• भागवत धर्म के प्रवर्तक कृष्ण, वृष्णि कबीले के थे, जिनका निवास स्थान मथुरा था।
  • सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र एवं अंगिरस के शिष्य के रूप में कृष्ण का उल्लेख आया है।
  • कृष्ण के समर्थक इन्हें भागवत कहते थे।
  • मत्स्य पुराण में विष्णु के दस अवतारों का जिक्र मिलता है। ये दस अवतार हैं— मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि। इसमें वराह अवतार का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  • अवतारवाद का सर्वप्रथम स्पष्ट उल्लेख भगवद्गगीता में मिलता है।
  • वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने का साधन ज्ञान, कर्म और भक्ति को माना गया है, जिसमें सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया गया है।
  • तमिल प्रदेश में यह धर्म अलवार संतों के माध्यम से विकसित हुआ। इन संतों की संख्या करीब 12 थी। इन सबमें तिरुमंगई सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं आण्डाल महिला संत थीं।
  • पंचरात्र, व्यूहवाद एवं चतुर्व्यूह सिद्धांत भागवत धर्म से संबंद्ध थे।
  • पांच वृष्णि नाम थे— संकर्षण, वासुदेव कृष्ण, प्रद्युम्न, साम्ब एवं अनिरुद्ध।
  • रामानुज ने ब्रह्मसूत्र लिखा।
  • रामदास ने दासबोध, रामानंद ने आध्यात्म रामायण लिखी।
  • नारायण का प्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है।

शाक्त धर्म

  • उपासना पद्धति में शाक्तों के दो वर्ग हैं— कौलमार्गी एवं समयाचारी।
  • ऋग्वेद के दशम मंडल में एक पूरा सूक्त ही शक्ति की उपासना में विवृत है, जिसे तांत्रिक देवी सूक्त कहते हैं।
  • चौसठ योगिनी मंदिर (जबलपुर) में शाक्त धर्म के विकास और प्रगति को प्रमाणित करने का साक्ष्य उपलब्ध होता है।
शैव धर्म
  • ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। 
  • अथर्ववेद में शिव को भव, शव, पशुपति, भूपति कहा गया है।
  • लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है, किंतु शिव उपासना का पहला प्रमाण हड़प्पा सभ्यता से मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है।
  • शिव की प्राचीनतम मूर्ति गुडीमल्लम लिंग रेनुगुंटा से मिली है।
  • गुप्तकाल में सर्वप्रथम शिव एवं पार्वती की संयुक्त मूर्तियों के निर्मित होने के प्रमाण मिलता है। इस समय भूमरा एवं नचना कुठार में शिव—पार्वती मंदिर का निर्माण हुआ।
  • ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने करवाया।
  • तंजौर के राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण चोल शासक राजराज प्रथम ने करवाया। वृहदीश्वर मंदिर का निर्माण राजेन्द्र चोल ने करवाया।
  • कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव एवं नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।
  • दक्षिण भारत में शैव धर्म के प्रसार में मुख्य योगदान नयनार संतों का है। इनमें अप्पार, तिरुज्ञान, संबंदर, सुन्दर मूर्ति एवं मणिक्कवाचगर आदि विशेष महत्वपूर्ण है।
  • वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की संख्या चार बतायी गयी है। ये हैं शैव, पाशुपत, कापालिक एवं कालामुख।
  • इनमें पाशुपत सम्प्रदाय सर्वाधिक प्राचीन है। इनके संस्थापक लकुलीश थे,​ जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता था।
  • इस सम्प्रदाय के अनुयायिों को पंचार्थिक कहा गया। इस मत का प्रमुख ​सैद्धांतिक ग्रंथ ‘पशुपत सूत्र’ है।
  • कापालिक सम्प्रदाय के इष्टदेव भैरव थे। इस सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र श्री शैल नामक स्थान था, जिसका प्रमाण भवभूति के ‘मालतीमाधव’ से मिलता है।
  • कालामुख संप्रदाय के लोग अतिवादी विचारधारा के थे। शिव पुराण में इन्हें महाव्रतधर कहा गया है। इस सम्प्रदाय के लोग नर—कपाल में ही भोजन, जल तथा सुरापान करते हैं और साथ ही अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं।
  • लिंगायत (वीर शैव) संप्रदाय दक्षिण में प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक अल्लभ प्रभु एवं उनके शिष्य बासव थे। ये लोग लिंगोपासक थे।
  • कश्मीरी शैव सम्प्रदाय के संस्थापक वसुगुप्त थे।
  • मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ सम्प्रदाय की स्थापना की जिसका व्यापक प्रसार गोरखनाथ के समय में हुआ।