• 22 अक्टूबर, 1764 ई. को मीर कासिम, शुजाउद्दौला (अवध का नवाब) और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की सम्मिलित सेनाओं की मुठभेड़ मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना से बिहार के ‘बक्सर’ नामक स्थान पर हुई, जिसमें ये तीनों हार गये।
  • 3 मई, 1765 ई. को ‘कडा’ में एक और युद्ध के बाद अवध के नवाब और मुगल बादशाह दोनों ही अंग्रेजों की दया पर निर्भर हो गये।
    बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास के सर्वाधिक निर्णायक युद्धों में से एक था, क्योंकि इसने दो बड़ी भारतीय शक्तियों की संयुक्त सेना पर अंग्रेजी सेना की श्रेष्ठता प्रमाणित कर दी। इस युद्ध के उपरान्त अंग्रेज बंगाल, बिहार और उड़ीसा के निर्विवाद शासक बन बैठे और अवध भी उनकी दया का मोहताज हो गया।
  • 1765 ई. में क्लाइव बंगाल का गवर्नर बनकर लौटा। उसने बंगाल सत्ता प्राप्त करने और शासन के सारे अधिकार नवाब से छीनकर कम्पनी को दिलाने का निर्णय कर लिया। इसके पूर्व जुलाई 1763 ई. में अंग्रेजों ने मीर जाफर को पुनः बंगाल का नवाब बना दिया था।
  • अवध के नवाब के साथ संधि-

    बक्सर युद्ध की पराजय के बाद अवध का नवाब शुजाउद्दौला अंग्रेजों का कैदी था। क्लाइव ने कूटनीतिज्ञता का परिचय देते हुए शुजाउद्दौला से एक समझौता किया। उसकी शर्तें निम्नलिखित थीं-

  1. शुजाउद्दौला को अवध वापस दे दिया गया।
  2. नवाब ने कड़ा और इलाहाबाद मुगल बादशाह शाह आलम को तथा चुनार अंग्रेजों को दे दिया।
  3. अंग्रेजों ने बनारस और गाजीपुर की जागीर लेकर उसे राजा बलवंत सिंह और उनके परिवार को पैतृक जागीर के रूप में दे दिया।
  4. नवाब ने अपने राज्य की सीमा में अंग्रेजों को बिना कर दिए व्यापार करने की सुविधा प्रदान की।
  5. नवाब ने एक अतिरिक्त संधि द्वारा अपनी सेनाओं की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों की सहायता लेना स्वीकार किया।

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