इसलिए कूका कहलाए।
  • इन्होंने विवाह पर अधिक खर्च, कन्या वध आदि का भी विरोध किया।
  • नामधारी सिक्खों ने अप्रैल, 1871 ई. में गोहत्या के विरोध में ​बूचड़खानों पर आक्रमण प्रारम्भ किया।
  • रामसिंह को निर्वासित कर बर्मा भेज दिया, जहां 1885 ई. में 61 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

Leave a Reply