• भारत के पहले लोकपाल नियुक्त हुए- पिनाकी चंद्र घोष
  • हमारे देश में  5 जनवरी, 1966 को श्री मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पहले भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के विरूद्ध नागरिकों की शिकायतों को सुनने एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना की सिफारिश की थी। जिसे उस समय स्वीकार नहीं किया गया।
  • भारत में सन 1971 ई. में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पांचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित न हो सका।
  • राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त, 1985 को संसद में प्रस्तुत किया गया और 30 अगस्त, 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया, जो पारित न हो सका।
  • आखिरकार भारत में केन्द्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्थाओं की स्थापना के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) संसद द्वारा 2014 में पारित हुआ, जिसे 1 जनवरी, 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
  • सर्वप्रथम वर्ष 1970 में उड़ीसा में लोकपाल की स्थापना हुई, जहॉं 1995 में पुनः नया लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम बना। अभी हाल ही ओडिशा विभानसभा ने अत्यन्त प्रभावी प्रावधानों को समाहित करते हुए ओडिशा लोकायुक्त बिल 2014 पारित कर दिया है।
  • वर्ष 1971 में महाराष्ट्र में, 1973 में राजस्थान में और इसके उपरान्त लगभग 20 से अधिक राज्यों में लोकायुक्त संस्था की स्थापना हुई। इसके पूर्व भी राजस्थान में जन अभियोग की देखभाल के लिए जन अभियोग निराकरण विभाग विद्यमान था किन्तु सरकार के इस तंत्र में किसी ऐसी संस्था का प्रावधान नहीं था जिसके द्वारा मंत्रियों, सचिवों और लोक सेवकों के विरूद्ध पद के दुरूपयोग, भ्रष्टाचार और निष्क्रियता की शिकायतों की जॉंच व अन्वेषण किया जा सके।
  • फलस्वरूप जनता में विश्वास और सन्तोष की भावना की अभिवृद्धि करने के लिए तथा स्वच्छ, ईमानदार और सक्षम प्रशासन प्रदान करने हेतु मंत्रियों, सचिवों और लोक सेवकों के विरूद्ध पद के दुरूपयोग, भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता आदि की शिकायतों को देखने तथा उनमें अन्वेषण करने के लिए स्वतंत्र एजेन्सी का सृजन करना तुरन्त आवश्यक समझा गया और इस उद्देश्य की अभिप्राप्ति के लिए वर्ष 1973 में राजस्थान लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अध्यादेश पारित हुआ, जो 3 फरवरी, 1973 से राजस्थान में प्रभावी हुआ। इसे 26 मार्च, 1973 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो गई और तब से यह अधिनियम के रूप में प्रदेश में प्रभावी है।

अधिकार क्षेत्र –

  • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में सेना को छोड़कर देश के प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य और केंद्र सरकार के समूह ए, बी, सी और डी के अधिकारी और कर्मचारी आते हैं। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार लोकपाल को होगा। साथ ही वह इन सभी की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है।

तलाशी और जब्तीकरण

  • कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे।
  • लोकपाल के पास केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
  • संपति को अस्थाई तौर पर अटैच (नत्थी) करने का अधिकार।
  • विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीके से कमाई गई संपति, आय, प्राप्तियों या फायदों को जब्त करने का अधिकार।
  • भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार।
  • शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
  • अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार।
  • केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों का गठन करना होगा जितनी लोकपाल बताए।

योग्यता

  • लोकपाल में अध्यक्ष पद पर वह व्यक्ति पदासीन होगा जो या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हो या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायधीश या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति।
  • इस संस्था में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए।
  • इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।

कार्यकाल

  • लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने जो भी पहले हो तक के लिए पद पर बने रहेंगे।

चयन प्रक्रिया के सदस्य

  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) के अनुसार, अध्यक्ष एवं सदस्य, राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाएंगे। जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे-
  1. प्रधानमंत्री – अध्यक्ष
  2. लोकसभा अध्यक्ष – सदस्य
  3. लोकसभा में विपक्ष का नेता – सदस्य
  4. भारत के मुख्य न्यायधीश या उनकी अनुशंसा पर नामांकित उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश – सदस्य
  5. अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा अनुशंसित एक प्रख्यात न्यायविद, राष्ट्रपति द्वारा नामांकित – सदस्य

लोकपाल की शुरूआत कब व कहां से हुई 

  • भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए समय-समय पर विभिन्न देशों में अनेक कदम उठाये गये हैं। इन ही प्रयासों के चलते स्वीडन में 1809 ई. में संविधान के अंतर्गत ‘ओम्बुड्समैन’ नामक संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था द्वारा पहली बार ऐसी व्यवस्था की गई जो लोकसेवकों कानूनों तथा विनियमों का उल्लंघन करता है उनके खिलाफ जांच करेगा।
  • ‘ओम्बुड्समैन’ एक स्वीडिश भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य लोगों का प्रतिनिधि (रिप्रेन्जटेटिव) या एजेन्ट होता है। इसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जिसे कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, विलम्ब, अकुशलता, अपारदर्शिता एवं पद के दुरूपयोग से नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • इसके बाद फिनलैण्ड में 1918 में, डेनमार्क में 1954 में, नॉर्वे में 1961 ई. में, और ब्रिटेन में 1967 ई. में ओम्बुड्समैन की स्थापना भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्देश्य से की गई। अब तक 135 से अधिक देशों में इस संस्था की नियुक्ति की जा चुकी है।
  • इसे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इंग्लैण्ड में इसे संसदीय आयुक्त, रूस में ‘वक्ता’ या ‘प्रोसिक्युटर’, डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड में इंग्लैण्ड की तरह संसदीय आयुक्त के नाम से जाना जाता है। इसे भारत में लोकपाल के नाम से जाना जाता है।